जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी ने 'मैरी क्रिसमस' को दिया 'मेरी राधे दिवस' का स्वरूप; पढ़ें रहस्य एवं 'श्यामा श्याम गीत' ग्रंथ का छठवाँ भाग
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 150
०० 'मेरी राधे दिवस' और 'क्रिसमस' ::: आज सारे विश्व में 25 दिसम्बर का दिन 'क्रिसमस डे' या 'मैरी क्रिसमस' के रूप में मनाया जा रहा है। जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने इस दिन को एक नया स्वरूप प्रदान करते हुये इसे 'मेरी राधे दिवस' नाम दिया है। वस्तुतः महारानी श्रीराधारानी ही समस्त जीवों की माता हैं तथा जीव की परम हितैषी हैं। यह माया का संसार अपना नहीं है, इस माया की अधीश्वरी श्रीराधारानी ही अपनी हैं। अतः उनके श्रीचरणों में ही अपने भाव, प्रेम तथा शरणागति को दृढ़ करना है। 'मेरी राधे दिवस' की यही भावना है।
आइये आज इस अवसर पर जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित ब्रजभावयुक्त 1008-दोहों से युक्त 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का छठवाँ भाग पढ़ें, इस ग्रंथ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें ::::::
(भाग - 5 के दोहा संख्या 25 से आगे)
तू तो है मायाधीश कह ब्रजबामा।
मैं भी तेरा अंश किन्तु मायाधीन श्यामा।।26।।
अर्थ ::: हे श्यामा! माया तुम्हारी दासी है, तुम माया की अधीश्वरी हो। मैं यद्यपि तुम्हारा ही अंश हूँ किन्तु माया के आधीन हूँ।
तेरे मेरे पास माया, कह ब्रजबामा।
माया तेरी दासी मैं हूँ माया दासी श्यामा।।27।।
अर्थ ::: हे श्रीराधे! यद्यपि तुम्हारे पास भी माया है और मैं भी माया से युक्त हूँ किन्तु माया तुम्हारी तो दासी है और मुझे उसने अपनी दासी बना रखा है।
तुम भी हम भी दोनों हैं अनादि कह बामा।
जो भी हो अनादि वो अनन्त होय श्यामा।।28।।
अर्थ ::: हे श्यामा! तुम और हम दोनों ही अनादि हैं एवं जो अनादि होता है, वह अनन्त भी होता है।
तुम भी अज हम भी अज रहें उर धामा।
तुम कर्म लिखो हम कर्म करें श्यामा।।29।।
अर्थ ::: हे श्यामा! तुम भी अज (जन्मरहित) हो और मैं भी अज हूँ। हम तुम दोनों हृदय में रहते हैं किन्तु अन्तर यह है कि मैं तो कर्मों का कर्ता हूँ और तुम कर्मों का हिसाब रखने वाली हो।
कोरे शब्द ज्ञान ते बने ना कछु कामा।
मन करो शरणागत पद श्री श्यामा।।30।।
अर्थ ::: केवल पुस्तकीय ज्ञान से कल्याण की आशा करना व्यर्थ है। जब तक यह मन श्रीराधा पद्म-पराग का मत्त मधुप नहीं बन जाता तब तक इसे संसार के विषय विष अपनी ओर आकर्षित करते ही रहेंगे।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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