जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 6)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 151
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 6) ::::::
(1) भगवान और गुरु एक हैं तो भगवान की सेवा अभी प्राप्त नहीं है तो गुरु की सेवा करनी होगी। और गुरु से प्रश्न करके थ्योरी की नॉलेज, तत्वज्ञान प्राप्त करना होगा और शरणागत होना होगा।
(2) हर समय प्रत्येक कार्य करते हुये भी भगवान व गुरु को साथ मानों व उनके नाम, रूप, लीला, गुण, जन आदि का चिन्तन करते हुये ध्यान करते रहो। कभी भी भुलाओ मत।
(3) लोकरंजन की भावना न आने पाये। प्रेम तो छिपाने की चीज है। गोपनीयं गोपनीयं गोपनीयं प्रयत्नतः। (भगवत्स्मरण में) कभी रोमांच भी हो जाये, कभी कम्प भी हो जाये तो उसको छिपाओ। कोई कहे कि क्या हो गया तो कह दो कि मच्छर ने काट लिया, यह कभी भी आउट न करो कि हमारा प्यार श्यामसुन्दर से है।
(4) विरह भक्ति का प्राण है। श्रीकृष्ण के साथ द्वारिका में 16108 रानियाँ थीं, उनको बहिरंग सीट भी नहीं मिली वृन्दावन में। नौकरानी की सीट भी नहीं मिली और जिनको वियोग दिया गया उन गोपियों का वहाँ स्थान है जहाँ वेद की ऋचायें भी नहीं जा सकतीं।
(5) बड़े पाठ किये, बड़ी पूजा की, बड़े कीर्तन, बड़े जप किये, बड़े मन्दिरों के चक्कर लगाये, तमाम बातें कर डालीं लेकिन अगर वह दर्द पैदा नहीं हुआ, श्यामसुन्दर के मिलन की व्याकुलता अगर पैदा नहीं हुई तो सब जीरो में गुणा किया।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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