किस एक दोष का इलाज कर देने से सारे दोषों का निवारण अपने आप हो जाता है? जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा समाधान!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 153
(जैसे संसार में रोग के मूल का इलाज आवश्यक है, वैसे ही आध्यात्म में भी अन्तःकरण की अशुद्धि के मूल का इलाज आवश्यक है, आइये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से इस इलाज को जानें...)
हर दोष की एक दवा है ज्यों ज्यों अन्तःकरण भगवान में अटैच्ड होगा त्यों त्यों शुद्ध होगा। जितनी लिमिट में शुद्ध होगा, उतनी लिमिट में काम, क्रोध, लोभ, अहंकार ये सब माया के दोष कम होते जायेंगे। और जब कम्पलीट सरेण्डर हो जायेगा तो समाप्त हो जायेंगे।
एक दोष चला जाय एक रहे, ऐसा नहीं हो सकता। ये सब माया के परिवार हैं और इनका परस्पर सम्बन्ध है। इसलिये एक नहीं जायेगा। सारे रोगों का जो मूल है वो है कामना, इच्छा बनाना, संसारी हो चाहे पारमार्थिक हो। हमने इच्छा बनाया बस फँस गये। अब अगर इच्छा पूरी होती है तो लोभ पैदा होगा और नहीं पूरी होती है तो क्रोध पैदा होगा। आगे हम चले गये फँसते हुये, अब बच नहीं सकते चाहे कितना ही बड़ा बुद्धिमान बृहस्पति क्यों न हो।
तो संसार सम्बन्धी कामना को डायवर्ट करके भगवान सम्बन्धी कामना बनाने का अभ्यास कर ले तब जड़ खतम हो तो सारी बीमारी खतम हो गई। ऊपर ऊपर से हमने पत्ते तोड़ दिये, कुछ डालें काट दीं, इससे पेड़ समाप्त नहीं होगा बल्कि वो और बलवान होगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: साधन साध्य पत्रिका, मार्च 2018 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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