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 नववर्ष के प्रथम दिन को जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दिया गया है 'भक्ति-दिवस' का स्वरूप!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 156

'भक्ति-दिवस' का तात्पर्य
(नववर्ष 2021 की हार्दिक शुभकामनायें)

आज नववर्ष 2021 का पहला दिन है। सारे विश्व में यह दिन इसी रूप में मनाया जाता है। किन्तु आध्यात्मिक जगत में अनेकानेक संत-महापुरुष इसे अन्य रूपों में भी मनाते हैं। विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम स्वामी श्री कृपालु जी महाराज ने नववर्ष के प्रथम दिन को 'भक्ति-दिवस' का स्वरूप प्रदान किया है। 

इस नामकरण के पीछे यही भावना है कि हम अपने मनुष्य जन्म के वास्तविक उद्देश्य को विचारें कि यह शरीर हमको भगवान की भक्ति करके उनकी प्राप्ति के लिये मिला है तथापि यह क्षणभंगुर है, इसलिये इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिये शीघ्रता करनी चाहिये। प्रत्येक नये वर्ष पर यह नापें कि पिछले वर्ष में हमने भक्ति में कितनी उन्नति की और कितना संसार से राग-द्वेष हमारा कम हुआ। अपने आराध्य एवं सर्वस्व भगवान तथा उनसे अभिन्न श्री गुरुदेव का स्मरण कर इस नये वर्ष में अपनी भक्ति, साधन, भगवत्प्रेम तथा गुरुसेवा को और अधिक तीव्र गति से बढ़ाने और लापरवाहियों को कम करते जाने का संकल्प करने का यह दिन है।

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने विभिन्न वर्षों में नये वर्ष पर 'प्रेमोपहार' के रूप में अनेक दोहों की रचना की है। उन सबका संकलन यहाँ देना तो संभव नहीं है, तथापि वर्ष 1997 में उनके द्वारा प्रगटित एक दोहा यहाँ उद्धृत किया जा रहा है। उनके शब्दों में यह दोहा इस प्रकार है;

मन सों हरि गुरु स्मरण करु,
वाणी सों गुण गान।
हरि गुरु चर्चा श्रवण सुनु,
जनम सफल तब जान।।

इस अर्थ यह है कि हम मन से सदैव अपने भगवान तथा पूज्य गुरुदेव का नित्य स्मरण करते रहें, गुरुदेव के द्वारा दिये गये सिद्धांत का बारम्बार मनन करते रहें, भगवान की कृपा का भी स्मरण करें कि किस तरह उन्होंने बड़ी कृपा से यह दुर्लभ मानव शरीर हमें दिया और पुन: मन में भगवद-जिज्ञासा दी और अपने वास्तविक जन अर्थात संत से मिलाया। उन संत को गुरुरूप में वरण कर जैसे जैसे हम आध्यात्मिक पथ पर चलने लगे, उन गुरुदेव ने सदा-सर्वदा अपना स्नेह, अपना दुलार, अपना अपनापन तथा विशेष कृपा-दृष्टि हमारी ओर लगाये रखी। इन सब बातों को प्रेमपूर्वक बारम्बार सोचें। 

अपनी वाणी से सदा उन्हीं के गुणों का, उनके पावन नामों का गान करते रहें, इसके अलावा व्यर्थ की सांसारिक चर्चाओं से बचें रहें। अपने कानों से भी हम भगवान संबंधी तथा संत-जनों की बातें ही सुनें, इसके अलावा न किसी की बुराई सुनें, न किसी के अपराध और न ही सांसारिक प्रपंच की बातें सुनकर अपने मनुष्य जीवन का अमूल्य समय नष्ट करें। सब प्रकार से जब हम एकमात्र भगवान की भक्ति के पथ पर कमर कसकर चलेंगे और किसी बाधा में रुकेंगे, थकेंगे, टूटेंगे नहीं, तभी हमारा यह मनुष्य जनम सफल होगा। 

जैसा कि इस दिन का नाम 'भक्ति-दिवस' है। आइये जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा एक अवसर पर 'भक्ति' के माहात्म्य पर कहे गये दोहे और उसकी संक्षिप्त व्याख्या को भी समझ लें;

सबसे बड़ी है भक्ति गोविन्द राधे।
भक्ति भगवान को भी भक्त बना दे।।
(स्वरचित दोहा)

व्याख्या उन्हीं के शब्दों में... सबसे बड़ी भक्ति। इतनी बड़ी कि 'महतो महीयान्' सबसे बड़े भगवान को भी छोटा बना देती है, भक्त बना देती है। किसका भक्त? जो सबसे छोटा है जीव, अणु, एक किरण है सूर्य की, वो भगवान बन जाता है और भगवान उसका भक्त बन जाता है।

ये यथा मां प्रपद्यन्ते तांस्तथैव भजाम्यहं।
(गीता 4-11)

भजामि, मैं भक्त बनता हूँ।

अहं भक्त पराधीनो ह्यस्वतंत्र इव द्विज।
(भागवत 9-4-63)

कौन कहता है, मैं स्वतंत्र हूँ। अस्वतंत्र हूँ मैं। तो भक्ति सबसे बड़ी जो भगवान को भक्त बना दे, भक्त को भगवान बना दे। उल्टा कर दे। ऐसी 'भक्ति महारानी की जय!!!'

....यह श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा 'भक्ति' के माहात्म्य की व्याख्या है। आज नववर्ष के पहले दिन को हम भी 'भक्ति-दिवस' के रूप में मनावें तथा इस मानव जीवन की साफल्यता के लिये जीवन को भक्ति-पथ पर अग्रसर करने का दृढ़ संकल्प लेवें।

आप सभी को 'भक्ति-दिवस' तथा 'नव-वर्ष' की हार्दिक शुभकामनाएं।

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