सूर्यदेव 14 जनवरी को होंगे उत्तरायण, प्रयाग में होगा महाकुंभ
भगवान सूर्य 14 जनवरी की सुबह में 08 बजकर 15 मिनट पर दक्षिणायन की यात्रा समाप्त करके उत्तरायण की राशि मकर में प्रवेश करने वाले हैं जिसके फलस्वरूप देवताओं के दिन का शुभारंभ हो जाएगा। इस दिन से सभी तरह के मांगलिक कार्य, यज्ञोपवीत, मुंडन, शादी-विवाह, गृहप्रवेश आदि आरम्भ हो जाएंगे।
प्रयाग में तीर्थों का कुंभ
माघ के महीने में सूर्य के मकर राशि में प्रवेश काल के समय जब सभी देवों के दिन का शुभारंभ होता है तो तीनों लोकों में प्रतिष्ठित गंगा, यमुना और सरस्वती के पावन संगम तट त्रिवेणी पर साठ हजार तीर्थ और साठ करोड़ नदियां, सभी देवी-देवता, यक्ष, गन्धर्व, नाग, किन्नर आदि तीर्थराज प्रयाग में एकत्रित होकर गंगा-यमुना-सरस्वती के पावन संगम तट पर स्नान, जप-तप, और दान-पुण्य कर अपना जीवन धन्य करते हैं। तभी इसे तीर्थों का कुंभ भी कहा जाता है। मत्स्य पुराण के अनुसार यहाँ की एक माह की तपस्या परलोक में एक कल्प (आठ अरब चौसठ करोड़ वर्ष) तक निवास का अवसर देती है इसीलिए यहां भक्तजन कल्पवास भी करते हैं।
रामचरित मानस में प्रयाग तीर्थ की महिमा
प्रयाग तीर्थ की महिमा का वर्णन करते हुए गोस्वामी श्रीतुलसीदास जी ने रामचरित मानस में लिखा है कि
माघ मकर रबिगत जब होई। तीरथपति आवहिं सब कोई।
देव दनुज किन्नर नर श्रेंणी। सादर मज्जहिं सकल त्रिवेंणी।
एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं। पुनि सब निज-निज आश्रम जाहीं।।
--अर्थात- माघ माह में मकर संक्रांति के पुण्य अवसर पर सभी तीर्थों के राजा प्रयाग के पावन संगम तट पर मास पर्यंत वास करते हुए स्नान-ध्यान तपादि करते हैं। वैसे तो प्राणी इस माह में किसी भी तीर्थ, नदी और समुद्र में स्नान कर दान-पुण्य करके त्रिबिध तापों से मुक्ति पा सकता है किन्तु, प्रयागतीर्थ के मध्य देव संगम का फल सभी कष्टों से मुक्ति दिलाकर मोक्ष देने में सक्षम है। यहाँ का एक माह का कल्पवास करने से जीवात्मा एक कल्प तक जीवन-मरण के बंधन से मुक्त रहता है। इस माह अपने पितरों को अघ्र्य देने और श्राद्ध-तर्पण आदि करने से पितृ श्राप से भी मुक्ति मिल जाती है।
तीर्थराज प्रयाग का सुरक्षा घेरा
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार प्रयाग तीर्थ में आठ हजार श्रेष्ट धनुर्र्धारी हर समय मां गंगा की रक्षा करते हैं। सूर्यदेव अपनी प्रियपुत्री यमुना की रक्षा करते हैं। देवराज इंद्र प्रयाग तीर्थ की रक्षा, शिव अक्षय वट की और विष्णु मंडल की रक्षा करते हैं। इस अवधि में लौकिक-पारलौकिक शक्तियां पृथ्वी पर एकत्रित होकर संगम तट पर अनेकानेक रूपों में वास करती हैं परिणाम स्वरुप यहां जल का स्तर बढ़ जाता है। यह अद्भुत संयोग जीवात्माओं को अपने किये गए शुभ-अशुभ कर्मों का प्रायश्चित करने का सुअवसर देता है।
कर्मविपाक संहिता में सूर्य की महिमा
सूर्य के उत्तरायण यात्रा के फलस्वरूप ही तीर्थराज प्रयाग में सभी तीर्थों के महाकुंभ का संयोग बनता है। सूर्य के विषय में भी कहा गया है कि, ब्रह्मा विष्णु: शिव: शक्ति: देव देवो मुनीश्वरा, ध्यायन्ति भास्करं देवं शाक्षीभूतं जगत्त्रये। अर्थात- ब्रह्मा, विष्णु, शिव, शक्ति, देवता, योगी ऋषि- मुनि आदि तीनों लोकों के शाक्षी भूत भगवान सूर्य का ही ध्यान करते हैं। जीवात्मा की जन्मकुंडली में भी सूर्य की स्थिति का गंभीरता से विचार किया जाता है क्योंकि, अकेले सूर्य ही बलवान हों तो सात ग्रहों का दोष शमन कर देते हैं, सप्त दोषं रबिर्र हन्ति शेषादि उत्तरायणे' उत्तरायण हों तो आठ ग्रहों का दोष शमन कर देते हैं।
शास्त्र भी प्राणियों को भगवान सूर्य को जल का अघ्र्य देने की सलाह देते हैं। जो मनुष्य प्रात:काल स्नान करके सूर्य को अघ्र्य देता है उसे किसी भी प्रकार का ग्रह दोष नहीं लगता क्योंकि इनकी सहस्रों किरणों में से प्रमुख सातों किरणें सुषुम्णा, हरिकेश, विश्वकर्मा, सूर्य, रश्मि, विष्णु और सर्वबंधु, जिनका रंग बैगनी, नीला, आसमानी, हरा, पीला, नारंगी और लाल है हमारे शरीर को नयी उर्जा और आत्मबल प्रदान करते हुए हमारे पापों का शमन कर देती हैं। प्रात:कालीन लाल सूर्य का दर्शन करते हुए ? सूर्यदेव महाभाग ! त्र्यलोक्य तिमिराप:। मम् पूर्वकृतं पापं क्षम्यतां परमेश्वर:। यह मंत्र बोलते हुए सूर्य नमस्कार करने से जीव को पूर्वजन्म में किये हुए पापों से मुक्ति मिलती है।
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