ब्रेकिंग न्यूज़

आज 64वाँ 'जगदगुरुत्तम-दिवस', पढ़ें जगदगुरु उपाधि के संबंध में रहस्य तथा पंचम मूल जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के 'जगदगुरुत्तम' उपाधि के विषय में

 जगदगुरुत्तम-दिवस (14 जनवरी) विशेष श्रृंखला - भाग (6)


काशी विद्वत परिषद द्वारा जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज को 14 जनवरी 1957 को प्रदान किये गये 'पंचम मूल जगदगुरुत्तम' तथा अन्य उपाधियों की व्याख्या, भाग - 6

०० 'जगदगुरुत्तम-दिवस तथा श्री कृपालु जी महाराज को प्राप्त जगदगुरुत्तम उपाधि'

आज ही सन 1957 में मकर संक्रांति के दिन श्री कृपालु जी महाराज को भारतवर्ष की सर्वमान्य 500 शास्त्रज्ञ विद्वानों की एकमात्र सभा काशी विद्वत परिषद द्वारा पंचम मौलिक जगदगुरुत्तम की उपाधि से विभूषित किया गया था । इस दिन को ही 'जगदगुरुत्तम-दिवस' के रूप में मनाया जाता है। आप सभी को इस अवसर पर हार्दिक शुभकामनाएं।

०० जगद्गुरु की मौलिक उपाधि क्यों?

'जगद्गुरु' शब्द बहुत पुराना जो कि भगवान श्रीकृष्ण के लिए शास्त्रों में प्रयुक्त हुआ है । श्रीकृष्ण को 'कृष्णं वंदे जगद्गुरुं' कहकर पुकारा गया है । इस प्रकार आदि जगद्गुरु तो श्रीकृष्ण ही हैं लेकिन कलियुग में बढ़ रहे पाखंड एवं ढोंग तथा अंधविश्वास के चलते उनके निर्मूलन के लिए एक ऐसी पद्धति के आविष्कार की आवश्यकता अनुभव की गई जिसके अंतर्गत यह सुनिश्चित किया गया कि किसी ऐसे महापुरुष को जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की जाय जिसे समस्त शास्त्रों-वेदों का सम्यक ज्ञान हो और वह भगवत्प्राप्त भी हो ताकि इस पाखंड के वातावरण में भी जिज्ञासु लोग बिना किसी शंका के उनके पास जाकर अपनी जिज्ञासा शांत कर सकें । इस प्रकार आदि जगद्गुरु श्री शंकराचार्य जी प्रथम मौलिक जगद्गुरु हुए जिन्हें आज से 2500 वर्ष पूर्व यह उपाधि प्रदान की गई । उन्होंने अद्वैतवाद का प्रचार किया और संसार में फैले अंधविश्वास, अज्ञान आदि का निर्मूलन प्रारम्भ किया । 

०० अब तक के पाँच मौलिक जगद्गुरु

अब तक संसार में केवल 5 मौलिक जगद्गुरु हुए हैं । आदि जगद्गुरु शंकराचार्य जी, श्री रामानुजाचार्य जी, श्री निम्बार्काचार्य जी, श्री माध्वाचार्य जी एवं जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज । जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के अलावा पूर्ववर्ती अन्य मौलिक जगदगुरुओं ने किसी न किसी विशेष मत का प्रचार किया परंतु श्री कृपालु जी महाराज ही ऐसे एकमात्र जगद्गुरु हुए हैं जिन्होंने किसी भी विशेष मत का प्रचार किये बिना ही अपने पूर्ववर्ती समस्त जगदगुरुओं एवं अन्य सभी महापुरुषों के सिद्धान्तों का सर्वप्रथम समन्वय किया । जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज को प्रदान की गई उपाधि की यह विशेषता है कि उन्हें अब तक हुये सभी मौलिक जगदगुरुओं में भी उत्तम अर्थात जगदगुरुत्तम के रूप में स्वीकार किया गया है। काशी विद्वत परिषद द्वारा प्रदत्त पद्याप्रसूनोपहार के श्लोक संख्या 5 में उनकी अर्चना में यह अंकित है ।

०० जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज : विशेषता

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज का आविर्भाव सन 1922 की शरद पूर्णिमा की मध्यरात्रि में इलाहाबाद के निकट कुंडा तहसील के मनगढ़ नामक छोटे से ग्राम में हुआ था । बचपन से ही अलौकिक ज्ञान एवं भक्तिरस के साक्षात स्वरुप श्री कृपालु जी को 14 जनवरी 1957 को मकर संक्रांति के दिन भारतवर्ष के तत्कालीन 500 शास्त्रज्ञ एवं मूर्धन्य विद्वानों की एकमात्र सभा काशी विद्वत परिषत द्वारा पंचम मौलिक जगद्गुरु की उपाधि प्रदान की गई । इनके पूर्व अन्य सभी जगद्गुरु शास्त्रार्थ में विजय कर जगद्गुरु हुए किन्तु श्री कृपालु जी प्रथम जगद्गुरु हैं जिन्हे बिना शास्त्रार्थ के ही सर्वसम्मति से यह उपाधि दी गई । उनके ज्ञान और अगाध प्रेम के अद्भुत समन्वय स्वरुप के दर्शन कर विद्वत परिषत द्वारा उन्हें कुछ अन्य उपाधियाँ भी दी गई । इनमें प्रमुख हैं निखिलदर्शनसमन्वयाचार्य एवं भक्तियोगरसावतार की उपाधि । उनका भक्तियोग तत्वदर्शन यह है जीव भगवान श्रीकृष्ण का नित्य दास है और अनंत जन्मों से आनंद की खोज में व्याकुल उसे इसकी प्राप्ति भगवान को पाकर ही मिलेगी । श्रीराधाकृष्ण का माधुर्यभाव युक्त गोपीप्रेम प्राप्त करना ही जीव की सर्वोच्च गति है, यह प्रेम गुरु सेवा एवं गुरुकृपा के द्वारा ही प्राप्त होनी है ।

भारत को आध्यात्मिक गुरु के पद पर आसीन करने के लिये हमारे भारत में अनेक अलौकिक प्रतिभा सम्पन्न महापुरुष हुये, जिन्होंने वेदों, शास्त्रों के ज्ञान को सुरक्षित रखा। किन्तु वर्तमान समय में अनेक पाखण्डयुक्त मत चल गये। जो वेद शास्त्र का नाम तक नहीं जानते, ऐसे दम्भी गुरु जनता को गुमराह कर रहे हैं। वैदिक मान्यतायें लुप्त हो गई हैं। शास्त्रों, वेदों के अर्थ का अनर्थ हो रहा है। अतः लोग अज्ञानान्धकार में डूबते जा रहे हैं।

इस समय जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के द्वारा दिये गये असंख्य प्रवचन जो आज भी उनकी वाणी में उपलब्ध हैं, उनके द्वारा वेद, शास्त्र सम्मत साहित्य, ऋषि-मुनियों की परंपरा को पुनर्जीवन प्रदान कर रहा है। शास्त्रों, वेदों के गूढ़तम सिद्धान्तों को भी सही रुप में अत्यधिक सरल, सरस भाषा में प्रकट करके एवं उसे जनसाधारण तक पहुँचाकर उन्होंने विश्व का महान उपकार किया है। उन्होंने भारतीय वैदिक संस्कृति को सदा सदा के लिये गौरवान्वित कर दिया है एवं भारत जिन कारणों से विश्व गुरु के रुप में प्रतिष्ठित रहा है, उसके मूलाधार रुप में जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज ने सनातन वैदिक धर्म की प्रतिष्ठापना की है।

उनके द्वारा उद्भूत ज्ञान 'कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' के नाम से जाना जाता है। जो वेदों, शास्त्रों, पुराणों, गीता, भागवत, रामायण तथा अन्यान्य धर्मग्रंथों का सार है। जो जाति-पाँति, देश-काल की सीमा से परे है। सभी धर्मों के अनुयायियों के लिये मान्य है, सार्वभौमिक है। आज के युग के अनुरुप है। सर्वग्राह्य है। सनातन है। समन्वयात्मक सिद्धान्त है। सभी मतों, सभी ग्रंथों, सभी आचार्यों के परस्पर विरोधाभाषी सिद्धान्तों का समन्वय है। निखिलदर्शनों का समन्वय है। भौतिकवाद, आध्यात्मवाद का समन्वय है, जो आज के युग की माँग है। विश्व शांति और विश्व बन्धुत्व की भावनाओं को दृढ़ करते हुये शाश्वत शान्ति और सुख का सर्वसुगम सरल मार्ग है।

ऐसे जगद्वन्द्य जगदोद्धारक 'कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन' का सम्पूर्ण जगत चिरकाल तक आभारी रहेगा।

०० सन्दर्भ ::: 'भगवत्तत्व' पत्रिका
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

Related Post

Leave A Comment

Don’t worry ! Your email address will not be published. Required fields are marked (*).

Chhattisgarh Aaj

Chhattisgarh Aaj News

Today News

Today News Hindi

Latest News India

Today Breaking News Headlines News
the news in hindi
Latest News, Breaking News Today
breaking news in india today live, latest news today, india news, breaking news in india today in english