साधकों के लिये जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा दो महत्वपूर्ण आदेश/हिदायत, दूसरा आदेश संसार में मधुर व्यवहार रखने के प्रति!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 169
(साधना मार्ग में कुछ सावधानियों का पालन अति आवश्यक होता है, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज ने साधक समुदाय को अनेक अवसरों पर बहुत सी सावधानियों के विषय में समझाया है। निम्न उद्धरण में भी उन्होंने एक अवसर पर इस ओर साधक समुदाय को संबोधित किया था। कल इसका एक भाग प्रकाशित हो चुका है..)
..दूसरा आदेश है व्यवहार। एक आदेश दिया आहार के बारे में, अब दूसरा दे रहे हैं व्यवहार के बारे में। अपने व्यवहार को संसार के अनुकूल बनाओ। इसमें बहुत से लोग भूल किया करते हैं। कहते हैं अजी हमसे किसी की खुशामद नहीं होती, किसी की गुलामी नहीं होती। यह गुलामी और खुशामद होती है दो प्रकार की - एक एक्टिंग में एक फैक्ट में। हम फैक्ट में नहीं कह रहे हैं कि तुम किसी के आगे झुक जाओ। फैक्ट में तो हरि-हरिजन केवल दो के ही आगे झुकना है और संसार में केवल शब्दों का व्यवहार ही रखना है।
घर और, ऑफिस में, तमाम जगह आपको विभिन्न प्रकार के लोगों से संपर्क रखना पड़ेगा। उस संपर्क को इस प्रकार से बनाओ कि कम से कम बवाल आपके ऊपर आये। आपका जो ऑफिसर है अगर उसको एक्टिंग में अपने व्यवहार से आप खुश नहीं रख सकते तो सदा आपको परेशान करता रहेगा। अगर वह व्यवहार ठीक नहीं रख पाओगे तो उस परेशानी को आपको उठाना ही पड़ेगा। इसलिये अपने व्यवहार को मधुर बनाओ। इसके लिये एक चीज तो यह है कि कम बोलो, मीठा बोलो। वाणी का इस्तेमाल कम से कम करो। एक पॉज की अक्ल नहीं है किसी को और अपने को अधिक विद्वान मानता है और जब अधिक बोलेगा तो कहीं न कहीं गड़बड़ होगी ही और जब गड़बड़ होगी तो उसका रिएक्शन भी और वह सामने आयेगा।
इसलिए अपने घर में भी और बाहर भी कम से कम बोलो और मधुर बोलो। इससे आपके झगड़े कम हो जायेंगे, घर के भी और बाहर के भी और आपके मन में जो यह फीलिंग की बीमारी आया करती है , यह भी कम हो जायेगी, उसको कम करने की दवा बता रहे हैं, एकदम उसको समाप्त नहीं कर सकते हो। जब आपका अन्त:करण शुद्ध हो जायेगा, देहाभिमान मिट जायगा, तब एकदम बन्द होने की बात आयेगी।
अपने व्यवहार को मधुर बनाओ। और अगर किसी के मधुर व्यवहार को देखो तो उस पर एकदम विश्वास न कर लो। यह समझे रहो कि वह अपने स्वार्थ के लिये ऐसा कर रहा है, इसलिये मीठा बोल रहा है। किसी के शब्दों पर हमें विश्वास नहीं कर लेना है। इस सिद्धान्त को सदा याद रखना है कि कोई भी व्यक्ति किसी के लिये कुछ नहीं कर सकता, सब अपने स्वार्थ के लिये ही वर्क करते हैं। यह जो तमाम लोग संसार में कहा करते हैं, मैं आपकी हेल्प कर दूँ और कहते ही नहीं करते भी हैं। होशियार रहो वह कोई बड़ा भारी स्वार्थ सिद्ध करना चाहता है। कोई भी लड़की किसी भी लड़के को किसी भी प्रकार के शारीरिक कॉन्टैक्ट की फ्रीडम न दे। सावधान रहे। जैसे आप दाँत काढ़ रहे हैं, मजाक कर रहे हैं, बातें बना रहे हैं, कंधे पर हाथ रख दिया। यह तो हमारा भैया है, चाचा का लड़का, ताऊ का लड़का। तुरंत संभल जाओ। शरीर से दूर और आँखों से संभलकर व्यवहार करो। बाकी टाइम में संसारी व्यवहार करो, संसार का काम करो। इस समय के लिये भी एक प्रमुख आदेश यह है कि अपने गुरु और इष्टदेव को सदा अपने साथ रियलाइज करो।
00 प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
00 सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश, नवम्बर 1998
00 सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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