अपने गुरु के सिद्धान्त और उनकी कृपाओं को अनुकूल भाव से सोचना ही कल्याण कर सकता है, जानिये साधक के लिये आवश्यक बातें!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 172
(साधक को सदा गुरु के सिद्धान्त के अनुकूल ही सोचना, चलना चाहिये. इसके अतिरिक्त और कुछ महत्वपूर्ण मार्गदर्शन, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज की श्रीवाणी में...)
मनुष्य में एक ही विशेषता है, वह यह कि वह किसी तत्व का सत्य ज्ञान प्राप्त कर सकता है। लेकिन जब तक उस तत्व के अनुकूल बार-बार विचार न किया जाय, वह ज्ञान मिट जाता है एवं मनुष्य को और भी पतन के गर्त में गिरा देता है।
बार-बार विचार हो और सदा हो, और अनुकूल ही हो, बस, यदि यह समझ में कभी आ जायेगा तो भविष्य बन जायेगा। इसके साथ यह भी ध्यान रखना होगा कि इष्टदेव एवं गुरु के प्रति निष्ठा करता रहे। यदु वहीं गड़बड़ हुई तो सब महल ढह जायेगा। और ऐसे व्यवहार से इष्टदेव अथवा गुरु को और भी दुःख देने के हम कारण बन जायेंगे। भावार्थ यह कि चार पैसे की खोपड़ी को उधर न लगाया जाए, सदा अनुकूल चिन्तन एवं कृपा को ही सोचा जाय। संसारी जीवों से कम से कम व्यवहार किया जाय, कम से कम सोचा जाय, कम से कम सुना जाय, कम से कम बोला जाय।
केवल गुरु के मिलन का महत्व सोच-सोचकर ही जीव का परम कल्याण हो सकता है क्योंकि वह प्रत्यक्ष है। यदि बुद्धि का व्यापार बंद न होगा तो अनन्त जन्म में भी कुछ न मिलेगा। यही एकमात्र विचारणीय है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म सन्देश पत्रिका, नवम्बर 1999 अंक
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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