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 जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 8)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 175

०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 8) ::::::

(1) अहंकार से बचना और अपमान न फील करना, यह साधना की आधारशिला है। यह चीज साधना करने वाले जीवों के लिये श्रीगणेश है।

(2) वास्तविक साधना गुरु आज्ञापालन ही है। जो कुछ प्राप्त होना है, वह तो गुरु कृपा पर ही निर्भर है।

(3) संकीर्तन में आपके आँसू नहीं आते यह अहंकार के कारण है और अगर आँसू आते हैं और सोचता है मेरे आँसू आते हैं, यह सूक्ष्म अहंकार है।

(4) मान अपमान पर विचार करते हुये हमें यह विचार करना है कि हम किस प्रकार दीन बनें। मैं दीन हूँ और मुझे अहंकार भी है, यही सबसे बड़ा डेंजर है। लोकरंजन की भावना आ जाती है और हम समझते हैं कि लोग हमें दीन समझें। यह भी अहंकार हैं।

(5) लोग तीर्थ में जाते हैं तो आपस में बैठकर इधर उधर की बातें करते हैं फिर तीर्थ का क्या मतलब हुआ? यह थ्योरी (तत्वज्ञान/माहात्म्य ज्ञान) की नॉलेज न होने के कारण ही होता है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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