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28 जनवरी को रहेगा गुरु-पुष्य योग, जानिए इस शुभ योग का महत्व


महिलाओं के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं।
सभी मुहूर्तों में श्रेष्ठ गुरु पुष्ययोग 28 जनवरी बृहस्पतिवार को सूर्योदय से लेकर मध्यरात्रि तक विद्यमान रहेगा। नक्षत्र ज्योतिष के मुहूर्त शास्त्र में सभी 27 नक्षत्रों में 'पुष्य नक्षत्र' को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, यद्यपि अभिजीत मुहूर्त को नारायण के 'चक्रसुदर्शन' के समान शक्तिशाली बताया गया है फिर भी पुष्य नक्षत्र और इस दिन बनने वाले शुभ मुहूर्त का प्रभाव अन्य मुहूर्तो की तुलना में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। यह नक्षत्र सभी अरिष्टों का नाशक और सर्वदिग्गामी है। विवाह को छोड़कर अन्य कोई भी कार्य आरंभ करना हो तो पुष्य नक्षत्र और इनमें श्रेष्ठ मुहूर्तों  को ध्यान में रखकर किया जा सकता है।
पुष्य नक्षत्र का सर्वाधिक महत्व बृहस्पतिवार और रविवार को होता है बृहस्पतिवार को गुरु पुष्य और रविवार को रविपुष्य योग बनता है, जो मुहूर्त ज्योतिष के श्रेष्ठतम मुहूर्तों में से एक है। इस नक्षत्र को तिष्य कहा गया है जिसका अर्थ होता है श्रेष्ठ एवं मंगलकारी। बृहस्पति भी इसी नक्षत्र में पैदा हुए थे तैत्रीय ब्राह्मण में कहा गया है कि, 'बृहस्पतिं प्रथमं जायमान: तिष्यं नक्षत्रं अभिसं बभूव। नारदपुराण के अनुसार इस नक्षत्र में जन्मा जातक महान कर्म करने वाला, बलवान, कृपालु, धार्मिक, धनी, विविध कलाओं का ज्ञाता, दयालु और सत्यवादी होता है। आरंभ काल से ही इस नक्षत्र में किये गये सभी कर्म शुभफलदाई कहे गये हैं किन्तु माँ पार्वती विवाह के समय शिव से मिले श्राप के परिणामस्वरुप पाणिग्रहण संस्कार के लिए इस नक्षत्र को वर्जित माना गया है।
गुरुपुष्य योग में धर्म, कर्म, मंत्र जाप, अनुष्ठान, मंत्र दीक्षा अनुबंध, व्यापार आदि आरंभ करने के लिए अतिशुभ माना गया है सृष्टि के अन्य शुभ कार्य भी इस नक्षत्र में आरंभ किये जा सकते हैं क्योंकि लक्षदोषं गुरुर्हन्ति की भांति हो ये अपनी उपस्थिति में लाखों दोषों का शमन कर देता है। इस प्रकार रविपुष्य योग में भी उपरोक्त सभी कर्म किए जा सकते हैं।
नारी जगत के लिए ये नक्षत्र और भी विशेष प्रभावशाली माना गया है। इनमें जन्मी कन्याएं अपने कुल-खानदान का यश चारों दिशाओं में फैलाती हैं और कई महिलाओं को तो महान तपश्विनी की संज्ञा मिली है जैसा की कहा भी गया है कि, देवधर्म धनैर्युक्त: पुत्रयुक्तो विचक्षण:। पुष्ये च जायते लोक: शांतात्मा शुभग: सुखी। अर्थात- जिस कन्या की उत्पत्ति पुष्य नक्षत्र में होती है वह सौभाग्य शालिनी, धर्म में रूचि रखने वाली, धन-धान्य एवं पुत्रों से युक्त सौन्दर्य शालिनी तथा पतिव्रता होती है। वैसे तो यह नक्षत्र हर सत्ताईसवें दिन आता है किन्तु हर बार गुरुवार या रविवार ही हो ये तो संभव नही हैं इसलिए इस नक्षत्र के दिन गुरु एवं सूर्य की होरा में कार्य आरंभ करके गुरुपुष्य और रविपुष्य जैसा परिणाम प्राप्त किया जा सकता हैं।

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