हर समय भगवान की स्मृति बनी रहेगी, यह हमारा स्वभाव कैसे बनेगा, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा कर्मयोग-साधना का निरूपण!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 180
(एकान्त में बैठकर साधना सरल है, किन्तु संसार में कर्मरत रहते हुये साधना में कठिनाई आती है. इस कठिनाई को सरल कैसे करना है और कर्मयोग की साधना का अभ्यास कैसे करना है, जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी समझा रहे हैं...)
एक गाय, जानवर, दिन भर चारा चरती है। लेकिन अपने बछड़े को याद करती रहती है। ये कर्मयोग की साधना है उसकी, और जब शाम को लौटती हैं, चारा चरने के बाद, और गौशाला के पास आती है तो वो जो चोरी-चोरी प्यार कर रही थी थोड़ा-थोड़ा वह कन्ट्रोल से बाहर हो जाता है तो रम्भाती है। बड़े जोर से बोलती है, चिल्लाती है, अपने बच्चे को पुकारती है और बच्चा भी उसका माँ की आवाज पहचानता है तो खूँटे में बँधा हुआ, उसका बच्चा भी आवाज देता है, मम्मी जल्दी आ जाओ। ये देखो पशुओं मे भी इस प्रकार का विषय है। तो मनुष्य की कौन कहे। हाँ तो हमें इस प्रकार कर्मयोग की साधना करना है अर्थात हम कार्य करते हुए भी बार-बार एक बात का तो अभ्यास करें कि हम अकेले नहीं हैं कभी भी एक क्षण को भी। इसका आप लोग घण्टे-घण्टे भर में पहले अभ्यास कीजिये।
हम अधिक समय नहीं ले रहे हैं आपका। एक घण्टे में, एक सेकेण्ड बस, एक मिनट नहीं, जितनी देर में आप यों यों खुजला लेते हैं, यों यों कर लेते हैं। कोई भी वर्क आपका संसार में ऐसा नहीं है कि समाधि लग जाय।
अरे भाई हर काम करते समय ऑफिस वर्क करते समय भी आप देख लेतें है, कभी इधर को कभी उधर को, कभी कुछ सोच लेते हैं, कभी छींक आ गई, कभी खाँसी आ गई, ये होता ही रहता है आपको संसार में भी वर्क करते समय भी। तो आप घण्टे भर में एक सेकेण्ड को, जैसे मेज आपके सामने है, कुर्सी पर बैठे हैं, मेज के एक किनारे पर आप मन से श्यामसुन्दर को बैठा दीजिये, हाँ बैठ गये, अब तुम देखो मैं वर्क करता हूँ। एक घण्टा हो गया बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। बैठे हो न? हाँ बैठे हैं। एक-एक घण्टे पर रियलाइज किया कि श्यामसुन्दर हमारे साथ हैं हमारे पास हैं, हम अकेले नही हैं। हाँ हमारी प्राइवेसी आज से खत्म। हम कोई बात प्राईवेट सोच नहीं सकते, हमें अधिकार नहीं सोचने का, क्योंकि वो हमारे अन्दर बैठे सब नोट कर रहे हैं। फिर आधे घण्टे पर किया एक सेकेण्ड को कि वो हमारे साथ हैं, फिर पन्द्रह मिनट पर किया।
जब आप यहां तक पहुँच जायेंगे तब आप अनुभव करेगें कि अब ऐसा लग रहा है कि वो हर समय हमारे साथ हैं हर समय वो साथ हैं। उनका रुप ध्यान नहीं लाना है, केवल फीलिंग लाना है कि मेरे प्राण वल्लभ मेरे साथ हैं मैं अकेला नहीं हूँ। हर समय इतना आत्मबल होगा आपको, कितनी खुशी होगी आपको, मेरे श्यामसुन्दर सदा हमारे साथ हैं, मेरे गुरु सदा मेरे साथ हैं, ये इन दोनों को हमको हर समय अपने साथ महसूस करने का अभ्यास करना है। फिर कुछ दिनों बाद आपको करना नहीं पड़ेगा, स्वत: होने लगेगा, यही कर्मयोग की साधना है जो आप अपने सांसारिक कार्य करते हुये साधना पथ पर बढ़ते-बढ़ते अपने लक्ष्य को प्राप्त कर लेगें, दिव्यानन्द की प्राप्ति कर पायेंगे।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'कामना और उपासना' भाग - 2
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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