जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का नौवाँ भाग, दोहा संख्या 41 से 45
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 181
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 8 के दोहा संख्या 40 से आगे)
पट्टी न पढ़ाओ जानि भोरी भारी श्यामा।
तेरी करतूत देखें बैठी उर धामा।।41।।
अर्थ ::: श्रीराधा अत्यंत भोली भाली हैं, ऐसा समझकर उन्हें बहकाने का प्रयत्न न करो। श्रीराधा तो हृदय में बैठकर तुम्हारे प्रत्येक क्षण के प्रत्येक संकल्प को देख रही हैं।
आपु को इकलो न मानो कह बामा।
सदा सर्वत्र तेरे साथ रहें श्यामा।।42।।
अर्थ ::: कभी एक क्षण के लिये भी स्वयं को अकेला न मानो। सदा सब स्थानों पर श्रीराधा तुम्हारे साथ ही हैं।
प्रति जन्म नयी नयी मातु बनी बामा।
बदली न तेरी कभु साँची मातु श्यामा।।43।।
अर्थ ::: जीव के कर्मानुसार शरीर का जन्म मरण होता रहता है। इस कारण हर जन्म में नयी नयी मातायें भी बनीं। आत्मा की माँ श्रीराधा तो सदा से एक ही थीं, एक ही रहेंगी।
बार बार जग ते हटाओ मन बामा।
बार बार श्याम में लगाओ आठु यामा।।44।।
अर्थ ::: अपने मन को बार बार संसार से हटाकर श्यामसुन्दर में ही लगाने का अभ्यास करना है।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गन्ध मन कामा।
दूँगा दिव्य मन कहु चलु ढिग श्यामा।।45।।
अर्थ ::: अपने मन से कहो, तू शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध ही तो चाहता है, चल श्रीराधा के निकट चल, वहाँ तुझे दिव्य शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध प्राप्त होगा।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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