जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 9)
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 182
०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 9) ::::::
(1) गुरु के आदेशों में उचित अनुचित का विचार करना ही भयंकर पाप है।
(2) प्रारब्ध उसी को कहते हैं जब दुःख की कल्पना की जाय किन्तु सुख प्राप्त हो अथवा सुख की कल्पना की जाय और दुःख प्राप्त हो।
(3) मन में क्या है, यह तो लोग नहीं देखते, ऊपरी परिवर्तन पर ध्यान देते हैं। अतएव बाहरी रूप में ऐसा परिवर्तन ला दो कि लोगों को आश्चर्य होने लगे और तुम्हारा परमार्थ भी बन जाय।
(4) जिसको स्प्रिचुअल शक्ति से पॉवर मिल रही है उसकी शक्ति का ह्रास नहीं होता लेकिन संसार वाले को भीतर से तो शक्ति मिल नहीं रही है, अतः उसकी शक्ति का ह्रास होता है। इसीलिये वह थक जाता है।
(5) संसार में अगर कोई प्यार करेगा तो उसकी अंतिम सीमा होगी मृत्यु। चिन्तन से प्रारंभ होकर मृत्यु में समाप्त होगा। ईश्वरीय प्रेम में भी दस अवस्थायें होती हैं किन्तु उसमें मूर्च्छा के पश्चात मृत्यु नहीं होती, भगवत्प्राप्ति होती है। उसी स्प्रिचुअल पॉवर की शक्ति से वह अमरत्व को प्राप्त होता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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