जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का दसवाँ भाग, दोहा संख्या 46 से 50
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 188
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 9 के दोहा संख्या 45 से आगे)
मन को भरोसा दिलाओ आठु यामा।
तेरे तो हैं परम हितैषी श्याम श्यामा।।46।।
अर्थ ::: अपने मन को यही विश्वास दिलाओ कि श्यामा श्याम के अतिरिक्त तेरा कोई हितैषी नहीं है।
और द्वार जाओ न अनन्य बनो बामा।
त्रिगुण, त्रिताप, त्रिकर्म, काटें श्यामा।।47।।
अर्थ ::: जीव को अनन्य आश्रय एकमात्र श्रीराधा का ही ग्रहण करना चाहिये। द्वार-द्वार भटकने से क्या लाभ? जीव के त्रिगुण (सतोगुण, रजोगुण एवं तमोगुण) त्रिताप (दैहिक, दैविक, भौतिक) त्रिकर्म (संचित, प्रारब्ध, क्रियमाण) शरण में जाते ही समाप्त हो जायेंगे।
मूर्ख कर्म करे स्वर्ग हित कह बामा।
ज्ञानी मुक्ति धाम पाये, भक्त हरि धामा।।48।।
अर्थ ::: मूर्ख व्यक्ति सकाम कर्म द्वारा स्वर्ग को प्राप्त करता है। ज्ञानी भी श्रीकृष्ण भक्ति द्वारा मुक्ति प्राप्त कर लेता है किंतु भक्त हरिधाम को ही प्राप्त कर लेता है।
वेद धर्म पालन ते मिले स्वर्ग धामा।
श्याम प्रेम ते ही मिले गोलोक बामा।।49।।
अर्थ ::: वेद-वर्णित धर्म का पालन करने से स्वर्ग की प्राप्ति हो सकती है। किंतु श्यामसुन्दर के लोक (गोलोक) की प्राप्ति तो श्रीकृष्ण-प्रेमियों को ही होगी.
निंदनीय देवी देव भक्ति निष्कामा।
वन्दनीय श्यामा श्याम भक्तिहूँ सकामा।।50।।
अर्थ ::: देवताओं की निष्काम भक्ति भी निंदनीय है। श्यामा श्याम की सकाम भक्ति भी वन्दनीय है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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