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 जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 10)

जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 189

०० जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत प्रवचनों से 5-सार बातें (भाग - 10) ::::::

(1) संसार में जो प्यार करते हैं उसे आसक्ति कहते हैं, वह दिव्य प्रेम नहीं है। आसक्ति का अर्थ है प्रतिक्षण घटमान और प्यार का लक्षण है प्रतिक्षण वर्धमान।

(2) भगवत्प्राप्ति के पहले कभी भी अपने को माननीय न मानो। जब तक माया के अंडर में हो तब तक क्यों सोचते हो कि मैं प्रशंसा के योग्य हूँ?

(3) कोई काम भगवान या संत का समझ में आ जाय तो बड़ी कृपा उसकी समझो लेकिन सब काम समझ में आ जायें, यह भगवत्प्राप्ति के पहले त्रिकाल में भी असंभव है क्योंकि जिस बुद्धि से हम नापते हैं, उस बुद्धि से उसको समझा नहीं जा सकता, नापा नहीं जा सकता और अच्छा या बुरा क्या होता है, यह भगवान और संत ही समझ सकता है।

(4) कुछ लोगों की अपनी मजबूरी होती है, यह बात अलग है लेकिन अधिकांश लोग मन की कमजोरी से नुकसान उठाते हैं।

(5) भगवान शरणागत पर कृपा करता है। वह अपने इस कानून पर दृढ़ है। लेकिन अपने दुराग्रह को छोड़कर हम भी उसकी ओर अभिमुख नहीं होते।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: अध्यात्म संदेश एवं साधन साध्य पत्रिकाएँ
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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