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 कलाई पर मौली धागा बांधने से मिलते हैं ये लाभ....
हिंदू सनातन धर्म में कलाई पर लाल धागा, मौली, नाड़ा बांधने की परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। कलाई पर बांधे जाने वाले धागे को मौली या रक्षासूत्र भी कहा जाता है। पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठान और विशेष तिथियों पर मंत्र उच्चारण करते हुए यह धागा बांधा जाता है। इसके बिना पूजा पूरी नहीं मानी जाती है। कलाई पर बांधी जाने वाली मौली में तीन और पांच रंग के धागे होते हैं। मौली बांधने के धार्मिक लाभ तो होते ही हैं यह स्वास्थ्य के लिए भी बहुत फायदेमंद रहती है।
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार दानवीर राजा बलि की अमरता के लिए वामन स्वरूप में भगवान विष्णु ने उनकी कलाई पर रक्षा सूत्र बांधा था। इसके अलावा जब देवराज इन्द्र वृत्रासुर से युद्ध करने जा रहे थे,तब इंद्राणी ने उनकी भुजा पर रक्षा सूत्र बांधा था। माना जाता की इसलिए रक्षा कवच के रूप में मौली बांधी जाती है।
 जब भी कलाई पर ये धागा बंधवाते हैं तब अपने मंत्रों का जाप भी किया जाता है। जिसका सकारात्मक प्रभाव व्यक्ति पर पड़ता है। मौली में तीन से लेकर पांच रंगों का सूत प्रयोग किया जाता है। ऐसा माना जाता है कि हाथ में मौली का बांधने से मनुष्य पर भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश तथा तीनों देवियों- लक्ष्मी, पार्वती एवं सरस्वती का आशीर्वाद बना रहता है। मान्यता अनुसार मौली बुरी नजर और संकट से रक्षा करती है।
 मौली कलाई पर उस स्थान पर बांधी जाती है, जहां से नाड़ी की गति मापी जाती है और व्यक्ति के शरीर में रोग का पता किया जाता हैं। इस जगह पर मौली बांधने से नाड़ी की गति पर दबाव बना रहता है, इसी स्थान से शरीर का नियंत्रण रहता है। मौली से दबाव बने रहने से कफ, वात और पित्त में सामंजस्य स्थापित होता है, जिससे हम कब,वात और पित्त से संबंधित रोगों से बचे रहते हैं।
मौली का अर्थ :
'मौली' का शाब्दिक अर्थ है 'सबसे ऊपर'। मौली का तात्पर्य सिर से भी है। मौली को कलाई में बांधने के कारण इसे कलावा भी कहते हैं। इसका वैदिक नाम उप मणिबंध भी है। मौली के भी प्रकार हैं। शंकर भगवान के सिर पर चन्द्रमा विराजमान है इसीलिए उन्हें चंद्रमौली भी कहा जाता है।
कहां-कहां बांधते हैं मौली? 
 मौली को हाथ की कलाई, गले और कमर में बांधा जाता है। इसके अलावा मन्नत के लिए किसी देवी-देवता के स्थान पर भी बांधा जाता है और जब मन्नत पूरी हो जाती है तो इसे खोल दिया जाता है। इसे घर में लाई गई नई वस्तु को भी बांधा जाता और इसे पशुओं को भी बांधा जाता है।
मौली करती है रक्षा
मौली को कलाई में बांधने पर कलावा या उप मणिबंध करते हैं। हाथ के मूल में 3 रेखाएं होती हैं जिनको मणिबंध कहते हैं। भाग्य व जीवनरेखा का उद्गम स्थल भी मणिबंध ही है। इन तीनों रेखाओं में दैहिक, दैविक व भौतिक जैसे त्रिविध तापों को देने व मुक्त करने की शक्ति रहती है। 
इन मणिबंधों के नाम शिव, विष्णु व ब्रह्मा हैं। इसी तरह शक्ति, लक्ष्मी व सरस्वती का भी यहां साक्षात वास रहता है। जब हम कलावा का मंत्र रक्षा हेतु पढ़कर कलाई में बांधते हैं तो यह तीन धागों का सूत्र त्रिदेवों व त्रिशक्तियों को समर्पित हो जाता है जिससे रक्षा-सूत्र धारण करने वाले प्राणी की सब प्रकार से रक्षा होती है। इस रक्षा-सूत्र को संकल्पपूर्वक बांधने से व्यक्ति पर मारण, मोहन, विद्वेषण, उच्चाटन, भूत-प्रेत और जादू-टोने का असर नहीं होता।
 

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