अन्तःकरण के सभी दोषों के नाश के ये केवल दो ही उपाय हैं, तीसरा कोई नहीं; जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के प्रवचन!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 191
(भगवत्प्रेम के मार्ग पर आरुढ़ साधक समुदाय के लिये जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से निःसृत अमूल्य वचनामृत...)
ये ज्ञान 24 घंटे बना रहे बस वही शरणागत है। निरंतर बना रहे, निरंतर, निरंतर। इस शब्द पर ध्यान दीजिए, निरंतर।
गोलोक की गोपियों का केवल एक लक्ष्य है, एक लक्ष्य एक वाक्य में - प्रियतम के सुख के लिए मेरा जीवन है! बस दूसरा कोई सबक ना सुनना है, ना पढ़ना है, ना मानना है। इतना ही सबक आप लोगों को भी याद करना है, उनके लिए हमारा जीवन है। हमारे लिए हमारा जीवन नहीं, फिर हमसे जो नीचे हैं, उनके लिए हमारा जीवन कहाँ?
अगर गुरु के नित्य सान्निध्य का अनुभव करे तो साधना में बिजली की तरह आगे बढ़े, फिर क्या देर लगेगी। सबसे बड़ा जुर्म गुरु भगवान से चोरी है। इतना ही कोई स्वीकार करले कि हमारा शरण्य नित्य नोट करता है, हमेशा सावधान रहना है तो कोई गड़बड़ी कभी किसी से नहीं होगी।
दोषों के जाने का दो ही रास्ता है, एक तो हरि गुरु का नित्य सान्निध्य, नित्य देख रहे है - ये प्रतिक्षण फीलिंग लाओ और या तो भगवत्प्राप्ति कर लो, नैचुरल चले जाएंगे सब दोष। तीसरा कोई रास्ता नहीं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
Leave A Comment