जगद्गुरु कृपालु जी महाराज का प्रेम रस सिद्धांत
- प्रेम विशुद्ध और दिव्य तत्व होता है, जो निर्मल मन वाली महान आत्मा को कृपा से मिलता है
आज कल सभी जगह प्रेम की ही चर्चा होती है। प्रेम वास्तव में क्या तत्व है, ये कोई बिरला ही जानता है। सच्चे प्रेम में मिलावट नहीं होती, किसी भी प्रकार की कोई भी इच्छा लेकर सच्चा प्रेम नहीं हो सकता। प्रेम विशुद्ध और दिव्य तत्व होता है, जो निर्मल मन वाली महान आत्मा को कृपा से मिलता है। संसार को यह बात जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने बहुत ही सरल भाषा में बताई है।
नारद भक्ति दर्शन का प्रमाण देते हुए कृपालु जी महाराज ने कहा है कि सबसे विलक्षण तत्व प्रेम है। उन्होंने इस प्रेम की प्राप्ति कैसे होती है, इस बात को संसार को बताने के लिए प्रेम रस सिद्धांत की रचना की है। ब्रज गोपिका सेवा मिशन के प्रयास से श्री कृपालु जी महाराज का विलक्षण साहित्य प्रेम रस सिद्धांत ,दर्जेलिंग भारत के हिल स्टेशन में रेल्वे प्लेटफॉर्म पर यात्रियों के लिए सर्वसुलभ किया गया।
यह ग्रंथ समस्त शास्त्रों वेदों का सार है। कृपालु जी महाराज के पूर्व जितने भी जगद्गुरु हुए है (शंकराचार्य ,रामानुजाचार्य निम्बार्काचार्य एवं माधवाचार्य )उन्होंने संस्कृत भाषा में वेदों का सार लिखा है और लम्बी लम्बी टिकाएं लिखी हैं। जो आज के जन साधारण के लिए बहुत दुरूह है। महाराज श्री ने अत्यंत ही सरल भाषा में सारगर्भित, क्रमिक पाठ्यक्रम के अनुसार और सारे शास्त्रों का सार प्रेम रस सिद्धांत में रखा है। और ये एक ऐसा ग्रंथ है जिसको कोई जिज्ञासु पढ़ता है तो उसकी समस्त आध्यात्मिक शंकाओ का समाधान हो जाता है। और उसका भगवत अनुराग बढ़ जाता है। जो पीड़ा नास्तिकताजन्य है ( मन में निरंतर तमोगुणी, रजोगुणी विचारों का आना) यह ग्रंथ उसी पीड़ा का नाश करता है और व्यक्ति को नास्तिकता से आस्तिक बनाता है।
समस्त मानव समाज को ये ग्रन्थ कम से कम एक बार अवश्य पढऩा चाहिए और ये समझना चाहिए की मानव जीवन का लक्ष्य क्या है?
ब्रज गोपिका सेवा मिशन
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