भक्तिमार्ग के अधिकारियों की तीन प्रमुख श्रेणियाँ कौन-कौन सी हैं?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 196
साधक का प्रश्न: महाराज जी, भक्ति मार्ग का अधिकारी कैसा होता है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर :::
..नातिसक्तो न वैराग्यभागस्यामधिकार्यसौ।
(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो न तो अत्यन्त आसक्त हो, न अत्यन्त विरक्त हो वह भक्तिमार्ग का अधिकारी होता है। अधिकारी तीन प्रकार के होते हैं।
उत्तमो मध्यमश्चैव कनिष्ठश्चेति तलिधा।
(1) उत्तम (2) मध्यम (3) कनिष्ठ।
(1) उत्तम अधिकारी,
शास्त्रे युक्तौ च निपुणः सर्वथा दृढनिश्चयः।
प्रौढ़श्रद्धोऽधिकारी यः स भक्तावुत्तमो मतः।।
(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो शास्त्र एवं युक्ति दोनों ही में निपुण होता है, तथा जो सब प्रकार से दृढ़ निश्चय वाला होता है, एवं जिसकी श्रद्धा प्रगाढ़ होती है, वही भक्ति मार्ग का उत्तम अधिकारी है। ऐसे अधिकारी पर कुसंग अथवा तार्किकों के वाग्जाल का कुछ भी प्रभाव नहीं पड़ता, अतएव वह साधना में प्रतिक्षण अग्रसर होता जाता है।
(2) मध्यमाधिकारी,
यः शास्त्रादिष्वनिपुणः श्रद्धावान्स तु मध्यमः।
अर्थात जो शास्त्र एवं युक्ति में निपुण नहीं होता, किन्तु श्रद्धावान होता है, वह भक्ति मार्ग का मध्यम अधिकारी है। शास्त्र एवं युक्ति के द्वारा तत्वज्ञान दृढ़ न होने के कारण तर्कवादियों के वाग्जाल द्वारा उसका पतन हो सकता है, वह श्रद्धा के बल पर ही टिका रहता है। यदि कुसंग न मिला तब तो वह श्रद्धा से ही लक्ष्य पर पहुँच जाता है, किन्तु कुसंग के मिलने पर वह स्वयं संशयात्मा बन कर निराश तथा भ्रष्ट हो जाता है।
(3) कनिष्ठ अधिकारी,
यो भवेत्कोमलश्रद्धः स कनिष्ठो निगद्यते।
(भक्तिरसामृतसिन्धु)
अर्थात जो साधारण-श्रद्धा से युक्त होता है, एवं शास्त्र तथा युक्ति से सर्वथा ही अपरिचित होता है, वह भक्ति मार्ग का कनिष्ठ अधिकारी है, उसके पास शास्त्र एवं युक्ति के बल का तो सर्वथा ही अभाव है, साथ ही श्रद्धा भी अल्प है, अतएव ऐसे अधिकारी के पतन की प्रतिक्षण विशेष आशंका है। ऐसे साधक किंचित भी कुसंग-प्राप्ति से तथा किंचित भी तार्किकों के वाग्जाल से पथ भ्रष्ट हो जाते हैं। अतएव साधक को शास्त्र एवं युक्ति से युक्त तथा दृढ़ निश्चय वाला होकर प्रगाढ़ श्रद्धावान होना चाहिये, तभी वह निर्भयता पूर्वक निस्संदेह शीघ्र ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकता है।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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