जगद्गुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी विरचित 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का बारहवाँ भाग, दोहा संख्या 56 से 60
जगद्गुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 207
जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज विरचित 1008-ब्रजभावयुक्त दोहों के विलक्षण ग्रन्थ 'श्यामा श्याम गीत' के दोहे, ग्रन्थ की प्रस्तावना सबसे नीचे पढ़ें :::::::
(भाग - 11 के दोहा संख्या 55 से आगे)
झूठे ही बुलावें लोग आओ उर श्यामा।
कहाँ आवें नातेदार बैठे उरधामा।।56।।
अर्थ ::: संसारी जीव शुद्ध हृदय से श्यामा श्याम को नहीं बुलाते। जिस हृदय में सांसारिक संबंधी विराजमान हैं उसमें श्यामा-श्याम किस प्रकार आवें?
डेरा डारे नातेदार बैठे उरधामा।
उनको निकालो तो मैं आऊँ कह श्यामा।।57।।
अर्थ ::: किशोरी जी कहती हैं, तुम्हारे हृदय में सांसारिक संबंधियों ने अपना स्थान जमा रखा है। जब तुम उन्हें हृदय से बाहर करो तब तो मैं तुम्हारे हृदय में अपना स्थान बनाऊँ।
उर में बिठाना चाहो जग संग श्यामा।
अंधकार रवि कभु रहे एक ठामा।।58।।
अर्थ ::: जिस हृदय में जगत का निवास है, उसमें श्री किशोरी राधिका अपना स्थान कैसे स्थापित करे? अंधकार और सूर्य कभी एक साथ नहीं रह सकते।
संसारी नर नारी में आठु यामा।
भगवद् भाव नहिं सदा रहे बामा।।59।।
अर्थ ::: संसारी स्त्री-पुरुषों में निरंतर भगवद्भाव नहीं रखा जा सकता।
जाको होवे प्रेम जासों मृत्युलोक धामा।
मृत्यु के बाद उसे वही मिले बामा।।60।।
अर्थ ::: मृत्युलोक में जीवित अवस्था में जिसका जिससे प्रेम होता है, मृत्यु के बाद उसे वही प्राप्त होता है।
०० 'श्यामा श्याम गीत' ग्रन्थ का परिचय :::::
ब्रजरस से आप्लावित 'श्यामा श्याम गीत' जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की एक ऐसी रचना है, जिसके प्रत्येक दोहे में रस का समुद्र ओतप्रोत है। इस भयानक भवसागर में दैहिक, दैविक, भौतिक दुःख रूपी लहरों के थपेड़ों से जर्जर हुआ, चारों ओर से स्वार्थी जनों रूपी मगरमच्छों द्वारा निगले जाने के भय से आक्रान्त, अनादिकाल से विशुध्द प्रेम व आनंद रूपी तट पर आने के लिये व्याकुल, असहाय जीव के लिये श्रीराधाकृष्ण की निष्काम भक्ति ही सरलतम एवं श्रेष्ठतम मार्ग है। उसी पथ पर जीव को सहज ही आरुढ़ कर देने की शक्ति जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की इस अनुपमेय रसवर्षिणी रचना में है, जिसे आद्योपान्त भावपूर्ण हृदय से पढ़ने पर ऐसा प्रतीत होता है जैसे रस की वृष्टि प्रत्येक दोहे के साथ तीव्रतर होती हुई अंत में मूसलाधार वृष्टि में परिवर्तित हो गई हो। श्रीराधाकृष्ण की अनेक मधुर लीलाओं का सुललित वर्णन हृदय को सहज ही श्यामा श्याम के प्रेम में सराबोर कर देता है। इस ग्रन्थ में रसिकवर श्री कृपालु जी महाराज ने कुल 1008-दोहों की रचना की है।
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
Leave A Comment