ईश्वरीय राज्य की दो स्थितियाँ 'महारास' और 'प्रेमानन्द' क्या एक ही हैं अथवा इनमें क्या विशेष बात है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 210
साधक का प्रश्न ::: महाराज जी! महारास और प्रेमानंद एक ही बात है या महारास अलग है?
जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: आनंद में भी अनेक स्तर हैं। जैसे माया के क्षेत्र में अनेक स्तर हैं - तमोगुण, रजोगुण, सत्वगुण। ऐसे ही आनंद के क्षेत्र में भी अनेक स्तर हैं; जैसे ज्ञानियों का ब्रह्मानंद। यह आनंद अनंत मात्रा का होता है, दिव्य होता है, सदा के लिए होता है। किन्तु ये सबसे निम्न कक्षा का आनंद है। आनंद और निम्न कक्षा, दो विरोधी बातें हैं। यद्यपि आनंद अनंत मात्रा का होता है, अनिर्वचनीय होता है, शब्दों में उसका निरूपण नहीं हो सकता, ईश्वरीय आनंद का। न कोई कल्पना कर सकता है मनबुद्धि से। इन्द्रिय, मन, बुद्धि की वहाँ गति नहीं है। वो भूमा है।
फिर भी, आनंद के जितने स्तर हैं उन में सबसे निम्न स्तर है
ज्ञानियों का ब्रह्मानंद। निर्गुण, निर्विशेष, निराकार ब्रह्मानंद। इसके बाद फिर सगुण साकार का आनंद प्रारम्भ होता है। उसमें भी अनेक स्तर है। शांत भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा दास्य भाव का प्रेमानंद, उससे ऊँचा सख्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस वात्सल्य भाव का प्रेमानंद, उससे अधिक सरस माधुर्य भाव का प्रेमानंद।
माधुर्य भाव में भी तीन स्तर हैं। सकाम माधुर्य भाव के प्रेमानंद का स्तर उन तीनों में निम्न कक्षा का है। उसे साधारणी रति का प्रेमानंद कहते हैं और समञ्जसा रति का प्रेमानंद उससे उच्च कक्षा का है और समर्था रति का आनंद सर्वोच्च कक्षा का है। तो समर्था रति का प्रेमानंद जिनको मिलता है, सिद्ध महापुरुषों में भी अरबों-खरबों में किसी एक को मिलता है वो। उस रस को महारास कहते हैं।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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