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 पाँच प्रकार की कामनायें साधारण मनुष्य भी करते हैं और भगवान और संत भी, फिर इन दोनों के परिणामों में क्या अंतर है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - 213

साधक का प्रश्न - पाँच कामनायें भगवान् व संत भी करते हैं और संसारी भी। तो दोनों के परिणामों में क्या अन्तर है?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: देखो, भगवान् कहते हैं;

सब कर ममता ताग बटोरी,
मम पद कमल बाँधु बट डोरी॥

तुम सब ममता को हटा कर मुझ में ममता कर लो। अरे! ममता तो हुई। वही बीमारी तो है। माँ से, बाप से, बेटे से, बीबी से, पति से ममता करते थे, अब आप कहते हैं मुझसे ममता करो। तो ममता की बीमारी तो अब भी बनी हुई है।

कामना - पाँच प्रकार की कामनाएँ हम लोग करते हैं। माँ-बाप, बेटा, स्त्री-पति, धन-प्रतिष्ठा, संसार को देखना, देखकर सुख मिलता है। सुनना, सूंघना, रस लेना, स्पर्श करना ये पाँच विषय कहलाते हैं। इन पाँच विषयों से बचने की हिदायत की गई है- शास्त्रों में और ये पाँचों की कामना करते हैं संत लोग, भगवान् भी।

जो जो कामना हम संसार में करते हैं, माँ से, बाप से, बेटे से, पति से, वही कामना गोपियाँ और भक्त लोग कर रहे हैं भगवान् से। चार भाव हैं न- दास्य भाव, सख्य भाव, वाल्सल्य भाव और माधुर्य भाव। तो माधुर्य भाव में पाँचों भाव हैं, सब भाव हैं। जब चाहो प्रियतम मान लो, जब चाहो बेटा मान लो, जब चाहो सखा मान लो, जब चाहो स्वामी मान लो। तो सब भाव आ गये इसी में। तो जैसे संसार में कोई विवाहिता स्त्री चोरी-चोरी दूसरे पुरुष से प्यार करती है या कोई कन्या अविवाहित किसी दूसरे लड़के से प्यार करती है, ऐसे ही तो गोपियों ने किया।

कुछ कन्याएँ गोपियाँ थीं, जिन्होंने कात्यायिनी व्रत किया था और जिनका चीर हरण किया था श्रीकृष्ण ने और कुछ विवाहिता स्त्रियाँ थीं जो चोरी-चोरी श्रीकृष्ण से प्यार करती थीं। तो बड़ा आश्चर्य हुआ परीक्षित को। ये तो व्यभिचार है। संसार में इसको बुरा कहते हैं लोग। और इससे गोपियाँ इतनी ऊँची कक्षा में चली गईं कि ब्रह्मा शंकर उनकी चरण-धूलि चाहते हैं।

क्वेमाः स्त्रियो वनचरीर्व्यभिचारदुष्टा: कृष्णे क्व चैष परमात्मनि रूढभावः।
नन्वीश्वरोऽनुभजतोऽविदुषोऽपि साक्षाच्छ्यस्तनोत्यगदराज इवोपयुक्तः।।
(भागवत 10-47-59)

यानी दुराचारिणी गोपियाँ जो पति से छुप करके अथवा बिना विवाह के ही श्यामसुन्दर से चोरी-चोरी प्रियतम के भाव से प्यार करती थीं, उनको इतना ऊँचा स्थान मिल गया, जो महालक्ष्मी को नहीं मिला, भगवान् की अर्धांगिनी को? तो उत्तर दिया कि देखो, अमृत को कोई जानकर पिये चाहे अनजाने में पिये अमर होगा। पारस लोहे से छू जाय। चाहे अनजाने में छू जाय, चाहे कोई छुआ दे, सोना बनेगा। तो ऐसे ही चाहे काम भाव से, चाहे क्रोध से, चाहे ईर्ष्या से, चाहे लोभ से, सही पर्सनैलिटी में मन का अटैचमेन्ट कर दें, बस, उस पर्सनैलिटी का फायदा मिल जायेगा उसको।

लौहशलाकानिवहै: स्पर्शाश्मनि भिद्यमानेऽपि।
स्वर्णत्वमेति लौहं द्वेषादपि विद्विषां तथा प्राप्तिः॥
(प्रबोध सुधाकर, शंकराचार्य) 

लोहे की कुल्हाड़ी से पारस पत्थर पर मारो, वो कुल्हाड़ी सोने की हो जायेगी। तो राक्षस जो दुश्मनी करके भगवान् से प्यार कर लिये (कंस, शिशुपाल) वे भी गोलोक गये; क्योंकि मन का अटैचमेन्टहो गया, चाहे दुश्मनी से हो चाहे प्यार से हो। चाहे माँ मान कर हो, चाहे बाप मानकर हो, चाहे प्रियतम मानकर हो, चाहे सखा मानकर हो। मन का अटैचमेन्ट हो जाना, बस, इतना सा काम है उपासना का और कोई मनुष्य कमाल नहीं कर सकता। क्या करेगा? उसकी इन्द्रियाँ भी मायिक, मन भी मायिक, बुद्धि भी मायिक और भगवान् दिव्य हैं और दिव्य इन्द्रिय, दिव्य मन, दिव्य बुद्धि कहाँ से लायेगा मनुष्य? लेकिन जिससे प्यार करोगे, बस उसी की प्राप्ति हो जायेगी। भाव चाहे जो हो। चाहे प्यार से आग में बैठ जाओ सती होने के लिए, तो भी जला देगी आग और चाहे कोई हाथ-पैर बाँध कर फेंक दे, तो भी आग जला देगी। आग अपना काम करेगी।

तो शुद्ध पर्सनैलिटी में अशुद्ध पर्सनैलिटी मिल जायेगी तो शुद्ध हो जायेगी और शुद्ध तो शुद्ध रहेगी। गंगा जी में कितने नाले मिलते हैं, कितनी नदियाँ मिलती हैं, गंगोत्री से लेकर बंगाल की खाड़ी तक, लेकिन जो भी पानी मिलेगा वो गंगाजी बन जायेगा।

रवि पावक सुरसरि की नाईं।

ऐसे ही परीक्षित! गोपियाँ किसी भाव से भी गईं शरण में मन का प्यार किया, लेकिन भगवान् तो शुद्ध थे ना तो शुद्ध का फल मिल गया, गोपियाँ शुद्ध हो गयीं। तो चाहे जिस भाव से भगवान् से प्यार करो,

येन केन प्रकारेण मनः कृष्णः निवेशयेत्।
(भक्तिरसामृतसिंधु)

जिस किसी प्रकार से भी करो;

कामं क्रोधं भयं स्नेहमैक्यं सौहृदमेव च।
नित्यं हरौ विदधतो यान्ति तन्मयतां हि ते॥
(भाग. 10-29-15)

बार-बार शुकदेव परमहंस उत्तर दे रहे हैं कि जब शिशुपाल वगैरह गोलोक चले गये, दुश्मनी करके प्यार करने वाले, तो गोपियाँ गोलोक गयीं इसमें क्या आश्चर्य है? और फिर भगवान् नहीं हैं हमारे पास, तब तो हमें भगवान् के माहात्म्य का ज्ञान आवश्यक है। भगवान् कौन हैं? हमारे क्या सम्बन्ध हैं उनसे? हमारे कौन लगते हैं? हम उनसे प्यार क्यों करें? ये तमाम नॉलेज चाहिये। लेकिन जब भगवान् अवतारकाल में होते हैं तो वहाँ माहात्म्य ज्ञान नहीं रहता। वहाँ प्यार करना होगा बस और सबसे ऊँचा प्यार माधुर्य भाव का, प्रियतम मान करके। अब तुम ये कहो कि हम पहले ही निष्काम हो जायेंगे, ये नहीं हो सकता। शुद्धि तो बार-बार धोने से होगी, साबुन से बार- बार धोने से। कोई कहे कि हम शुद्ध हो के तब भक्ति करेंगे, तो शुद्ध कैसे होओगे तुम। भक्ति ही तो शुद्ध करेगी तुमको। शुद्ध पर्सनेलिटी से जब प्यार करोगे तो उसका विरह पैदा होगा, तो उसी के ताप से तो अन्त:करण शुद्ध होगा, पिघलेगा।

तो शुद्ध से प्यार करना है, भाव कोई हो। देखो! एक बाप के चार लड़कियाँ हैं। वो चार लड़कों से ब्याह कर देता है। एक लड़की का पति अच्छी सर्विस नहीं पाया, तो चपरासी बन गया। एक क्लर्क बन गया, एक इंस्पेक्टर बन गया, एक कलेक्टर बन गया, आई. ए. एस. में आ गया। अब चार लड़कियाँ जिन-जिन से उनका ब्याह किया उन्हीं का स्वरूप उनको मिल गया। एक कलेक्टर की बीबी कहलाने लगी मेमसाहब, एक बबुआइन कहलाने लगी, एक चौकीदारिन कहलाने लगी।

तो उसी प्रकार ये मन है। तमोगुणी से प्यार किया, तमोगुणी का फल मिला। रजोगुणी से प्यार किया, रजोगुण का फल मिला। सत्त्वगुणी से प्यार किया सत्त्वगुण का फल मिला और तीन गुणों से परे शुद्ध भगवान् और महापुरुष से प्यार किया तो शुद्ध मायातीत दिव्यानन्द मिल गया। प्यार करने के तरीके में कोई अन्तर नहीं है। वही इन्द्रियाँ हैं, वही मन है, वही बुद्धि है जिससे आप लोग संसार में प्यार करते हैं। वैसा ही प्यार करना है उधर भी। लेकिन वो चूँकि शुद्ध है, इसलिये तुम शुद्ध हो जाओगे और अशुद्ध से प्यार करोगे, अशुद्ध हो जाओगे। गन्दे पानी से गन्दा कपड़ा धोओगे और गन्दा हो जायेगा। शुद्ध जल से गन्दा कपड़ा धोओगे, कपड़े का मैल छूटेगा, वह शुद्ध बनेगा। बड़ी सीधी-सी बात है। इसी बात को भगवान् अर्जुन से कहते हैं;

यान्ति देवव्रता देवान् पितॄन्यान्ति पितृव्रताः।
भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपि माम्।।
(गीता 9-25)

जो सत्त्वगुणी से प्यार करेगा (देवताओं से) वो स्वर्ग जायेगा। चार दिन बाद फिर आयेगा मृत्युलोक में; कुत्ते, बिल्ली, गधे की योनियों में। जो रजोगुणी से प्यार करेगा, वो संसार में मनुष्य वगैरह बनेगा, यहाँ दुःख भोगेगा। वो तमोगुणी, रजोगुणी, सत्त्वगुणी चाहे बाप हो, चाहे माँ हो, चाहे पति हो, चाहे बेटा हो, कोई हो; हमारे मन का अटैचमेन्ट जिससे होगा बस उसी का फल हमको मिल जायेगा, सीधा-सा गणित है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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