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  जादूगर लोग जो जादू दिखलाते हैं, वह सिद्धि के बल पर दिखाते हैं या कुछ और? जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी द्वारा उत्तर!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 216

साधक का प्रश्न ::: महाराज जी जादूगर लोग जो जादू दिखाते हैं, इनके पास सिद्धियाँ होती हैं जो दिखाते हैं या और कुछ?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: नहीं-नहीं सिद्धियाँ नहीं होती। कलायें हैं। वो तो सिखाते हैं, उनके यहाँ बाकायदा क्लास होती है। और सिद्धियाँ जो होती हैं; तामसी भी होती हैं, राजसी भी होती हैं, सात्त्विक भी होती हैं, निर्गुणा भी होती हैं - ये चार प्रकार की सिद्धियाँ होती हैं। लेकिन ये जो दिखाते हैं, आमतौर से जादूगर लोग ये सिद्धि से नहीं होता। ये तो ऐसे-इनकी अपनी कला है और जो तामसी सिद्धि करते हैं वह अधिकांश कुछ लोग हैं, वह सिद्धि से काम करते हैं लेकिन उनको मरने के बाद नरक मिलता है। तामसी सिद्धि है - किसी को तंग करना, किसी के द्वारा स्वार्थ सिद्ध करना। वह भी इने गिने कहीं होंगे और रजोगुणी सिद्धि वाले और कम। सात्विक सिद्धि वाले तो कहीं ढूँढने से नहीं मिलेगा। उसमें अणिमा, लघिमा, गरिमा वगैरह सिद्धियाँ हैं। वो तो आमतौर से भगवान् के पास महापुरुषों के पास रहती हैं। निर्गुण और सात्विक। 

जस जस सुरसा बदनु बढ़ावा।
तासु दून कपि रूप दिखावा।।
अति लघु रूप कीन्ह हनुमाना।

ये सब सिद्धियों के काम हैं। महापुरुष सिद्धि से काम नहीं लेता कभी इमरजेंसी में जरूरत पड़ जाती है तो। अब राम का काम था इसलिए ले लिया हनुमान जी ने, वरना वो न लेते। वह तो हाथ जोड़ते रहते हैं, उसकी तो पिटाई करते रहो तो भी हाथ जोड़ते रहते हैं। न भगवान् को बुलावे न सिद्धि को।

रामकृष्ण परमहंस से लोगों ने कहा कि आप तो सिद्ध हैं ये कैंसर आपको है ये सिद्धि से ठीक कर लीजिए। तो उन्होंने कहा गन्दे शरीर के लिए हम भगवान् को बुलावें। माँ को बुलावें? दुर्गा को? अरे ये तो जाना ही है, वर्तमान में भी गन्दा है, जायेगा तो भी। हम ऐसा नहीं करते। किसी राजा से दोस्ती करो तो उससे पाखाना उठवाओ। अरे जिससे दोस्ती करो उसी क्लास के उससे काम लेना चाहिए। अब भगवान् की इच्छा हो कि हाँ इसको कैंसर से ठीक कर दिया जाय, अभी दस साल इनसे और सेवा ली जाय संसार की। वह कर दें उनकी इच्छा हो। हम नही कह सकते।

तुलसीदास ने नहीं कहा हमारी रामायण की रक्षा करो, पहरेदारी करो। लेकिन राम ने किया। उनको काम लेना है तुलसीदास से। तो उन्होंने कहा ठीक है हम करेंगे। इच्छा में इच्छा रखना ही तो प्रेम है, शरणागति है। अगर उनको ऐसे अच्छा लगता है कि हम बीमार बने रहें हमेशा। तो ठीक है उनको सुख मिलना चाहिए। जैसे भी मिले। कोई महापुरुष सोलह वर्ष की उमर में मर गया। कोई तीस साल में मरा, कोई पचास साल में मरा। अब क्यों मरा। महापुरुष जब चाहे तब मरे। स्वेच्छा से शरीर छोड़ता है। जैसी भगवान् की इच्छा। उन्होंने कहा- अब तुम्हारा काम हो गया आ जाओ। हाँ ठीक है, हमको क्या करना है। हम तो सर्वेन्ट हैं। ठीक है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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