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भगवान के प्रति अपने भावों तथा अनुभवों को जगजाहिर न करो, इस पूंजी को अपने हृदय में ही छिपाकर रखो!!

  जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 222

(भगवदीय ज्ञान का प्रचार तो आवश्यक है, परन्तु अपने हृदय के भाव आदि का गोपन क्यों परमावश्यक है, जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुख से समझने का प्रयास करें...)

..भगवान के प्रति अपने मन के भाव और अपने भगवत अनुभवों को अपने तक सीमित रखो लोकरंजन न बनाओ जैसे आपकी सांसारिक पूंजी (धन) जो आपके अकाउंट में जमा है उसके बारे में आप किसी को नहीं बताते ठीक वैसे ही भगवान के प्रति आपके भाव और भक्ति से प्राप्त अनुभव आपकी असली पूंजी है उसके विषय में भी किसी को न बतायें। इसे भगवान की कृपा मानकर बार-बार इसका चिंतन करो, इससे भगवान में आपकी श्रद्धा दृढ़ होगी और आप तेजी और विश्वास से भगवान की तरफ बढ़ेंगे।

ज्ञान का आदान-प्रदान करना बहुत अच्छी बात है, लेकिन भगवान के प्रति अपने भाव और भक्ति को लोगों के सामने उजागर करना अज्ञानता है।

संसार को भक्ति मार्ग पर लाने में सहायक बनो किंतु अपनी भक्ति और प्राप्त अनुभव को बचा कर रखो, यह भक्ति और अनुभव आपके और भगवान के बीच की बात है अत: गुप्त रखें नहीं तो सब कुछ यहीं बर्बाद हो जाएगा, कुछ साथ नहीं जाएगा...

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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