व्रत कथा के बिना अधूरा माना जाता है विनायक गणेश चतुर्थी व्रत
विनायक चतुर्थी के दिन भगवान श्रीगणेश की विधि-विधान के साथ पूजा की जाती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, चतुर्थी के दिन श्रीगणेश की पूजा करने और व्रत रखने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि और खुशहाली आती है। इस महीने विनायक चतुर्थी 17 मार्च (बुधवार) को है। हर महीने दो चतुर्थी पड़ती हैं- पहली शुक्ल पक्ष और दूसरी कृष्ण पक्ष में। शुक्ल पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी को विनायक चतुर्थी कहते हैं और कृष्ण पक्ष में पडऩे वाली चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है।
कहा जाता है कि विनायक चतुर्थी के दिन विघ्नहर्ता की पूजा के दौरान भगवान श्री गणेश की कथा को सुनना या पढऩा चाहिए। मान्यता है कि विनायक चतुर्थी की कथा सुनने या पढऩे से भक्तों के समस्त कष्ट दूर हो जाते हैं।
पढ़ें विनायक चतुर्थी की कथा-
एक दिन भगवान भोलेनाथ स्नान करने के लिए कैलाश पर्वत से भोगवती गए। महादेव के प्रस्थान करने के बाद मां पार्वती ने स्नान प्रारंभ किया । स्नान करते हुए अपने उबटन के मैल से एक पुतला बनाकर और उस पुतले में जान डालकर उसको जीवित कर दिया। पुतले में जान आने के बाद देवी पार्वती ने पुतले का नाम गणेश रखा। पार्वती जी ने बालक गणेश को स्नान करते जाते वक्त मुख्य द्वार पर पहरा देने के लिए कहा। माता पार्वती ने कहा कि जब तक मैं स्नान करके न आ जाऊं किसी को भी अंदर नहीं आने देना।
उधर भोगवती में स्नान कर जब भगवान शिव घर के अंदर आने लगे तो बाल स्वरूप गणेश ने उनको द्वार पर रोक दिया। भगवान शिव की लाख कोशिश के बाद भी गणेश ने उनको अंदर नहीं जाने दिया। गणेश द्वारा रोकने को भगवान शिव ने अपना अपमान समझा और बालक गणेश का सर धड़ से अलग कर दिया और घर के अंदर प्रवेश कर गए। शिवजी जब घर के अंदर गए तो बहुत क्रोधित अवस्था में थे। ऐसे में देवी पार्वती ने सोचा कि भोजन में देरी की वजह से वो नाराज हैं, इसलिए उन्होंने दो थालियों में भोजन परोसकर उनसे भोजन करने का निवेदन किया।
शिवजी ने लगाया था हाथी के बच्चे का सिर
दो थालियां लगी देखकर शिवजी ने उनसे पूछा कि दूसरी थाली किसके लिए है? तब माता पार्वती ने जवाब दिया कि दूसरी थाली पुत्र गणेश के लिए है, जो द्वार पर पहरा दे रहा है। तब भगवान शिव ने देवी पार्वती से कहा कि उसका सिर मैंने क्रोधित होकर धड़ से अलग कर दिया। इतना सुनकर पार्वतीजी दुखी हो गई और विलाप करने लगी। उन्होंने भोलेनाथ से पुत्र गणेश का सिर जोड़कर जीवित करने का आग्रह किया। तब महादेव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर श्रीगणेश के धड़ से जोड़ दिया और उसे जीवित कर दिया। अपने पुत्र को फिर से जीवित पाकर माता पार्वती अत्यंत प्रसन्न हुई। कहा जाता है कि जिस तरह भगवान शिव ने श्रीगणेश को नया जीवन दिया था, उसी तरह भगवान गणेश भी नया जीवन अर्थात आरम्भ के देवता माने जाते हैं। इसलिए उनकी सबसे पहले पूजा की जाती है।
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