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 गृहस्थ में रहते हुये भी यदि कोई साधना करना चाहे तो क्या यह प्रैक्टिकली संभव है, जानिये साधना का सबसे महत्वपूर्ण पहलू क्या है?
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 244

साधक का प्रश्न ::: यह कहा तो जाता है कि गृहस्थी भी परिवार में रह कर भी साधना कर सकता है, लेकिन क्या यह प्रैक्टिकली सम्भव है?

जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा उत्तर ::: ममता मन में होती है, परिवार बाहर होता है। तो देखो, अगर संसार में बाप-बेटे में, मियाँ-बीवी में लड़ाई हो जाए तो मन विरक्त हो जाता है न? और दोनों घर में रहते हैं और बोलचाल बंद हो जाती है।

तो अगर मन को हम भगवान में लगा दें तो परिवार रहा करे, हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकता। और अगर वृन्दावन में रह करके परिवार का चिन्तन करे बैठे बैठे तो चला गया संसार में मन। मन ही तो मेन (सर्वप्रमुख) है। बंधन और मोक्ष का कारण मन है, शरीर नहीं। तो मन को भगवान में लगाओगे तभी वैराग्य होगा।

यह जरूर है कि परिवार में रह करके खराब एटमॉसफियर (वातावरण) मिलने के कारण साधना तेज नहीं होती और अलग रह करके साधना तेज होती है। लेकिन साधना होनी चाहिए 'मन' की। अगर बच्चे के सामने रसगुल्ला रखा हो और उसको लेक्चर दो कि 'मत खाओ, दाँत गिर जाएँगे', वह नहीं सुनेगा, चिल्लाएगा, रोएगा। रसगुल्ला न हो और रसगुल्ला बच्चा माँगे तो उसको बहला दो, फुसला दो, और जगह माइंड को डायवर्ट कर दो तो बात खत्म हो जाएगी। तो उसी प्रकार माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति, धन, प्रतिष्ठा हो तो मन उसमें जल्दी जायेगा और उससे अलग हो करके साधना करो तो देर में जाएगा, कभी कभी जाएगा। फिर उसको भगवान में लगाते जाओ जब उधर जाए तो। यही साधना है, अभ्यास और वैराग्य।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज साहित्य
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

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