कुम्भकोणम, जहां ब्रह्मा ने अमृत से भरे कुम्भ को रखा था
कुम्भकोणम तमिलनाडु प्रदेश में कावेरी नदी के तट पर मायावरम से 20 मील (लगभग 32 कि.मी.) की दूरी पर स्थित एक प्राचीन नगर है। प्राचीन समय में यह नगर शिक्षा का महान केन्द्र हुआ करता था। यह स्थान दक्षिण भारत के प्रमुख तीर्थ स्थलों में से एक है। यहां पर कुम्भ मेले का आयोजन भी होता है।
कुम्भकोणम को संस्कृत में कुम्भघोणम कहा जाता है। दक्षिण भारत की इस पावन भूमि पर प्रत्येक बारह वर्ष के पश्चात कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। एक मान्यता के अनुसार ब्रह्मा ने अमृत से भरे कुम्भ को इसी स्थल पर रखा था। इस अमृत कुम्भ से कुछ बूंदे बाहर छलक कर गिर गई थीं, जिस कारण यहां की भूमि पवित्र हो गई। इसलिए इस स्थान को कुम्भकोणम के नाम से जाना जाता है।
तमिलनाडु के इस प्रसिद्ध तीर्थ स्थल के समीप अनेक मंदिरों को देखा जा सकता है। यहां पर सौ से भी ज़्यादा मंदिर स्थापित हैं। इनमें से कुछ प्रमुख मंदिर, जैसे की नदी के तट पर ही महाकालेश्वर तथा अन्य कई देव मंदिर हैं, जिसमें सुन्दरेश्वर शिवलिंग तथा मीनाक्षी जो मां पार्वती हैं, की सुन्दर प्रतिमाएं स्थापित हैं। इसके समीप ही महामाया का मंदिर है। लोगों की विचारधार अनुसार महामाया के मंदिर में स्थापित मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी।
महाधरम सरोवर में कुम्भेश्वर मंदिर के पास ही नागेश्वर मंदिर स्थापित है। इस मंदिर में भगवान शंकर लिंग रूप में प्रतिष्ठित हैं। यहां के परिक्रमा मार्ग में अन्य मूर्तियाँ भी हैं, जो सभी को आकर्षित करती हैं। यहां सूर्य भगवान का मंदिर भी स्थापित है। किंवदंती है की भगवान सूर्य ने यहां भगवान शिव की आराधना की थी, जिसका एक चमत्कारी पहलू देखने को मिलता है, जिसमें नागेश्वर लिंग पर वर्ष के एक दिन सूर्य की किरणें पड़ती हुई देखी जा सकती हैं। यहां के दर्शनीय स्थलों में प्रमुख हैं- महाधरम सरोवर, कुम्भेश्वर मंदिर, रामस्वामी मन्दिर, शांगपाणि मंदिर और वेदनारायण मंदिर
कुम्भकोणम में इन मन्दिरों के अलावा कालहर्सीश्वर, बाणेश्वर, गौतमेश्वर, सोमेश्वर आदि मन्दिर भी स्थापित हैं।
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