गुरु-उपदेशों का बार-बार चिन्तन न करना बहुत बड़ी लापरवाही है; जगदगुरु श्री कृपालु महाप्रभु जी के श्रीमुख से!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 280
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से गुरु उपदेशों के प्रति साधक के कर्तव्य तथा उसकी लापरवाही के सम्बन्ध के संबंध में कुछ मार्गदर्शन..)
....हमको जो सुख मिलता है, वो आत्मा का सुख नहीं है मन का है और लिमिटेड है और वो नश्वर है। तमाम गड़बड़ियाँ हैं उसमें। जो भी सुख हमको मिलता है संसार में वो सदा नहीं रहता। ये तो अनुभव करता है आदमी। भूख लगी है रसगुल्ला खाया सुख मिला। उसमें भी पहले रसगुल्ले में ज्यादा सुख मिला, दूसरे में उससे कम, तीसरे में उससे कम, चौथे में खतम। जिस वस्तु से सुख मिलता है उससे भी हमेशा एक सा नहीं मिलता। धीरे-धीरे घटता जाता है और फिर उसी से दुःख मिलने लगता है। ये भी होता है। स्वार्थ हानि हुई कि दुःख। उसी बीबी से प्यार और उसी बीबी की शकल देखने से नफरत हैं। उसी बेटे से प्यार है और उसी से झगड़ा हो गया या कोई अपमान कर दिया बाप का तो उससे बातचीत करना बन्द। तो संसार का सुख तो अगर थोड़ा है और सदा रहे तो भी कोई बात है। वो तो आया गया, धूप-छाँव की तरह।
तो ये सब बातें हमेशा बुद्धि में बैठी रहें। कभी बैठती हैं कभी गायब हो जाती हैं, फिर संसार में बह जाता है वो लापरवाही से।
तत्त्वविस्मरणात् भेकीवत्।
भूल गया। तो फिर क्या होगा? बहुत बचपन की बात है। एक व्यक्ति डायरी रखता था हमेशा। उसको भूलने की आदत थी, तो उसमें लिख ले। तो हमने कहा - एक बात बताओ, वो डायरी में लिख लेता है और अगर डायरी पढ़ना भूल जाय तो वो लिखा हुआ क्या करेगा? डायरी में कोई लिख ले क्यों लिख ले? भूल जायेगा। बढ़िया तरकीब है। अच्छा जी! ये तरकीब अगर बढ़िया है लेकिन वो पढ़ना भूल जाय तो? अरे! जब भूल जाय, तो सभी कुछ भूल सकता है। तो फिर तुम्हारा लिखना ये क्या काम करेगा?
तो हम तत्त्व को भूल जाते हैं। जिस समय गुरु का उपदेश होता रहता है तो समझ में सब बात आती है पढ़े लिखे आदमी को। वो मानता है, एडमिट करता है, सब सही है और फिर संसार के एटमाॅसफियर में गया और भूल गया। तो उसमें सावधान रहना चाहिये और बार-बार मन को पकड़ करके बुद्धि के द्वारा हरि गुरु के चरणों में लगाते रहना चाहिये। तो अभ्यास करने से पक्का हो जायेगा।
०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० पुस्तक सन्दर्भ : प्रश्नोत्तरी, भाग - 3
०० सर्वाधिकार सुरक्षित : राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
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(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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