'अक्षय-तृतीया' पर आओ संसार की नश्वरता पर विचार कर मन को भगवान श्रीकृष्ण के नित्य-स्मरण की ओर ले जायें!!
जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 284
'शुभ अक्षय-नवमी'
- आइये आज अपना समय हम अपने आराध्य व परम हितैषी भगवान के स्मरण में व्यतीत करें!!
★ 'अक्षय तृतीया' महात्म्य - भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित इस त्यौहार पर किये गये दान तथा साधना आदि का अनंत गुना फल प्राप्त होता है।
(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा विरचित 'प्रेम रस मदिरा' में वर्णित इस पद में वे जीवों को संबोधित करते हुये कह रहे हैं कि इस संसार की नश्वरता, असारता और अपने मानव-देह की क्षणभंगुरता पर गंभीर विचार करो, तथा तत्काल ही इसके स्वरूप को पहचान कर इससे विरक्त होकर अपने परमाराध्य परम हितैषी भगवान श्रीकृष्ण का स्मरण करो, गुणगान करो। यह पद नीचे इस प्रकार है...)
मन ! क्यों नहि हरि गुन गा रहा।
यह जग है इक भूल भुलैया, क्यों तू धोखा खा रहा।
भुक्ति मुक्ति है प्रबल पिशाचिनी, क्यों इनमे भरमा रहा।
सुत वित नारिन त्रिविध तिजारिन, क्यों इनको अपना रहा।
इन इंद्रिन विषयन-विष पी मन, क्यों इतनो हरषा रहा।
नर तनु पाय 'कृपालु' भजन करू, यह जीवन अब जा रहा।।
भावार्थ - अरे मन ! तू श्यामसुंदर का गुणगान क्यों नही करता? इस भूल भुलैया के खेल वाले संसार में तू क्यों धोखा खा रहा है? मुक्ति एवं भुक्ति ये दोनों अत्यंत प्रबल चुडैलें हैं, तू इनके चक्कर में क्यों आ रहा है? स्त्री, पुत्र, धन, यह तीनों तिजारी के समान हैं। तू इनको क्यों अपना रहा है? 'श्री कृपालु जी' कहते हैं कि यह मनुष्य का शरीर देवताओं को भी दुर्लभ है, यह चार दिन का जीवन जा रहा है, अतएव शीघ्र ही श्यामसुंदर का भजन कर...
०० ग्रन्थ संदर्भ ::: प्रेम रस मदिरा (सिद्धांत माधुरी, पद संख्या 73)
०० रचयिता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।
+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
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