भगवान शिव की पूजा सोमवार को ही क्यों की जाती है ?
सनातन धर्म में हर दिवस का संबंध किसी न किसी देवता से है। भगवान् शंकर सोमवार को सबसे ज्यादा पूजे जाते हैं। वास्तव में ये सारे दिवस भगवान् शंकर से ही प्रकट माने जाते हैं। शिव-महापुराण के अनुसार प्राणियों की आयु का निर्धारण करने के लिए भगवान् शंकर ने काल की कल्पना की। उसी से ही ब्रह्मा से लेकर अत्यन्त छोटे जीवों तक की आयुष्य का अनुमान लगाया जाता है। उस काल को ही व्यवस्थित करने के लिए महाकाल ने सप्तवारों की कल्पना की। सबसे पहले ज्योतिस्वरूप सूर्य के रूप में प्रकट होकर आरोग्य के लिए प्रथमवार की कल्पना की।
अपनी सर्वसौभाग्यदात्री शक्ति के लिए द्वितीयवार की कल्पना की। उसके बाद अपने ज्येष्ठ पुत्र कुमार के लिए अत्यन्त सुन्दर तृतीयवार की कल्पना की। उसके बाद सर्वलोकों की रक्षा का भार वहन करने वाले परम मित्र मुरारी के लिए चतुर्थवार की कल्पना की। देवगुरु के नाम से पंचमवार की कल्पना कर उसका स्वामी यम को बना दिया। असुरगुरु के नाम से छठे वार की कल्पना करके उसका स्वामी ब्रह्मा को बना दिया एवं सप्तमवार की कल्पना कर उसका स्वामी इंद्र को बना दिया। नक्षत्र चक्र में सात मूल ग्रह ही दृष्टिगोचर होते हैं, इसलिए भगवान् ने सूर्य से लेकर शनि तक के लिए सातवारों की कल्पना की। राहु और केतु छाया ग्रह होने के कारण दृष्टिगत न होने से उनके वार की कल्पना नहीं की गई।
शिवमहापुराण के अनुसार स्वास्थ्य, संपत्ति, रोग-नाश, पुष्टि, आयु, भोग तथा मृत्यु की हानि के लिए रविवार से लेकर शनिवार तक भगवान् शंकर की आराधना करनी चाहिए। पुराणों के अनुसार सोम का अर्थ चंद्रमा होता है और चंद्रमा भगवान् शंकर के शीश पर मुकुटायमान होकर अत्यन्त सुशोभित होता है। लगता है कि भगवान् शंकर ने जैसे कुटिल, कलंकी, कामी, वक्री एवं क्षीण चंद्रमा को उसके अपराधी होते हुए भी क्षमा कर अपने शीश पर स्थान दिया वैसे ही भगवान् हमें भी सिर पर नहीं तो चरणों में जगह अवश्य देंगे। यह याद दिलाने के लिए सोमवार को ही लोगों ने शिव का वार बना दिया।
अथवा सोम का अर्थ सौम्य होता है। भगवान् शंकर अत्यन्त शांत समाधिस्थ देवता हैं। इस सौम्य भाव को देखकर ही भक्तों ने इन्हें सोमवार का देवता मान लिया। सहजता और सरलता के कारण ही इन्हें भोलेनाथ कहा जाता है। अथवा सोम का अर्थ होता है उमा के सहित शिव। अथवा सोम में ओम समाया हुआ है। भगवान शंकर ऊंकार स्वरूप हैं।
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