भगवान कब, कैसे मिलेंगे
- विश्व के पंचम मूल जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज के श्रीमुखारविन्द से नि:सृत प्रवचन श्रृंखला
(भाग - 1)
सभी जिज्ञासु प्रेम रस पिपासु ऐसा प्रश्न करते हैं कि भगवान कब मिलेंगे? कैसे मिलेंगे? बस यही एक प्रश्न भी है क्योंकि संसार में तो कभी सुख मिला नहीं, वहां तो तनाव, अशांति, अतृप्ति, अपूर्णता यही सब मिला। तो भगवान कैसे मिलेंगे यह जिज्ञासा, व्याकुलता सब में रहती है चोरी चोरी। भगवान कहते हैं भई देखो! अगर तुमको हमसे मिलना है तो कुछ करना नहीं है। हैं! करना नहीं है? तो फिर तुम क्यों नहीं मिलते? अरे! मैं तो तुम्हारे हृदय में बैठा हूं। हां, सुनते तो हैं। बस यही तो तुम्हारी गलती है। सुनते हो, मानते नहीं हो।
देखो! किसी के हाथ में एक हजार का नोट जब आता है, गरीब आदमी के और वह देखता है, हां, एक हजार का नोट! यह फीलिंग होती है, खुशी होती है और भगवान हमारे हृदय में हैं यह खुशी नहीं हो रही है किसी को, और कहता है कि हां, हमें मालूम है भगवान घट घट में वास करते हैं, हमको मालूम है। यह सुना है, पढ़ा है, माना नहीं। अगर यह मान लें तो भगवत्प्राप्ति तुरन्त हो जाय। तत्काल हो जाय। एक सेकेंड नहीं लगेगा और खुशी में पागल हो जायेंगे।
हमारे हृदय में श्यामसुन्दर हैं, इस फीलिंग को बढ़ाना है, अभ्यास करो इसका। कभी भी अपने आपको अकेला न मानो, बस एक सिद्धान्त याद कर लो। हम लोग जो पाप करते हैं, क्यों करते हैं? अकेला मानकर अपने आपको। हम जो सोच रहे हैं, कोई नहीं जानता। हम जो करने जा रहे हैं, कोई नहीं जानता। हम जो झूठ बोलने जा रहे हैं, कोई नहीं जान सकता। यह चालाकी, चार सौ बीस हमने तमाम जिन्दगी में यही तो किया है इक_ा और क्या किया? जितना अधिक छल-कपट, दांव-पेंच हम इक_ा कर लेते हैं, उतना ही संसारी लोग कहते हैं बड़ा एक्सपर्ट है, काबिल है, बहुत बुद्धिमान है। और जो भोला भाला होता है बिना छल कपट के, अरे यह बुद्धू है। हां, यह कोई मनुष्य है।
किसी ने झापड़ लगा दिया और हमने सिर झुका दिया। अरे यह तो बहुत बड़ी बात है। सहनशीलता का गुण दिव्य गुण है। लेकिन दूसरा कहता है क्यों रे! तू हट्टा कट्टा और उसने झापड़ लगाया तूने ऐसे सिर नीचे कर लिया। मैं होता तब तो उसको वो झापड़ लगाता कि दांत बाहर आ जाते। यह लो उसको और पट्टी पढ़ा रहा है वह उल्टी। तो यह फीलिंग हमको हर समय हर जगह लाना होगा, अभ्यास करो इसका।
(क्रमश:, शेष प्रवचन अगले भाग में)
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