ऐसी थी लेडी विद लैंप - फ्लोरेंस नाइटिंगेल
इतिहास में आज- 12 मई
फ्लोरेंस नाइटिंगेल का जन्म 12 मई, 1820 को इटली के फ्लोरेंस में हुआ था। उनके पिता का नाम विलियम नाइंटिगेल और मां का नाम फेनी नाइटिंगेल था। विलियम नाइटिंगेल बैंकर थे और काफी धनी थे। परिवार को किसी चीज की कमी नहीं थी। फ्लोरेंस जब किशोरी थीं उस समय वहां लड़कियां स्कूल नहीं जाती थीं। बहुत सी लड़कियां तो बिल्कुल नहीं पढ़ती थीं। लेकिन विलियम अपनी बेटियों को पढ़ाने को लेकर बहुत गंभीर थे। उन्होंने अपनी बेटियों को विज्ञान, इतिहास और गणित जैसे विषय पढ़ाए।
फ्लोरेंस नर्स बनना चाहती थीं जो मरीजों और परेशान लोगों की देखभाल करे। फ्लोरेंस ने अपनी इच्छा अपने माता-पिता को बताई। यह सुनकर उनके पिता काफी नाराज हुआ। उस समय नर्सिंग को सम्मानित पेशा नहीं माना जाता था, लेकिन फ्लोरेंस अपनी बातों पर अड़ गईं। आखिरकार उनके माता-पिता को उनकी बातों को मानना पड़ा। 1851 में फ्लोरेंस को नर्सिंग की पढ़ाई की अनुमति दे दी गई। 1853 में उन्होंने लंदन में महिलाओं का एक अस्पताल खोला। वहां उन्होंने बहुत अच्छा काम किया।
1854 में क्रीमिया का युद्ध हुआ। उस युद्ध में ब्रिटेन, फ्रांस और तुर्की एक तरफ थे तो दूसरी तरफ रूस। युद्ध मंत्री सिडनी हर्बर्ट फ्लोरेंस को जानते थे। उन्होंने क्रीमिया में नर्सों का एक दल लेकर फ्लोरेंस को पहुंचने को कहा। जब नर्सें वहां पहुंचीं तो अस्पताल की हालत देखकर काफी दंग रह गईं। अस्पताल खचाखच भरे हुए और गंदे थे। फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने अस्पताल की हालत सुधारने पर ध्यान दिया। उन्होंने बेहतर चिकित्सीय उपकरण खरीदे। मरीजों के लिए अच्छे खाने का बंदोबस्त किया। जख्मी सैनिकों की सही से देखभाल की। नतीजा यह हुआ कि सैनिकों की मौत की संख्या में गिरावट आई।
फ्लोरेंस नाइटिंगेल ने मरीजों की देखभाल में दिन-रात एक कर दिया। रात के समय में जब सब सो रहे होते थे, वह सैनिकों के पास जातीं। यह देखतीं कि सैनिकों को कोई तकलीफ तो नहीं है। अगर कोई तकलीफ होती तो उसको दूर करती ताकि सैनिक आराम से सो सकें। जो लोग खुद से लिख नहीं पाते थे, उनकी ओर से वह उनके घरों पर पत्र भी लिखकर भेजती थीं। रात के समय जब वह मरीजों को देखने जातीं तो लालटेन हाथ में लेकर जाती थीं। इस वजह से सैनिकों ने उनको लेडी विद लैंप कहना शुरू कर दिया।
1856 में वह युद्ध के बाद लौटीं। तब तक उनका नाम काफी फैल चुका था। अखबारों में उनकी कहानियां छपीं। लोग उनको नायिका समझने लगे। रानी विक्टोरिया ने खुद पत्र लिखकर उनका शुक्रिया अदा किया। सितंबर 1856 में रानी विक्टोरिया से उनकी भेंट हुई। उन्होंने सैन्य चिकित्सा प्रणाली में सुधार पर चर्चा की। इसके बाद बड़े पैमाने पर सुधार हुआ। सेना ने डॉक्टरों को प्रशिक्षण देना शुरू किया। अस्पताल साफ हो गए और सैनिकों को बेहतर कपड़ा, खाना और देखभाल की सुविधा मुहैया कराई गी। लंदन के सेंट थॉमस हॉस्पिटल में 1860 में नाइटिंगेल ट्रेनिंग स्कूल फॉर नर्सेज खोला गया। न सिर्फ वहां नर्सों को शानदार प्रशिक्षण दिया जाता ता बल्कि अपने घर से बाहर काम करने की इच्छुक महिलाओं के लिए नर्सिंग को सम्मानजनक करियर भी बनाया।
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