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गुणकारी औषधीय पौधा चालमोगरा

    चालमोगरा या चौलमोगरा छोटा, तीखा, कड़वा और कषैला होता है। यह एक औषधीय पौधा है।  चालमोगरा  का तेल कषैला, खट्टा, गर्म प्रकृति, वात कफ को नष्ट करने वाला, उल्टी को रोकने वाला, भूख बढ़ाने वाला, रक्त संचारण में सुधार करने वाला, शरीर के दर्द को खत्म करने वाला, घावों को नष्ट करने वाला और सफेद दाग, खुजली और कई प्रकार के त्वचा रोग, पेट के रोग, गठिया, नाड़ी का दर्द मधुमेह और कई प्रकार के कृमि रोगों के उपचार करने में काम आता है। तीनों प्रकार के  चालमोगरा  पाए जाते हैं और सभी में एक समान गुणधर्म होते हैं। 

हिन्दी में इसे चालमोगरा , कड़वा कैथ, अंग्रेजी में जंगली आल्मण्ड, संस्कृत में तुवरक, कटु कपित्थ, कुष्ठबैरी, मराठी में कडु पपीठ, जंगली बादाम, बंगाली में चौलमुगरा, लेटिन में जिनोकार्डिया आडोराटा कहते हैं।
इसके वृक्ष नमी वाले स्थानों में होते हैं, जहां वर्षा अधिक होती है। ऐसा भी कहा जाता है कि चालमुग्रा  बर्मी नाम है। यह वृक्ष सदैव हरा-भरा रहता है और जमीन से चालीस-पचास फीट की ऊंचाई तक जाता है। इसके पत्ते शरीफे की भांति दस इंच लंबे होते हैं। वृक्ष के चिकने तनों पर और मुख्य शाखाओं पर चाकलेटी रंग के चिकने और कठोर फल लगते हैं, जो संतरे के समान गोल होते हैं।
 इस फल में अनेक बीज होते हैं । इस फल के छिलके कठोर होते हैं। इस वृक्ष पर सफेद रंग के पुष्प गुच्छों के रूप में खिलते हैं। ये फूल एकलिंगी होते हैं। इसके नर और मादा पुष्प अलग-अलग वृक्षों पर खिलते हैं। इसके वृक्ष ज्यादातर दक्षिणी भारत के पश्चिमी तट पर, दक्षिण में कोंकण और ट्रावनकोर तथा लंका में अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
 चालमोंगरा के बीजों से तेल प्राप्त किया जाता है। इसका तेल भूरे रंग का होता है, जो गाढ़ा होता है। इस तेल में से एक विशेष प्रकार की गंध निकलती रहती है। सर्दियों में यह घी के समान जम जाता है। यह तेल तिक्त और कटु होता है।

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