माथे पर ‘पीला तिलक’, चोंच में भर लेता है 11 लीटर पानी.... इस देसी पक्षी की खूबियां जानकर रह जाएंगे दंग
झारखंड के साहिबगंज जिले में स्थित उधवा झील में पहली बार दुर्लभ स्पॉट बिल्ड पेलिकन पक्षी देखा गया है। यह दुर्लभ पक्षी वन विभाग के अधिकारियों को उस वक्त नजर आया, जब वे झील का जायजा ले रहे थे। हजारीबाग के पक्षी विशेषज्ञ सत्य प्रकाश के मुताबिक, यह पक्षी विलुप्त होने के कगार पर है और भारत में गुजरात, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश में देखा जाता है। सत्य प्रकाश ने इसपर कहा कि उधवा झील दुर्लभ पक्षियों के लिए एक उपयुक्त प्राकृतिक वास बनता जा रहा है। ऐसा पहली बार है, जब उधवा झील में स्पॉट बिल्ड पेलिकन को देखा गया है। इससे पहले यह पक्षी झारखंड में सिर्फ जादूगोड़ा, सिंहभूम में कुछ साल पहले देखा गया था। स्पॉट बिल्ड पेलिकन बत्तख की प्रजाति का है और इसकी चोंच के नीचे एक थैली होती है, जिसकी मदद से यह मछली और दूसरा भोजन खाता है। पेलिकन की गिनती बड़े पक्षियों में होती है। इनकी लंबाई 125 से 150 सेमी (लगभग 49-59 इंच) और पंखों का फैलाव 2.5 मीटर (8.2 फीट) तक होता है। वजन में ये 4 से 6 किलोग्राम तक पाए जाते हैं। इनके पंख ज्यादातर सफेद होते हैं और सिर पर भूरे-काले रंग का मुकुट जैसा बना होता है। साथ ही माथे पर एक अलग पीले रंग का निशान भी होता है। स्पॉट बिल्ड पेलिकन एक मांसाहारी पक्षी है, जो मछली, क्रस्टेशियंस और छोटे जलीय जानवरों को खाता है। मछली पकड़ने के लिए यह अपनी थैलीनुमा चोंच का इस्तेमाल करता है। पेलिकन की चोंच के नीचे बनी थैली में लगभग 11 लीटर (3.4 गैलन) तक पानी समा सकता है।
इनकी रफ्तार भी बेहद तेज होती है। ये पक्षी 50 किमी प्रति घंटा तक की गति से उड़ान भर सकता है।
चोंच पर चित्तीदार निशान
एशिया के दलदली इलाकों में पाया जाने वाला यह पक्षी अपनी चोंच पर चित्तीदार निशानों के लिए जाना जाता है। हालांकि, पेलिकन विलुप्त होने के कगार पर खड़े हैं। आईयूसीएन रेड लिस्ट में इसे ‘निकट संकटग्रस्त’ के तौर पर रखा गया है। लगातार घटते आवास, शिकार और प्रदूषण से इनकी संख्या घट रही है। ऐसे में इस पक्षी को बचाने के लिए बड़े स्तर पर प्रयासों की जरूरत है।
दलदल में रहना पसंद
भारत और श्रीलंका से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया, कंबोडिया, लाओस, थाईलैंड और वियतनाम में मिलने वाला यह पक्षी नदियों, झीलों और दलदलों में रहना पसंद करता है। इस पक्षी के मांस, पंखों और चोंच के लिए इसका शिकार किया जाता है। साथ ही प्रदूषण और कीटनाशकों के इस्तेमाल से भी इसके भोजन की समस्या खड़ी होती है।
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