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 दिल जलता है तो जलने दे .....

-अमर गायक मुकेश की जयंती पर विशेष 
फिल्म फेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे मुकेश
आलेख- प्रशांत शर्मा
 आज हिन्दी फिल्मों में गाने वाले कलाकारों की फेहरिश्त इतनी लंबी हो चुकी है कि उन्हें उंगलियों में गिनना मुश्किल हो गया है। रोज एक नया कलाकार नई आवाज के साथ नजर आ जाता है। जिनकी आवाज कुछ समय के बाद गुम सी हो जाती है। लेकिन हिन्दी फिल्मों ने  के. एल. सहगल, लता मंगेशकर, रफी साहब, मुकेश, किशोर कुमार जैसे महान कलाकारों का भी दौर देखा है। जिनके गाने आज भी एक छोटा बच्चा दिल से गुनगुना लेता है। 
    आज हम बात कर रहे हैं ऐसे ही महान गायक मुकेश चंद माथुर यानी मुकेश की। मुकेश की आवाज़ बहुत खूबसूरत थी। अभिनेता बनने का सपना देखने वाले मुकेश को उनके रिश्तेदार अभिनेता मोतीलाल गायक बनाने के लिए बम्बई ले गये और अपने घर में रहने दिया। यही नहीं उन्होंने मुकेश के लिए रियाज़ का पूरा इंतजाम किया।   'निर्दोष' फि़ल्म में मुकेश ने अदाकारी करने के साथ-साथ गाने भी खुद गाए। इसके अतिरिक्त उन्होंने 'माशूका', 'आह', 'अनुराग' और 'दुल्हन' में भी बतौर अभिनेता काम किया। पाश्र्व गायक के तौर पर उन्हें अपना पहला काम 1945 में फि़ल्म पहली नजऱ में मिला। मुकेश ने हिन्दी फि़ल्म में जो पहला गाना गाया, वह था दिल जलता है तो जलने दे ....जिसमें अदाकारी मोतीलाल ने की। इस गीत में मुकेश के आदर्श गायक के एल सहगल के प्रभाव का असर साफ़-साफ़ नजऱ आता है। बाद में उन्होंने अपना पेटर्न बदला और फिर तो जैसे वे छा ही गए। अभिनेता राजकपूर पर उनकी आवाज सबसे ज्यादा पसंद की गई। फिर राजकपूर की फिल्मों में मुकेश मुख्य गायक होने लगे। 
60 के दशक में मुकेश का करिअर अपने चरम पर था और अब मुकेश ने अपनी गायकी में नये प्रयोग शुरू कर दिये थे। उस वक्त के अभिनेताओं के मुताबिक उनकी गायकी भी बदल रही थी। जैसे कि सुनील दत्त और मनोज कुमार के लिए गाये गीत। 70 के दशक का आगाज़ मुकेश ने जीना यहां मरना यहां गाने से किया। यह फिल्म भी राजकपूर ने बनाई थी। 
इस दौर में  मुकेश ज़्यादातर कल्याणजी-आंनदजी, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल और आर. डी.  बर्मन जैसे दिग्गज संगीतकारों के साथ काम कर रहे थे। अपने उत्कृष्ट गायन के लिये ऐसा कौन सा पुरस्कार है जिसे मुकेश ने प्राप्त न किया हो। वे  फिल्मफेयर पुरस्कार पाने वाले पहले पुरुष गायक थे।  वे उस ऊंचाई पर पहुंच गए थे कि पुरस्कारों कि गरिमा उनसे बढऩे लगी थी, लोकप्रियता के उस शिखर पर विद्यमान थे जहां पहुंच पाना किसी के लिए एक सपना होता है।  करोड़ों भारतवासियों के हृदयों पर मुकेश का अखंड साम्राज्य था और रहेगा।
मुकेश ने अपने करिअर का आखिरी गाना अपने दोस्त राज कपूर की फि़ल्म के लिए ही गाया था।  मुकेश की राजकपूर के साथ अच्छी दोस्ती थी, लेकिन उन्होंने दिलीप कुमार के लिए सबसे अधिक गाने गाए।  
 अपने करीब 35 साल के कॅरिअर  में मुकेश ने हजारों कर्णप्रिय और लोकप्रिय गाने गाए जो आज भी उतने ही हसीन लगते हैं जितने पहली बार लोगों ने इन्हें सुना था।  मुकेश  रियाज़ से सन्तुष्ट होने पर ही रिकार्डिंग की सहमति देते थे। मेरा नाम जोकर का कालजयी गीत, जाने कहां गए वो दिन, उन्होंने सत्रह दिनों के अभ्यास के बाद रिकार्ड कराया था।  मुकेश को अपने दो गीत बेहद पसंद थे- "जाने कहां गए वो दिन...." और "दोस्त-दोस्त ना रहा..।" 
   मुकेश का निधन 27 अगस्त, 1976 को अमेरिका में एक स्टेज शो के दौरान दिल का दौरा पडऩे से हुआ। उस समय वह गा रहे थे,  एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल । उस कार्यक्रम का लता मंगेशकर और नितिन मुकेश भी हिस्सा थे।  
मुकेश साहब के गाए 15 लोकप्रिय गाने..
1. दिल जलता है, तो जलने दे
2. जाने कहां गए वो दिन3.  सावन का महीना
4. चंदन सा बदन चंचल चितवन
5. कहीं दूर जब दिन ढल जाए
6. कभी कभी मेरे दिल में खयाल आता है
7. ओ जाने वाले हो सके तो लौट के आना
8. जीना यहां मरना यहां
9. तारो में सजके अपने सूरज से  
10. कई बार यूं भी देखा है
11. मेरा जूता है जापानी
12. मेहबूब मेरे
13. आवारा हूं
14. दुनिया बनाने वाले
15. डम डम डिगा डिगा

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