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बॉलीवुड के पहले एंटी हीरो अशोक कुमार

-जिन्हें देखने के लिए लड़कियों से लेकर महिलाएं तक बेताब रहती थी

-13 अक्टूबर- जन्मदिन पर विशेष

आलेख-मंजूषा शर्मा
अभिनेता अशोक कुमार अपने जमाने के सबसे हैंडसम स्टार थे। उन्हें देखने के लिए लड़कियों से लेकर महिलाएं तक बेताब रहती थीं। वे अपने जमाने के पहले एंटी हीरो रहे हैं। यंग स्टार से लेकर दादा तक की भूमिकाओं में लोगों का दिल जीतने वाले दादामुनि यानी अशोक कुमार का  13 अक्टूबर को  जन्मदिन है।

 13 अक्टूबर 1911 को उनका जन्म भागलपुर में  एक मध्यम वर्गीय बंगाली परिवार में हुआ था। इनके पिता कुंजलाल गांगुली पेशे से वकील थे। अशोक कुमार ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा मध्यप्रदेश के खंडवा शहर में प्राप्त की। बाद मे उन्होंने अपनी स्नातक की शिक्षा इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पूरी की। इस दौरान उनकी दोस्ती शशधर मुखर्जी से हुई। भाई बहनों में सबसे बड़े अशोक कुमार की बचपन से ही फिल्मों मे काम करके शोहरत की बुंलदियो पर पहुंचने की चाहत थी, लेकिन वह अभिनेता नहीं बल्कि निर्देशक बनना चाहते थे। अपनी दोस्ती को रिश्ते में बदलते हुए अशोक कुमार ने अपनी इकलौती बहन की शादी शशधर मुखर्जी से कर दी। सन 1934 मे न्यू थिएटर मे बतौर लेबोरेट्री असिस्टेंट काम कर रहे अशोक कुमार को उनके बहनोई शशधर मुखर्जी ने बाम्बे टॉकीज में अपने पास बुला लिया।
 अशोक कुमार  भारतीय सिनेमा के शुरुआती सुपरस्टार्स में से एक रहे हैं। हालांकि एक्टिंग के क्षेत्र में आने का इरादा अशोक कुमार का कभी नहीं था। वो हिमांशु राय के बॉम्बे टॉकीज में बतौर लैब असिस्टेंट काम करते थे और फिर अचानक एक दिन कुछ ऐसा हुआ कि हिंदी सिनेमा को अशोक कुमार जैसा शानदार अभिनेता मिल गया।
 दरअसल फिल्म  जीवन नैया (1936) की हीरोइन देविका रानी थीं।  जो बॉम्बे टॉकीज के मालिक हिमांशु राय की पत्नी थीं।  इस फिल्म के हीरो थे नजमुल हसन।  फिल्म की शूटिंग के दौरान ही देविका रानी, नजमुल हसन के साथ चली गईं।  इसके कुछ वक्त बाद देविका रानी तो लौट आईं लेकिन हिमांशु राय ने फिल्म के हीरो को बाहर कर दिया और अशोक कुमार को हीरो बनाने का फैसला किया।  हालांकि, फिल्म के डायरेक्टर फ्रांज ओस्टेन इसे सही फैसला नहीं मान रहे थे, लेकिन हिमांशु राय अडिग रहे और उन्होंने अशोक कुमार को बतौर हीरो कास्ट कर लिया। अशोक कुमार खुद भी एक्टिंग नहीं करना चाहते थे लेकिन झिझक के बावजूद वो फिल्म में रोल करने के लिए तैयार हो गए।
 अशोक कुमार का असली नाम कुमुदलाल गांगुली था, लेकिन हिमांशु राय के कहने पर उन्होंने अपना स्कीन नेम अशोक कुमार रख लिया और फिर वो आगे इसी नाम से जाने गए।  हालांकि लोग उन्हें प्यार से दादामुनि  कह कर भी बुलाते थे। 1936 में आई उनकी फिल्म अछूत कन्या सुपरहिट साबित हुई।
 अछूत कन्या  हिंदी सिनेमा की शुरुआती हिट फिल्मों में शामिल थीं।  इस फिल्म में भी अशोक कुमार की हीरोइन देविका रानी ही थी। इस फिल्म के बाद दोनों की जोड़ी सुपरहिट हो गई और दोनों ने एक बाद एक लगातार 6 फिल्में की। दोनों की आखिरी फिल्म अंजान थी जो बॉक्स ऑफिस पर नहीं चली।
 अशोक कुमार इन सभी फिल्मों के हीरो तो थे, लेकिन वो देविका रानी की छाया में ही काम करते रहे।  इसके बाद अशोक कुमार की जोड़ी लीला चिटनिस के साथ भी काफी पसंद की गई और दोनों ने  कंगन ,  बंधन  और  आजाद जैसी कामयाब फिल्में दी, लेकिन 1941 में लीला चिटनिस के साथ आई उनकी फिल्म झूला ने उन्हें हिंदी सिनेमा के सबसे भरोसेमंद अभिनेताओं में शामिल कर दिया।
 अशोक कुमार भारत की आजादी से पहले ही बड़े सितारे बन चुके थे और देश की आजादी के बाद भी उनकी कामयाबी का सिलसिला चलता रहा।  1943 में आई फिल्म  किस्मत  ने अशोक कुमार की किस्मत बदल दी।  पहली बार किसी भारतीय कलाकार ने एक फिल्म में एंटी हीरो का किरदार निभाया था।
 इस फिल्म ने सफलता के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए और  किस्मत  की सफलता के बाद अशोक कुमार भारत के पहले सुपरस्टार के तौर पर उभरे।   अशोक कुमार 50 के दशक में भी पर्दे पर छाए रहे।  हालांकि इस दौरान दिलीप कुमार, राज कपूर और देवानंद जैसे सितारों का उदय भी हो चुका था लेकिन अशोक कुमार ने अपनी पोजिशन कायम रखी।
अशोक कुमार हिंदी सिनेमा के कई सितारों के मेंटोर भी रहे. उनके प्रोडक्शन तले बनी फिल्म  जिद्दी  से देवआनंद ने अपने करिअर की शुरुआत की। इसी फिल्म से हिंदी सिनेमा को प्राण जैसा अभिनेता भी मिला। अशोक कुमार की गाइडेंस में ही बॉम्बे टॉकीज के जरिए मधुबाला का करिअर भी लॉन्च हुआ। 1949 में आई फिल्म महल में अशोक कुमार और मधुबाला साथ थे और इसी फिल्म का गाना  आएगा आने वाला भी बहुत लोकप्रिय हुआ था और इसी गाने ने लता मंगेश्कर को भी पहचान दिलाई थी।
ऋषिकेश मुखर्जी और शक्ति सामंत जैसे निर्देशकों को तैयार करने का श्रेय भी अशोक कुमार को दिया जाता है। अशोक कुमार शौकिया तौर पर होम्योपैथी की भी प्रैक्टिस किया करते थे। अशोक कुमार ने अपने भाइयों किशोर कुमार और अनूप के लिए भी राह बनाई और किशोर कुमार आगे जाकर गायन, अभिनय में काफी मशहूर हो गए। बड़े इत्तफाक की बात है किअशोक कुमार के जन्मदिन के दिन ही 13 अक्टूबर 1987 को किशोर कुमार इस दुनिया से रुखसत हुए थे।

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