फिल्मी परदे पर जब राजकपूर नारद मुनि के किरदार में नजर आए....
पुण्यतिथि 2 जून पर विशेष
सजीले ख्वाबों को सिने पर्दे पर अपने ही रंगों में उतारने में माहिर बॉलीवुड के शोमैन राजकपूर का आज ही के दिन निधन हो गया था। 1988 को उन्हें एक फिल्म समारोह के दौरान दिल का दौरा पड़ा और ठीक एक माह तक अस्पताल में जिंदगी और मौत से जूझते हुए 2 जून 1988 को 63 साल की उम्र में हिंदी फिल्मों का यह महान फनकार संसार को अलविदा कह गया।
राजकपूर का निधन हिंदी सिनेमा के ऐसे युग का अवसान था, जिसकी लोकप्रियता उसके जीते-जी ही दंतकथा जैसी अविश्वसनीय थी। अभिनय, निर्देशन सहित सिनेमा से जुड़े हर पक्ष में समान नियंत्रण के साथ राजकपूर अपनी फिल्मों में मर्मज्ञ की तरह सामाजिक विषमताओं और उसकी ख़ूबसूरती को उतनी ही शिद्दत से स्वर देते रहे। राजकपूर की फिल्में कला-साहित्य, सामाजिकता व व्यवसायिकता का बेजोड़ मिश्रण बनकर दर्शकों के दिलों तक उतरती रहीं।
राजकपूर का फिल्मी जीवन हालांकि 1936 में आई फिल्म 'इंकलाब' से शुरू हुआ , लेकिन हम आज चर्चा कर रहे हैं फिल्म वाल्मीकि की जो 1946 में रिलीज हुई थी। क्या कोई कल्पना कर सकता है कि फिल्मी परदे पर रोमांटिक भूमिकाओं से शोहरत पाने वाले राजकपूर कभी नारद मुनि का रोल भी कर सकते हैं? लेकिन यह सच है। फिल्म वाल्मीकि में राजकपूर नारद मुनि के ही रोल में थे। फिल्म में मुख्य भूमिका यानी महर्षि वाल्मीकि का रोल उनके ही पिता पृथ्वीराज कपूर ने निभाया था और नायिका थीं शांता आप्टे, जिन्होंने पृथ्वीराज की पत्नी का रोल निभाया था। फिल्म का निर्देशन भालजी पेंढरकर ने किया था। फिल्म अपने दौर में हिट रही, क्योंकि उस समय पौराणिक और धार्मिक कहानियों पर आधारित फिल्मों को पसंद किया जाता था। इसी फिल्म से राजकपूर के लिए हीरो बनने का रास्ता भी साफ हो गया। इसके बाद उन्हें बतौर हीरो फिल्म मिली नीलकमल जिसमें उनकी नायिका थी मधुबाला। यह फिल्म 1947 में रिलीज हुई थी।
राज कपूर ने बाल कलाकार के रूप में फिल्म इंकलाब 1935, हमारी बात 1943, गौरी 1943 में अभिनय कर चुके थे। फि़ल्म वाल्मीकि 1946, नारद और अमरप्रेम 1948 में राज कपूर ने कृष्ण की भूमिका बखूबी निभाई थी। अभिनय करने के बावजूद उनके मन में तो स्वयं निर्माता-निर्देशक बनने की और फि़ल्म का निर्माण करने की आग सुलग रही थी। राज कपूर का सपना 24 साल की उम्र में पूरा हुआ जब उन्होंने फि़ल्म आग 1948 में पहली बार पर्दे पर प्रमुख भूमिका निभाने के साथ फिल्म का निर्माण और निर्देशन किया था। फिल्म बनाने का सपना तो पूरा हो गया लेकिन उनके सपनो की भूख और बढ़ती गई अब उनका एक और सपना था। वह अपना खुद का स्टूडियो बनाना चाहते थे. जिसके लिए उन्होंने चेम्बूर में चार एकड़ ज़मीन पर 1950 में अपने आर. के. स्टूडियो की महत्पूर्ण स्थापना की। अपने स्टूडियो में उन्होंने 1951 में फिल्म आवारा में रूमानी नायक की भूमिका निभाकर काफी ख्याति अर्जित की।
राज कपूर ने 1949 में बरसात श्री 420 (1955), जागते रहो (1956) के साथ 1970 में मेरा नाम जोकर फिल्म देकर सबके दिलो पर राज किया। राज कपूर का हर अंदाज लोगों को काफी पसंद आया लेकिन सर्वाधिक प्रसिद्ध चरित्र चार्ली चैपलिन का गऱीब, ईमानदार आवारा का ही प्रतिरूप है।
राज कपूर का प्रिय रंग
बचपन से ही राज कपूर को सफ़ेद रंग मनमोहक लगता था। जब भी वह सफ़ेद साड़ी पहने किसी स्त्री को देखते थे तो उनकी तरह आकर्षित हो जाते थे। उनका यह सफेद रंग के प्रति मोह जीवन भर बना रहा। उनकी फिल्मों में अधिकतर अभिनेत्रियां सफ़ेद साड़ी पहने ही अभिनय करती नजर आती थी। उन्होंने जब कृष्णा को पहली बार देखा था, तो वो भी सफेद साड़ी में थीं। कृष्णा की सादगी पर राजकपूर इस कदर फिदा हो गए थे, कि उन्हें तुरंत ही उनसे शादी के लिए हां कह दिया था।
संगीत
राज कपूर को संगीत की अच्छी खासी समझ थी। जब फिल्म का गीत बनाया जाता था तो राज कपूर को पहले सुनाया जाता था। अपने आर. के. बैनर तले राज कपूर ने संगीत की कई टीम को तैयार किया था। जिनमें गीतकार- शैलेंद्र, हसरत जयपुरी, शंकर जयकिशन, रविन्द्र जैन, वि_लभाई पटेल, छायाकार- राघू करमरकर, गायक- मुकेश, मन्ना डे, कला निर्देशक- प्रकाश अरोरा, राजा नवाथे जैसे कई लोग शामिल थे।
गायन
राज कपूर ने अभिनय के साथ साथ पहली बार फि़ल्म दिल की रानी में अपना प्लेबैक दिया था। फि़ल्म दिल की रानी में मुख्य नायिका मधुबाला थी। राज कपूर के द्वारा पहली बार दिए गए प्लेबैक गीत का मुखड़ा ओ दुनिया के रखवाले बता कहां गया चितचोर है। इस फिल्म के आलावा राज कपूर ने फि़ल्म जेलयात्रा में भी गीत गाया।
हिन्दी फि़ल्मों के शोमैन
राज कपूर को हिन्दी फि़ल्मों का शोमैन कहा जाता है।राज कपूर की फि़ल्मों में मौज-मस्ती के साथ प्रेम, हिंसा के साथ अध्यात्म एवं समाजवाद मौजूद रहता था। उनकी बेहतरीन फि़ल्में उनके गीत आज भी भारतीयों के साथ विदेशी सिने प्रेमियों के भी पसंदीदा सूची में सबसे ऊपर के स्थान पर काबिज हैं। राज कपूर ने अधिकतर सामान्य कहानी को इतनी भव्यता और शालीनता से फिल्मों का निर्माण किया की सभी दर्शक बार-बार देखने को उत्सुक रहते हैं।
महत्वाकांक्षी फि़ल्म
राजकपूर की महत्वपूर्ण और महत्वाकांक्षी फि़ल्म मेरा नाम जोकर समाज के गंभीर और मानव स्वभाव पर आधारित है। साथ ही उनकी फिल्म आवारा लीक से काफी हटकर थी। उनकी यह पहली विदेश में भी काफी पसंद की गई थी। फि़ल्म के माध्यम से उन्होंने स्पष्ट तरीके से बताया था कि अपराध का ख़ून से किसी तरह का कोई संबंध नहीं है। (छत्तीसगढ़आजडॉटकॉम विशेष)
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