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 अलोकिकताओं से भरा सूर्य विज्ञान
-अद्भुत आदित्य की अद्भुत बातें-2 
-लेखक -डॉ. कमलेश गोगिया,  वरिष्ठ पत्रकार एवं शिक्षाविद् (प्रोफेसर, मैट्स यूनिवर्सिटी, रायपुर)
बचपन में मैग्नीफाइंग ग्लास (आवर्धक लैंस) पर सूर्य की बिखरी रोशनी को एक जगह केंद्रित कर कागज पर आग लगाने का खेल खूब खेल करते थे। लेकिन इसके छिपी आगे बढ़ने की प्रेरणा का संकेत बाद में समझ आया। सूर्य की रोशनी  की तरह बिखरे हमारे विचारों को भी किसी एक लक्ष्य पर केंद्रित करने से सफलता मिलना तय है। अब बात करते हैं सूर्य के अलौकिक पक्ष की।
हममें से अधिकांशतः ने बालीवुड की बेहतरीन माने जाने वाली फिल्म थ्री इडियट (2009) देखी है जिसके अनेक दृश्य रोमांचकारी हैं। इस फिल्म में डिलीवरी का सीन भी सबसे ज्यादा संवेदनशील है। एक बच्चे को जन्म देने की पूरी प्रक्रिया के बीच वह दृश्य याद कीजिए जब जन्म के बाद नाभि से जुड़े गर्भनाल को क्लीप लगाकर नवजात शिशु के शरीर के पास से काट दिया जाता है। गर्भनाल का एक सिरा गर्भाशय से जुड़ा होता है और दूसरा शिशु की नाभि से। हम सब जन्म के पूर्व गर्भ में नाभि के माध्यम से ही ईश्वरस्वरूपा माँ से जुड़े थे और अपने शरीर के विकास के लिए नाभि से ही सारी वस्तुएँ प्राप्त की थीं।पका हुआ आहार माता के रक्त  के माध्यम से निरंतर प्राप्त कर अपनी विकास यात्रा प्रारंभ की थी। नौ माह की पूरी अवधि में सारी जरूरतो की पूर्ति नाभि मार्ग से ही की थी। जन्म के बाद नाल काटकर सम्बन्ध विच्छेद किया गया और फिर नाभि की भूमिका और उपयोगिता यहाँ समाप्त मान ली गई। विज्ञान में नाभि को लगभग महत्वहीन ही समझा गया है, लेकिन अध्यात्म के दृष्टिकोण से देखें तो इसका महत्व पूरे शरीर में है। वेदों में और भारतीय योगशास्त्र में इसका विशेष महत्व है।
पौराणिक आख्यानों में भगवान विष्णु की नाभि से कमल के उत्पन्न होने वाले चित्र सिर्फ अध्यात्मिक नहीं, इसके पीछे विज्ञान भी छिपा है। एक आध्यात्मिक विज्ञान में प्रेमयोगी वज्र लिखते हैं कि सृष्टि रचना पुराणों में शरीर रचना के माध्यम से समझाई गई है। माँ को आप विष्णु मान सकते हो। उसका शरीर एक शेषनाग की तरह ही केन्द्रीय तंत्रिका तंत्र के रूप में है, जो मेरुदंड में स्थित है। वह नाग हमेशा ही सेरेब्रोस्पाइनल फ्लुइड रूपक समुद्र में डूबा रहता है। उस नाग में जो कुंडलिनी या माँ की संवेदनाएं चलती हैं, वे ही भगवान विष्णु का स्वरूप है, क्योंकि शक्ति और शक्तिमान भगवान में तत्वतः कोई अंतर नहीं। गर्भावस्था के दौरान जो नाभि क्षेत्र में माँ का पेट बाहर से उभरा होता है, वही भगवान विष्णु की नाभि से कमल का प्रकट होना है। विकसित गर्भाशय को भी माँ के शरीर की नसें-नाड़ियाँ माँ के नाभी क्षेत्र के आसपास से ही प्रविष्ट होती हैं। खिले हुए कमल की पंखुड़ियों की तरह ही गर्भाशय में प्लेसेंटोमस और कोटीलीडनस उऩ नसों के रूप में स्थित कमल की डंडी से जुड़े होते हैं। वे संरचनाएं फिर इसी तरह शिशु की नाभि से कमल की डंडी जैसी नेवल कोर्ड से जुड़ी होती हैं। ये संरचनाएं शिशु को पोषण उपलब्ध कराती हैं। शिशु ही ब्रह्मा है, जो उस खिले हुए कमल पर विकसित होता है।
योगशास्त्र में नाभि को सूर्य चक्र कहा गया है। वैज्ञानिक अध्यात्म के प्रणेता पं. श्रीराम शर्मा आचार्य अध्यात्म -मर्मज्ञों के हवाले से लिखते हैं, सबसे पहले मानवीय प्राण नाभि केन्द्र से स्पन्दित होकर ह्रदय से टकराता है। ह्रदय और फेफड़ों में रक्त शोधन करके सारे शरीर में संचार करने में सहायता करता है। नाभि के पीछे स्थित सूर्यचक्र (सोलर प्लक्सेज) वह केन्द्र बिन्दु है जहाँ से सारी प्रमुख धाराएँ विभिन्न अंगों में जाती है। एक प्रकार से इसे जंकशन स्टेशन की उपमा दी जा सकती है जहाँ से अनेक  रेलवे लाइन विभिन्न दिशाओं में जाती हैं। सारे शरीर की स्फूर्ति इसी केन्द्र की सशक्तता पर निर्भर करती है। साधारणतया यह महत्वपूर्ण केन्द्र प्रायः लुप्त अवस्था में पड़ा रहता है। अतः इसकी शक्ति का न तो कुछ ज्ञान होता है और न इससे कुछ लाभ ही उठा पाते हैं। (30 वर्ष पूर्व-1997, अखण्ड ज्योति)
आर्ट ऑफ लिविंग के संस्थापक आध्यात्मिक गुरु श्री श्री रवि शंकर अपनी कृति सच्चे साधक के लिए एक अंतरंग वार्ता (नित्यदिन के ज्ञानसूत्र) में लिखते हैं कि सूर्य चक्र अत्यंत प्रभावशाली है- केन्द्रीय स्नायु प्रणाली, नेत्र तंतुओं व उदर पर। होने वाली घटना के संबंध में सजग करने की अनुभूति भी सूर्य-चक्र द्वारा प्रभावित है। सूर्य चक्र शरीर का दूसरा मस्तिष्क भी कहलाता है। सूर्य चक्र के संकुचित होने पर दुख और उदासीनता आ जाती है, मन नकारात्मक भावों से भर जाता है। सूर्य चक्र के विस्तृत होने पर आध्यात्मिक चेतना जागृत होती है, मन स्वच्छ और केन्द्रित होता है।                          
यह सारी गथा लिखने का उद्देश्य यह स्पष्ट करना है कि नाभि एक सक्रिय केंद्र है जिसे सूर्यचक्र कहा गया है और धरती पर जीवन का आधार भी सूर्य है। पृथ्वी और चंद्रमा का अपना कोई प्रकाश नहीं है, वे सूर्य के प्रकाश से ही प्रकाशवान हैं। विज्ञान ने सूर्य के भौतिक स्वरूप से सम्पर्क कर प्रकाश, ऊर्जा से लेकर काल-ज्ञान तक प्राप्त किया लेकिन हमारा भारतीय दर्शन यह मानता है कि इसके आध्यात्मिक सम्पर्क कहीं ज्यादा सशक्त होने के साथ ही रहस्यमय भी है। भारतीय योगशास्त्रो में सूर्य का ध्यान करने का महत्व इसिलए प्रतिपादित किया जाता रहा है। सूर्य तो हर व्यक्ति के भीतर नाभि में बसा है, जरूरत उसे उदय करने की है। सूर्य के वैज्ञानिक और आध्यात्मिक पक्ष के अनेक प्रसंग हैं और हर प्रसंग अलौलिकताओं व संभावनाओं से भरा हुआ है।

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