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 पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का !
 पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का !
साल 1987 में रीलिज हुई फिल्म सिंदूर का यह हिट गाना आज भी लोगों की जुबां पर रहता है, पतझड़ सावन बसंत बहार...एक बरस के मौसम चार, मौसम चार...पाँचवा मौसम प्यार का...लता मंगेशकर के गाये इस गीत में कोयल के कूकू करने और बुलबुल के गाने, फूलों के खिलने, बादल के बरसने की पंक्तियां संवेदनाओं को रोमांचित कर देती हैं। मौसम तो चार होते हैं, लेकिन आज पांचवा मौसम क्लाइमेट चेंज के वार का है जिससे हर आदमी जूझ रहा है। बुलबुल के गीत और कोयल की कूकू सुनने को कान तरसते हैं, एक बरस के मौसम चार की पूरी चाल बदल गई है।
हम सभी जानते हैं परिवर्तन संसार का शाश्वत नियम है, लेकिन जो परिवर्तन पूरी पृथ्वी और मानव-समाज को संकट में ला दे, वह शाश्वत नियम न होकर मनुष्य की अप्राकृतिक क्रिया की अप्राकृतिक प्रतिक्रया है। सरल शब्दों में कहें तो ठंड के मौसम में बरसात और गर्मी झेलने की विवशता, घर के भीतर गर्मी तो बाहर ठंड, बेमौसम बारिश, बेमौसम गर्मी फलस्वरूप प्राकृतिक विपदाओं के साथ बीमारियों का तोहफा। कहने का आशय है क्लाइमेट चेंज (जलवायु परिवर्तन) की इस जंग से हर आदमी जूझ रहा है। लगभग छह साल पहले वर्ष 2017 में महान भौतिक विज्ञानी स्टीफन हॉकिंग ने बीजिंग में टेनसेंट वी शिखर सम्मेलन में ऊर्जा की बढ़ती खपत और तेजी से बढ़ते धरती के तापमान को लेकर चेतावनी दी थी। उन्होंने कहा था कि यदि यही हालात रहे तो आने वाले 600 वर्षों में पृथ्वी आग का गोला बन जाएगी और मानव को दूसरे ग्रह पर बस्ती बसानी होगी। धरती आग का गोला बनती जा रही है। हर साल बढ़ती गर्मी का रिकार्ड सिर्फ भारत में ही नहीं टूट रहा है, पूरे विश्व का तापमान बढ़ता जा रहा है। 
कैंब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में बताया है कि बढ़ते तापमान की वजह से इंसान का दिमाग सिकुड़ रहा है और इंसान की लंबाई भी घट रही है। यानी तापमान का सीधा संबंध  इंसान के आकार से भी है। जलवायु परिवर्तन से विश्व के अधिकांश देश परेशान हैं।
हाल  ही में विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान बढ़ने की संभावना व्यक्त की है। वर्ष 2023 से 2027 तक सबसे गर्म पांच साल रहेंगे। यह चिंता सिर्फ आज की  नहीं है। यदि 26 साल पहले सन 1997 में जापान के क्योटों में विश्वभर के पर्यावरण वैज्ञानिकों की बैठक की तफ लौटें तो उस समय यह निर्णय लिया गया था कि सभी औद्योगिकृत देश अपने यहाँ ग्रीन हाउस गैसों की उत्सर्जन की मात्रा में कटौती करेंगे। इस पर पूरी ईमानदारी से अमल किया गया होता तो आज परिणाम कुछ और होते।
वैश्विक  तापमान में प्रतिदशक 0.5 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि नहीं होती। 2030 तक धरती के तापमान में 1.5 डिग्री की बढ़ोतरी हो जाने का अनुमान है। वजह साफ है मशीनी युग में जंगलों की कटाई, कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस जैसे जैव ईंधनों का अंधाधुंध उपयोग और  वायुमंडल में निरंतर बढ़ती कार्बन-डायआक्साईड की मात्रा। कार्बन डाई ऑक्साइड को मानव जनित ग्रीन हाउस गैस माना जाता है जो पिछले कुछ दशकों से धरती के तापमान को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार मानी जा रही है। परिणाम भी सामने है, पृथ्वी का गर्म होता वायुमंडल, ध्रुवीय क्षेत्र के पिघलते हिम, समुद्र का  बढ़ता जल स्तर,  कहीं सूखा, कही  बाढ़, वन्य  जीवन का संटक में अस्तित्व, अवसाद, बेचैनी, निराशा के  बीच मनुष्य की कम होती जीवन-प्रत्याशा और बीमारियाँ।
पूरी दुनिया के लिए इस समय जलवायु परिवर्तन सबसे बड़ी समस्या है। देशभर के लोगों को जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरुक करने के उद्देश्य से पिछले माह पृथ्वी दिवस पर देश की राजधानी दिल्ली में ग्लोबल क्लाइमेट क्लॉक लॉन्च की गई। यह घड़ी इस  बात की जानकारी देगी कि सिर्फ 6 साल 90 दिन और 22 घंटे में कैसे धरती का तापमान 1.5 डिग्री बढ़ जाएगा। 2030 में तय समय के बाद यह घड़ी बंद हो जायेगी। संकेत यह है कि छह साल बाद जलवायु परिवर्तन का हम सबके  जीवन  पर विपरीत प्रभाव पड़ेगा। इसकी उलटी गिनती शुरू हो चुकी है।
शास्त्र कहते हैं कि मनुष्य जन्म के साथ ही अनेक ऋण भी लेकर आता है। देव ऋण, पितृ ऋण, गुरु ऋण आदि की बात कही जाती है। भावी सुख-सुविधाओं और संतुष्टि के लिए मनुष्य अनेक प्रकार के ऋण चुकाता भी है। लेकिन हम सभी पर सबसे बड़ा ऋण प्रकृति का भी होता है। बिना प्रकृति के मानव जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती। हम जन्म लेते ही पहला दर्शन प्रकृति का करते हैं और उसकी गोद में सांस लेना शुरू करते हैं। इंडिया वाटर पोल में डॉ. ज्योती व्यास विश्व तापमान में वृद्धि के संबंध  में अपने आलेख में समाधान के रास्ते बताते हुए लिखती हैं, ‘’जीवाश्म ईधनों के दहन में कमी लाने के साथ  ही हमें वनों की ओर लौटना चाहिए, वन कटाई करके जो नुकसान हमने किया है, उसकी भरपाई भी हम करें।‘’ वे आगे और समाधान बताती हैं, ‘’जिस प्रकार आधुनिकता के नाम पर हम धरती का उपयोग कर रहे हैं, उसके घटकों का बेजा उपयोग कर रहे हैं, उस पर कानूनन रोक लगाई जाए। परंपरागत ऊर्जा स्रोतों के उपयोग को बढ़ावा दे।‘’ वस्तुतः यह सारे कदम उठाना न सिर्फ समय की मांग है अपितु प्रकृति के प्रति ऋण उतारने का श्रेष्ठ कदम भी है। यदि इस तरह के कदम उठाये जाते हैं तो आने वाले छह सालों में मानव जीवन के सामने आऩे वाली चुनौतियों से निपटा जा सकता है। यही युग की मांग है जिससे धरती को आग का गोला बनाने से रोका जा सके।
हमें इतिहास से प्रेरणा लेनी चाहिए। भारतीय संस्कृति में प्रकृति को माता माना गया है और हम सब  प्रकृति की संतान हैं। महाकवि कालीदास कुमारसंभव महाकाव्य और रघुवंश महाकाव्य में प्रकृति के सौंदर्य के साथ उसके संरक्षण का भी संदेश देते हैं।
जर्नल आफ एडवांस एंड स्कॉलरली इन एलाइड एजुकेशन में विनोद कुमार अपने शोध आलेख कालिदास के महाकाव्यों में प्रकृति संरक्षण का संदेश में अनेक महत्वपूर्ण तथ्यों की तरफ ध्यान आकर्षित करते हैं। वे लिखते हैं कि कालिदास पौधों के रोपण एवं वृक्षों के संरक्षण के प्रति इतने अधिक आग्रही है कि  वे  कहते हैं ‘’यदि कोई विष का वृक्ष स्वयं उग आए और बड़ा हो जाये तो उसे भी नहीं काटना चाहिए।  
‘विषवृक्षोपि संवध्र्य स्वयं छेत्तुमसाम्प्रतम्’, क्योंकि वह प्राणियों को हानि की अपेक्षा लाभ ही अधिक पहुंचाने वाला होगा। माँ पार्वती के द्वारा वृक्ष से स्वयं टूट कर गिरे हुए पत्तों को ही आहार के रूप में ग्रहण करने का वर्णन तो कालिदास के प्रकृति संरक्षण की पराकाष्ठा है।‘’
प्राचीन ऋषिवर और महानवेत्ता प्रकृति के दोहन के दुष्परिणामों से अवगत थे। कहते हैं कि सम्राट अशोक ने लाखों वृक्ष लगवाए थे और काटने पर दण्ड का भी प्रावधान किया था। वृक्ष काटने पर दण्ड के प्रावधान तो आज भी हैं, लेकिन फिर भी जंगल के जंगल कट रहे हैं। भावी पीढ़ी के सुखद भविष्य के लिए जलवायु परिवर्तन को लेकर वैश्विक स्तर पर सख्त कानून की जरूरत है। धऱती को आग का गोला बनने की स्टीफन हॉकिंग की चेतावनी पर हँसने की बजाए गंभीरता से लिया जाना चाहिए।
भारत ने एक नवंबर 2022 को ग्लासगो में जलवायु परिवर्तन पर शिखर सम्मेलन में पूरी दुनिया के सामने ’पंचामृत रणनीति’ का प्रस्ताव रखा। पाँच रणनीति में पहली-वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ऊर्जा क्षमता को 500 मेगावाट तक करना, दूसरी-अपनी 50 प्रतिशत ऊर्जा ज़रूरतें, रीन्यूएबल एनर्जी से पूरी करना, तीसरी-2030 तक ही कार्बन उत्सर्जन में एक अरब टन की कमी करना, चौथी-कार्बन तीव्रता में 30 प्रतिशत तक की कमी करना और पांचवी-2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन हासिल करना शामिल है। नेट जीरो लक्ष्य हासिल करने की यह रणनीति असल में ’क्लाइमेट चेंज’ की जंग है जिसमें शामिल होने की जरूरत आज पूरे विश्व को है। इसके लिए पहला कदम होगा हम सभी को अपनी जीवन शैली में बदलाव करना। इस ’पंचामृत’ को हासिल करना चुनौती जरूर है,. लेकिन इससे पूरी दुनिया को पाँच बड़े लाभ भी होंगे, पूरे विश्व का बढ़ता तापमान थमने लगेगा, पृथ्वी की जीवसृष्टि का तनाव कम होगा, ध्रुवों और हिमालय पर्वत के तेजी से पिघल रहे हिम की समस्या के समाधान के रास्ते निकलेंगे, प्रकृति के साथ खिलवाड़ में कमी आएगी और मनुष्य में श्वसन और हृदय सहित अन्य रोगों की हो रही बढ़ोत्तरी में कमी आएगी। आवश्यकता है प्रकृति से प्रेम को पांचवां मौसम बनाने की और मानवीय गतिविधयों के पैटर्न में बदलाव की।

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