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 सबके दिलों में अविचल युग ऋषि अटल .....
 
भारत रत्न युगपुरुष अटल बिहारी वाजपेयी जी के जन्मदिवस पर विशेष 
देवभूमि भारत देवताओं, वीर योद्धाओं और महापुरुषों की भूमि है। यह पवित्र भूमि महान आत्माओं के अवतरण की साक्षी रही है। हर युग में मनीषियों ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर समाज और राष्ट्र को नव-चेतना से परिपूर्ण नए युग के पथ पर अग्रसर किया है। इन श्रेष्ठ और महान व्यक्तियों को ही युग-ऋषि की उपाधि से अलंकृत किया जाता है। फिर विरले ही होते हैं वे युग ऋषि जिनका पूरा व्यक्तित्व और कृतित्व उनके न रहने पर भी हर दिलों में अविचल, अमर और ‘अटल’ रहता है।
अटल...तीन अक्षरों का यह शब्द अपने में समाए हुए है एक ऐसा व्यक्तित्व जिन्होंने राष्ट्र निर्माण की नई मान्यताओं को स्थापित किया।
अपनी राजनीतिक प्रतिबद्धता के लिए पूरे विश्व में प्रसिद्ध भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी सिर्फ यशस्वी राजनेता ही नहीं थे, पत्रकार, संपादक, एक संवेदनशील कवि, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक, प्रखर वक्ता, उत्कृष्ट सांसद, लोकप्रिय प्रधानमंत्री, एक असाधारण लोकसेवक,....क्या-क्या नहीं थे बहुआयामी विराट व्यक्तित्व के धनी अटल जी! उनकी वाणी में माँ सरस्वती विराजमान थीं। ईश्वरप्रदत्त उनकी वाणी के ओज में हर शख्स बहने लगता था। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व को सिर्फ लेखनी की सीमा में बाँधकर रखना अत्यंत दुष्कर है। उनकी संवेदनशील कविताओं और लेखों के माध्यम से ही नहीं, एंड टीवी पर प्रसारित हो रही उनकी अनसुनी बाल गाथा ‘अटल’ से भी जब उन्हें समझने का प्रयास किया जाता है तो हमें एक ऐसे विराट-पुरुष के दर्शन होते हैं जिनकी भाव-भूमि में व्याष्टि से लेकर समाष्टि तक के विचार समाहित हैं। विशेषकर उनकी कविताओं में, यह विधा उन्हें विरासत में मिली थी। जैसा कि अपने काव्य संग्रह ‘मेरी इंक्वायन कविताएँ’ की भूमिका 'कविता और मैं' में वे लिखते हैं, “मेरे पिता पं. कृष्ण बिहारी वाजपेयी, ग्वालियर रियासत के, अपने जमाने के, जाने-माने कवियों में थे। वह ब्रज भाषा और खड़ी बोली दोनों में लिखते थे। उनकी लिखी ईश्वर प्रार्थना विरासत के सभी विद्यालयों में सामूहिक रूप से गायी जाती थी।“ अटल जी कवि सम्मेलनों में पहले श्रोता के रूप में और फिर उदीयमान किशोर कवि के रूप में जाते थे। पहली कविता ताजमहल पर लिखी गई थी जिसमें ताज के सौंदर्य पक्ष का वर्णन न होकर उसका निर्माण कितने शोषण के बाद हुआ, इसका चित्रण था। वह कविता हाई स्कूल की पत्रिका में छपी थी। यह उनकी सत्यनिष्ठा का प्रत्यक्ष उदाहरण है।
राजनीति में आने के बाद उनके लिए कविता और गद्य लेखन के लिए समय निकालना अवश्य कठिन कार्य हो गया, किन्तु उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह कालजयी है। अटल जी लिखते हैं, ‘’मैंने जो थोड़ी सी कविताएँ लिखी हैं, वे परिस्थिति सापेक्ष हैं और आसपास की दुनिया को प्रतिबिम्बित करती हैं। अपने कवि के प्रति ईमानदार रहने के लिए मुझे काफी कीमत चुकानी पड़ी है, किन्तु कवि और राजनीतिक कार्यकर्ता के बीच मेल बिठाने का मैं निरन्तर प्रयास करता रहा हूँ।‘’ अटल जी की कविताओं में हमें राष्ट्रप्रेम, राष्ट्र के पौरुष और गौरव के वर्णन के साथ ही अध्यात्म की सूक्ष्म विवेचनाओं और उनके संवेदनशील मन में छिपी आशाओं, आकांक्षाओं के दर्शन होते हैं। कहा भी गया है कि कवि का आसन बहुत ऊँचा है। राज-राजेश्वरों की भी पहुँच वहाँ तक नहीं है। पद्मश्री पं. मुकुटधर पाण्डेय के शब्दों में, “कवि ईश्वरीय विभूति सम्पन्न होते हैं। इसीलिए लोग उन्हें पूज्य दृष्टि से देखते हैं और उनकी रचना संसार की स्थाई सम्पत्ति समझी जाती है। इन रचनाओं में सर्वत्र प्रतिभा की प्रभावशालिनी रश्मियों का समावेश रहता है। इस कारण वे मनुष्य की ह्रदय कलिका को खिलाकर उसके अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखते हैं।“
यह कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं कि युग-ऋषि अटल जी ईश्वरीय विभूति सम्पन्न थे। वे हमारे बीच नहीं है किन्तु उनकी रचनाएँ आज भी मानव की ह्रदय कलिका खिलाकर अंतर प्रदेश को प्रकाशित करने की शक्ति रखती है। उनकी कविताएँ निराशा के घोर अँधकार को चीरकर आशा के दीप इस तरह जलाती हैं-
 भरी दुपहरी में अँधियारा 
 सूरज परछाईं से हारा। 
 अन्तरतम का नेह निचोड़ें, 
 बुझी हुई बाती सुलगाएँ, 
 आओ फिर से दिया जलाएँ। 
 हम पड़ाव को समझे मंजिल 
 लक्ष्य हुआ आँखों से ओझल, 
 वर्तमान के मोहजाल में आने वाला कल न भुलाएँ। 
 आओ फिर से दिया जलाएँ।
अटल जी की कविताएँ आज भी प्रासंगिक हैं और सदैव प्रासिंगक रहेंगी। वर्तमान में विकसित भारत@2047 की परिकल्पना को पूरा देश साकार करने एकजुट हो रहा है। अटल जी ने एक नए भारत के निर्माण का स्वप्न काफी पहले ही देखा था जो उनकी कविताओं में भी अभिव्यक्त हुआ था। एक बनगी देखिए-
 स्वप्न देखा था कभी जो आज हर धड़कन में है 
 एक नया भारत बनाने का इरादा मन में है 
 एक नया भारत कि जिसमें एक नया विश्वास हो 
 जिसकी आँखों में एक चमक हो, एक नया उल्लास हो 
 हो जहाँ सम्मान हर एक जाति, हर एक धर्म का 
 सब समर्पित हों जिसे, वह लक्ष्य जिसके पास हो 
 एक नया अभिमान अपने देश पर जन-जन में है 
 एक नया भारत बनाने का इरादा मन में है।
अटल जी की कविताओं में दर्शन का सूक्ष्म विवेचन देखने को मिलता है। उनका विचार था कि मनुष्य कितनी भी ऊंचाइयों को स्पर्श कर ले, लेकिन उसे कभी अपना धरातल नहीं छोड़ना चाहिए। ‘पहचान’ नामक कविता की कुछ पंक्तियाँ दृष्टव्य हैं-
 आदमी को चाहिए कि वह जूझे, 
 परिस्थितयों से लड़े, 
 एक स्वप्न टूटे तो दूसरा गढ़े। 
 किंतु कितना भी ऊँचा उठे, 
 मनुष्यता के स्तर से न गिरे, 
 अपने धरातल को न छोड़े, 
 अन्तर्यामी से मुँह न मोड़े। 
 एक पाँव धरती पर रख कर ही 
 वामन भगवान ने आकाश, पाताल को जीता था। 
 धरती ही धारण करती है, 
 कोई इस पर भार न बने, 
 मिथ्या अभिमान से न तने। 
 आदमी की पहचान, 
 उसके धन या आसन से नहीं होती, 
 उसके मन से होती है। 
 मन की फकीरी पर 
 कुबेर की सम्पदा भी रोती है।
 
विलक्षण कवि अटल जी की काव्य-धारा आज भी अपने ओजपूर्ण आगोश में समेटकर बहा ले जाने को आतुर प्रतीत होती है। अटल जी के विरोधी भी उनके प्रशंसक थे। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता हमें अन्य किसी में दिखलाई नहीं देती। सन् 1992 में पद्मविभूषण सम्मान से अलंकृत होने पर आयोजित सम्मान समारोह में उन्होंने ‘ऊँचाई’ नामक कविता का पाठ किया था जिसकी अंतिम पंक्तियाँ हैं-
 हे प्रभु 
 मुझे इतनी ऊँचाई कभी मत देन 
 गैरों को गले लगा न सकूँ 
 इतनी रुखाई कभी मत देना।
पूरा जीवन भारत माता की सेवा करने में समर्पित करने वाले अटल जी की ‘मौत से ठन गई’ नामक कविता की यह पंक्ति भी देखिये-
 प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
 न अपनों से बाकी है कोई गिला। 
उनके कोमल व संवेदनशील ह्रदय का परिचय कराती ‘हीरोशिमा की पीड़ा’ नामक कविता की पंक्तियाँ हैं-
 किसी रात को 
 मेरी नींद अचानक उचट जाती है, 
 आँख खुल जाती है, 
 मैं सोचने लगता हूँ कि 
 जिन वैज्ञानिकों ने अणु-अस्त्रों का 
 अविष्कार किया थाः 
 वे हिरोशिमा-नागासाकी के भीषण नरसंहार के समाचार सुनकर, 
 रात को सोये कैसे होंगे? 
 क्या उन् एक क्षण के लिए सही, यह 
 अनुभूति हुई कि उनके हाथों जो कुछ हुआ, अच्छा नहीं हुआ यदि हुई, तो वक्त उन्हें कठघरे में खड़ा नहीं करेगा, किंतु यदि नहीं हुई, तो इतिहास उन्हें कभी 
 माफ नहीं करेगा। 
 
अटल जी ने अनेक किवताएँ लिखीं जिनकी मार्मिक अभिव्यक्ति उनके भाषणों में भी हुआ करती थी। उनकी काव्य-सृष्टि का अद्भुत संसार है जो राष्ट्रीय से लेकर वैश्विक स्तर तक के हर पहलुओं को अपने भीतर समाए हुए है। डॉ. आशीष वशिष्ठ अपनी प्रसिद्ध कृति युग पुरुष अटल बिहारी वाजपेयी की भूमिका में लिखते हैं, ‘’राजनीतिक जीवन में शुचिता के पक्षधर अटल जी की स्वीकार्यता का आलम यह था कि जब वे लोकसभा का चुनाव हारे तो सदन में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी ने कहा था कि अटल के बिना सदन सूना लगता है। उन्हें भारत रत्न तो बाद में मिला लेकिन, वाकई वे भारत रत्न थे।‘’ भारत के राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ने वाले सामावेशी व्यक्तित्व के धनी युग ऋषि अटल जी हर दिल में अविचल रहेंगे।
 और अंत में दिल की बात – 
मुझे इस बात पर सदैव गर्व की अनुभूति होती है कि वर्ष 2004 में भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी जी के हाथों पत्रकारिता के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए चंदुलाल चंद्राकर पत्रकारिता फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। एक महान राजनीतिज्ञ और कवि ही नहीं, महान पत्रकार और संपादक अटल जी के हाथों यह सम्मान प्राप्त हुए 19 वर्ष  हो चुके हैं, किन्तु वे पल मेरे ह्रदय में आज भी अविचल हैं जब उन्होंने पुरस्कार देते हुए अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ मेरी तरफ देखा था और शुभकामनाएँ दी थीं। वह मेरे जीवन का सर्वश्रेष्ठ पल था जिसकी यादें सदैव अमिट बनी हुई हैं...
 युग ऋषि अटल जी को शत-शत नमन....वंदे मातरम...

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