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वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने और मानव पशु संघर्ष के प्रभावी प्रबंधन में हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र रामकोला की है महत्वपूर्ण भूमिका
 आलेख -  लक्ष्मीकांत कोसरिया, उप संचालक, जनसंपर्क 
 मुख्यमंत्री श्री विष्णु देव साय के मार्गदर्शन में राज्य सरकार द्वारा मानव हाथी द्वंद को रोकने लगातार जन जागरूकता अभियान चलाया जा रहा है। सरगुजा से ‘‘हमर हाथी हमर गोठ’’ रेडियो कार्यक्रम का प्रसारण कर हाथियों के विचरण की जानकारी स्थानीय लोगों को दी जा रही है। मुख्यमंत्री श्री साय के निर्देश पर राज्य सरकार द्वारा स्थानीयजनों को अपनी ओर हाथियों की सुरक्षा के प्रति संवेदनशील बनाने गज यात्रा अभियान चलाई जा रही है। साथ ही ‘‘गज संकेत एवं सजग एप’’ के माध्यम से भी हाथी विचरण की जानकारी दी जा रही है। 
तमोर पिंगला अभयारण्य की विस्तृत सीमाओं के पास स्थित घुई वन रेंज के रामकोला हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र वन्यजीव संरक्षण और प्रबंधन के लिए छत्तीसगढ़ वन विभाग की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। केंद्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण (सीजेडए), नई दिल्ली से सैद्धांतिक मंजूरी के साथ 2018 में यह केन्द्र आधिकारिक तौर पर स्थापित किया गया। यह 4.8 हेक्टेयर क्षेत्र में फैला है जो हाथियों की विशेष देखभाल और प्रबंधन के लिए समर्पित है। यह छत्तीसगढ़ का एकमात्र हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र है, जो सीजेडए के दिशा-निर्देशों के तहत संचालित होता है।
उल्लेखनीय है कि राज्य में हाथी के संवर्धन के लिए यहां के वन अनुकूल है। राज्य का 44 प्रतिशत क्षेत्र वनों से आच्छदित है, जिसमें हाथियों के संरक्षण और संवर्धन के लिए वातावरण उपयुक्त है। यहां के अनुकूल वातावरण के कारण हाथियों की संख्या में वृद्धि हो रही है। राज्य में वनों के संवर्धन के लिए ‘‘एक पेड़ मां के नाम’’ अभियान के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है तथा विभाग द्वारा 3 करोड़ 80 लाख पौधे लगाने का लक्ष्य रखा गया था। महतारी वंदन योजना के तहत लाभान्वित महिलाओं को भी इस अभियान से जोड़ा गया है। 
हाथी रिजर्व सरगुजा के प्रबंधन के तहत इस केन्द्र में नौ हाथियों का एक संपन्न समुदाय है, जिसमें तीन उत्साही शावक भी शामिल हैं। वर्ष 2018 के प्रारंभ में, मानव-हाथी संघर्ष व्यवहार को देखते हुए महासमुंद वन प्रभाग के पासीद रेंज में एक अस्थायी शिविर में कर्नाटक से पांच कुमकी हाथियों को लाया गया था। एक साल बाद, इन हाथियों को रामकोला स्थानांतरित कर दिया गया, जहाँ उन्हें विशेष देखभाल हाथी रिजर्व सरगुजा के उप निदेशक श्री व्ही. श्रीनिवास राव के मार्ग दर्शन में सहायक पशु चिकित्सा अधिकारी डॉ अजीत पांडे द्वारा की जाती है। कर्नाटक के दुबारे हाथी शिविर में प्रशिक्षित कुशल महावत यह सुनिश्चित करते हैं कि हाथियों को उचित देखभाल मिले। 
श्री राव ने केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका पर कहा कि जंगली हाथियों द्वारा उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए वन विभाग द्वारा इस द्वंद को कम करने पूरी लगन से कार्य किया जा रहा है।  हाथी राहत एवं पुनर्वास केंद्र इन प्रयासों का केंद्र है, जो विशेष रणनीतियों को नियोजित करता है और स्थानीय समुदायों और वन्यजीवों के बीच सह-अस्तित्व को बढ़ावा देता है।” इस केंद्र में हाथियों में प्रमुख हैं कुमकी नर तीर्थराम, दुर्याेधन और परशुराम, साथ ही मादा गंगा और योगलक्ष्मी, जिन्होंने हाल ही में क्रमशः एक नर और मादा बच्चे को जन्म दिया है। इसके अतिरिक्त यह केंद्र जशपुर वन प्रभाग से बचाए गए मादा बच्चे जगदंबा की देखभाल भी करता है, जिसे वन विभाग द्वारा उसके झुंड के साथ फिर से मिलाने के असफल प्रयासों के लिए जाना जाता है।
वर्ष 2018 में अपनी स्थापना के बाद से यह हाथी राहत और पुनर्वास केन्द्र राज्य में बाघों, तेंदुओं और जंगली हाथियों सहित वन्यजीवों के प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। केन्द्र के प्रशिक्षित कुमकी हाथी मानव-वन्यजीवन संघर्षों को कम करने और वन्यजीवों की आवाजाही को निदेर्शित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिससे स्थानीय समुदायों के लिए हताहत होने और वित्तीय नुकसान में काफी कमी आयी है। उनके प्रयासों में आक्रामक जंगली हाथियों को जंगल में वापस खदेड़ना और वन विभाग और भारतीय वन्यजीव संस्थान के सहयोग से उनके रेडियो-कॉलर लगाने में सहायता करना शामिल है, जिससे वन्यजीव आबादी स्थिर होती है और संरक्षण प्रयासों को बढ़ावा मिलता है।
इन कुमकी हाथियों के प्रभाव को कई उल्लेखनीय बचाव अभियानों द्वारा चिह्नित किया जा चुका है। कोरबा वन प्रभाग से गणेश और प्रथम जैसे जंगली हाथियों के साथ-साथ सरगुजा वन मंडल से प्यारे, महान, मैत्री, कर्मा, मोहनी, गौतमी और बेहरादेव जैसे अन्य हाथियों को इन प्रयासों के माध्यम से प्रभावी ढंग से प्रबंधन किया गया है। इसके अतिरिक्त, उन्होंने मनेंद्रगढ़ वन प्रभाग के जनकपुर रेंज से एक तेंदुए और सूरजपुर वन प्रभाग के ओढगी रेंज से एक गंभीर रूप से घायल बाघिन को बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचाव के बाद, बाघिन को चिकित्सा उपचार के लिए रायपुर में जंगल सफारी और उसके बाद पुनर्वास के लिए अचानकमार टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित कर दिया गया। बाघिन अब स्वस्थ है और अच्छी तरह से अनुकूलित हो गई है। ये ऑपरेशन पेशेवर देखभाल और ध्यान के साथ जटिल वन्यजीव आपात स्थितियों के प्रबंधन में केंद्र की विशेषज्ञता को उजागर करते हैं।
केंद्र में चिकित्सा देखभाल और आवास प्रबंधन उच्चतम पशु चिकित्सा मानकों का पालन करता है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि हाथियों के साथ कभी भी कोई दुर्व्यवहार न किया जाए। सभी हाथियों को नियमित टीकाकरण, परजीवी-रोधी उपचार मिलते हैं, और उन्हें एक स्थिर, रोग-मुक्त वातावरण प्रदान करने के लिए अनुरूप पोषण योजनाएं दी जाती हैं। महावतों, चारा काटने वालों और पशु चिकित्सकों द्वारा नियमित देखभाल, साथ ही दैनिक जंगल की सैर, यह सुनिश्चित करती है कि हाथी स्वस्थ और प्राकृतिक व्यवहार बनाए रखें तथा हर कदम पर उनकी भलाई को प्राथमिकता दी जाए।
केंद्र की असाधारण देखभाल का एक मार्मिक उदाहरण एक जंगली हाथी सोनू है जिसे अचानकमार टाइगर रिजर्व से पकड़ा गया था और बाद में सिहावल सागर हाथी शिविर में स्थानांतरित कर दिया गया था। थोड़े समय रहने के बाद, सोनू को इस केंद्र में ले जाया गया, जहाँ उसे नियमित स्वास्थ्य जाँच और सावधानीपूर्वक तैयार की गई पोषण योजना सहित विशेष देखभाल मिल रही है, जिससे उसकी सेहत और उसके नए वातावरण को सहज अनुकूलन सुनिश्चित हो रहा है। 
वरिष्ठ आई.एफ.एस. अधिकारी श्री प्रेम कुमार और श्री के.आर. बरहाई ने बताया कि इस केंद्र में हाथियों की सर्वाेत्तम देखभाल सुनिश्चित की जाती है, साथ ही नियमों और विनियमों के अनुसार सुविधाओं में और सुधार के लिए गंभीर प्रयास किए जा रहे हैं। केंद्र में सभी हाथी अपने नए वातावरण में पनप रहे हैं। उनका बेहतर स्वास्थ्य पूरे स्टाफ द्वारा की गई समर्पण और देखभाल का प्रमाण है। छत्तीसगढ़ में वन्यजीव संरक्षण प्रयासों को आगे बढ़ाने और मानव-पशु संघर्षों के प्रभावी प्रबंधन में हाथी राहत और पुनर्वास केंद्र की महत्वपूर्ण भूमिका है।

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