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  दिल ढूंढता है फिर वहीं फुरसत के रात दिन.... गाने के लिए मदन मोहन ने 10 धुनें तैयार की थी....
  जन्मदिन पर विशेष- आलेख मंजूषा शर्मा
हिंदुस्तानी सिनेमा में जब भी बेहतरीन गीत- गजलों की बात चलेगी तो संगीतकार मदनमोहन को याद किया जाएगा।  लग जा गले कि फिर ये हंसी रात हो न हो..... गाना भला कौन भूला सकता है। आज भी हर व्यक्ति इस गाने को अपनी तरह से गुनगुनाता है। आजकल के नए गायक भी इस गाने को अलग - अलग अंदाज में नए वाद्य यंत्रों के साथ गाते हैं, लेकिन न तो वे  लता मंगेशकर की आवाज जैसी रुहानी कशिश पैदा कर पाते हैं और न ही उनके संगीत में  दिल तक पहुंचने वाले मदन मोहन के संगीत जैसी बात होती है। 
फिल्म मौसम की बात चलेगी तो लोग गुलजार से ज्यादा मदन मोहन के गानों को याद करते हैं।  फिल्म का दिल ढूंढता है फिर वहीं फुरसत के रात दिन.....हो या फिर रुके रुके से कदम.....। गुलजार के पसंदीदा संगीतकार आर. डी बर्मन रहे हैं, लेकिन उन्होंने अपनी इस फिल्म में मदन मोहन साहब को लिया। फिल्म के मूड के हिसाब से मदन मोहन ने ऐसे गजब की धुनें तैयार की  कि  लोग आज भी इन्हें सुनते रह जाते हैं।  दिल ढूंढता है फिर वही फुर्सत के रात दिन,, के लिए उन्होंने 10 धुनें बनायीं थी। फिर उनमें से एक धुन को लेकर यह गाना तैयार किया, तो अमर हो गया। दरअसल, मदन मोहन के अंदर शब्दों के साथ जुड़ी हुई लय को पहचानने की जबरदस्त क्षमता थी। 
 मदन मोहन का जन्म 25 जून, 1926 को बगदाद में हुआ था। उनका पूरा नाम था मदन मोहन कोहली। अपना कॅरिअर उन्होंने सेना में काम करके शुरू किया था, लेकिन संगीत के प्रति झुकाव ने उन्हें संगीतकार बना दिया।  सेना छोड़कर लखनऊ में मदन मोहन आकाशवाणी के लिये काम करने लगे। आकाशवाणी में उनकी मुलाकात संगीत जगत् से जुड़े उस्ताद फ़ैयाज़ ख़ाँ, उस्ताद अली अकबर ख़ाँ, बेगम अख़्तर और तलत महमूद जैसी जानी मानी हस्तियों से हुई। इन हस्तियों से मुलाकात के बाद मदन मोहन काफ़ी प्रभावित हुये और उनका रुझान संगीत की ओर हो गया। अपने सपनों को नया रूप देने के लिये मदन मोहन लखनऊ से मुंबई आ गये। मुंबई आने के बाद मदन मोहन की मुलाकात एस. डी. बर्मन, श्याम सुंदर और सी. रामचंद्र जैसे प्रसिद्ध संगीतकारों से हुई और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे। बतौर संगीतकार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फि़ल्म आंखें के ज़रिये मदन मोहन फि़ल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए।
 लता मंगेशकर मदन मोहन को भाई मानती थीं। यह बड़े कमाल की बात है कि अच्छी आवाज के धनी मदन मोहन ने ग़ुलाम हैदर के संगीत में एक डुएट लता के साथ गया था पर वह फिल्म में लिया नहीं गया। ये बात अलग है कि प्रारंभ में लता ने भी उन्हें गभीरता से नहीं लिया और उनके साथ काम करने से मना कर दिया।  लेकिन जब फिल्म आंखें का संगीत हिट हुआ तो उन्होंने अपनी राय बदल ली। 
इसमें कोई दो राय नहीं कि हिंदी फि़ल्म संगीत में  गजलों को एक नया रूप देने में मदन मोहन का बहहुत बड़ा हाथ था।  लता मंगेशकर तो उन्हें  गजलों का बादशाह कहती थीं। लता मंगेशकर के साथ उन्होंने बेहतरीन गजलें तैयार की।  मदमोहन के साथ लता की गाई हुई एक से एक नायाब गजलें हैं। फिल्म धुन (1953) की गजल-  बड़ी बर्बादियां लेकर दुनिया में प्यार आया, अनपढ़  (1962) की- आपकी नजऱों ने समझा प्यार के काबिल मुझे, दस्तक (1970) की गजल हम हैं मता-ए-कूचा-औ-बाज़ार की तरह,  फिल्म  जहांआरा  की  वो चुप रहें तो मेरे दिल के दाग़ जलते हैं,  बेहतरीन गजले हैं।   राग मालगुंजी में मदन मोहन ने -उनको ये शिकायत है कि हम कुछ नहीं कहते ,  जाना था हमसे दूर बहाने बना लिए भी  हिन्दी फिल्म जगत की बेहतरीन गजले हैं। 
मदन मोहन ने दाना पानी  (1953) में बेग़म अख्तर से कैफ़ इरफ़ानी की गजल- ऐ इश्क़ मुझे और तो कुछ याद नहीं है गवाई। बेग़म अख्तर उस वक्त  फि़ल्मों के लिए गाना छोड़ चुकी थीं, लेकिन मदन मोहन ने उन्हें इस गजल के लिए मना ही लिया। उस वक्त बेगम अख्तर ने यदि किसी के लिए गया तो वे मदन मोहन ही थे। 
उस दौर के महान संगीतकार नौशाद को इस बात का मलाल रहा कि गजल कंपोज़ीशन में वो मदन मोहन से कमतर थे।  जबकि वे शास्त्रीय संगीत के ज्ञाता था और मदन मोहन साहब इस मामले में उनसे कमतर थे। 
 1964 में चेतन आनंद ने एक फि़ल्म बनायी थी  हकीक़त।  यह हिंदुस्तानी सिनेमा में किसी जंग को लेकर बनायी हुई अब तक की सबसे मौलिक फि़ल्म मानी जाती है। फिल्म का संगीत तैयार करने का मौका  मदन मोहन को मिला और इस बार गाने लिखने वाले थे कैफी आजमी।  फिल्म के गाने काफी लोकप्रिय हुए।  फिल्म का एक गाना....मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था.....आज भी सुनो तो एक अलग अनुभूति देता है। कर चले हम फि़दा जां-ओ-तन साथियों...गीत तो आज भी आजादी के जश्न की शान है। फिल्म में लता मंगेशकर के हिस्से में एक लाजवाब गाना आया... जरा सी आहट होती कि दिल सोचता है.....
 मदन मोहन और कैफ़ी साहब  ने फिल्म हीर रांझा (1970) हंसते ज़ख्म (1973) में भी काम किया। ऑपेरानुमा फिल्म हीर रांझा के गाने भी खासे लोकप्रिय रहे।  हंसते ज़ख्म  का वह गीत  तुम जो मिल गए हो तो ये लगता है .....फिल्म जगत के बेहतीन रोमांटिक गानों में से है। अपनी मधुर संगीत लहरियों से श्रोताओं के दिल में ख़ास जगह बना लेने वाले मदन मोहन 14 जुलाई 1975 को इस दुनिया से जुदा हो गए। उनकी मौत के बाद वर्ष 1975 में ही मदन मोहन की मौसम  और  लैला मजनूं  जैसी फि़ल्में प्रदर्शित हुई जिनके संगीत का जादू आज भी श्रोताओं को मंत्रमुग्ध करता है।  मदन मोहन साहब के गानों और गजलों की फेहरिस्त काफी लंबी है और उनके संगीत के बारे में लिखने के लिए शब्द कम। 
मदन मोहन साहब के सुमधुर संगीत से महक उठे कुछ चुनिंदा गाने.....जिसे लोग कभी भुला नहीं पाएंगे-  
1. लगा जा लगे  कि फिर ये हंसी रात 
2.  नैना बरसे रिमझिम 
3. नैनों में बदरा छाए बिजली सी चमके हाय
4. तू जहां जहां चलेगा, मेरा साया साथ होगा
5. ऐ दिल मुझे बता दे तू किस पे आ गया है
6. तुम जो मिल गए हो....
7. आपकी नजऱों ने समझा प्यार के काबिल मुझे
8. माई री मैं कासे कहूं पीर अपने जिया की
9. दिल ढूंढता है फिर वहीं फुरसत के रात दिन
10. आपकी नजऱों ने समझा प्यार के काबिल मुझे
11. हम प्यार में जलने वालोंं को 
12. ये दुनिया ये महफिल मेरे काम की नही
13. सिमटी सी शर्मायी सी तुम किस दुनिया से आई हो 
14. कर चले हम फि़दा जां-ओ-तन साथियों
15. तेरे लिए हम है जिए....
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