इस बार का दादा साहेब फाल्के पुरस्कार आशा पारेख को मिलेगा...
नई दिल्ली। दिग्गज अभिनेत्री आशा पारेख को साल 2022 में दादा साहब फाल्के अवॉर्ड से सम्मानित किया जाएगा। केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने आज इस बात का एलान किया है। आशा पारेख का नाम 60 और 70 के दशक की सबसे बेहतरीन अभिनेत्रियों में गिना जाता है ।
उनके नाम की घोषणा करते हुए केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा- ये हमारे लिए गर्व का विषय है कि इस वर्ष दादा साहब फाल्के पुरस्कार अभिनेत्री आशा पारेख को मिल रहा है। उन्होंने 10 वर्ष की आयु में फिल्मों में काम करना शुरू किया। उन्होंने 95 से ज्यादा फिल्मों में काम किया है।
आशा पारेख अभिनेत्री के साथ-साथ प्रोड्यूसर व डायरेक्टर भी रही हैं। इससे पहले उन्हें भारत सरकार की ओर से पद्मश्री से भी सम्मानित किया जा चुका है। आशा पारेख ने अपने करियर की शुरुआत बाल कलाकार के रूप में बेबी आशा पारेख नाम से की थी। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक बिमल रॉय ने उन्हें स्टेज समारोह में नृत्य करते देखा और उन्हें दस साल की उम्र में माँ (1952) में लिया और फिर उन्हें बाप बेटी (1954) में दोहराया। इस फिल्म की विफलता ने उन्हें निराश किया और भले ही उन्होंने कुछ और बाल भूमिकाएं कीं, फिर भी उन्होंने अपनी स्कूली शिक्षा को फिर से जारी किया। सोलह साल की उम्र में उन्होंने फिर से अभिनय करने की कोशिश की और एक नायिका के रूप में अपनी शुरुआत की। लेकिन उन्हें अभिनेत्री अमीता के लिये विजय भट्ट की गूँज उठी शहनाई (1959) से खारिज कर दिया गया, क्योंकि फिल्म निर्माता ने दावा किया था कि वह प्रसिद्ध अभिनेत्री बनने के काबिल नहीं थी। ठीक आठ दिन बाद, फिल्म निर्माता सुबोध मुखर्जी और लेखक-निर्देशक नासिर हुसैन ने उन्हें शम्मी कपूर के विपरीत दिल देके देखो (1959) में नायिका के रूप में लिया। इसने उन्हें एक बड़ा सितारा बना दिया।
इस फिल्म से नासिर हुसैन के साथ उनका लंबा और फलदायी जुड़ाव रहा। उन्होंने अपनी छह और फिल्मों में आशा को नायिका के रूप में लिया; जब प्यार किसी से होता है (1961), फिर वही दिल लाया हूँ (1963), तीसरी मंजिल (1966), बहारों के सपने (1967), प्यार का मौसम (1969) और कारवाँ (1971)। उन्होंने उनकी फि़ल्म मंज़िल मंज़िल (1984) में एक कैमियो भी किया। आशा पारेख को मुख्य रूप से उनकी अधिकांश फिल्मों में ग्लैमर गर्ल / उत्कृष्ट नर्तकी के रूप में जाना जाता था। जब तक कि निर्देशक राज खोसला ने उन्हें अपनी तीन फिल्मों में अलग तरह की भूमिकाएं नहीं दी; दो बदन (1966), चिराग (1969) और मैं तुलसी तेरे आँगन की (1978)। निर्देशक शक्ति सामंत ने उन्हें अपनी अन्य फिल्मों, पगला कहीं का (1970) और कटी पतंग (1970) में अधिक नाटकीय भूमिकाएँ दीं। बाद वाली के लिये उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री का फिल्मफेयर पुरस्कार मिला।
दादा साहेब फाल्के पुरस्कार
दादा साहब फाल्के पुरस्कार भारत सरकार की ओर से दिया जाने वाला एक वार्षिक पुरस्कार है, जो किसी व्यक्ति विशेष को भारतीय सिनेमा में उसके आजीवन योगदान के लिए दिया जाता है। इस पुरस्कार का प्रारम्भ दादा साहब फाल्के के जन्म शताब्दी-वर्ष 1969 से हुआ। उस वर्ष राष्ट्रीय फि़ल्म पुरस्कार के लिए आयोजित 17वें समारोह में पहली बार यह सम्मान अभिनेत्री देविका रानी को प्रदान किया गया। तब से अब तक यह पुरस्कार लक्षित वर्ष के अंत में अथवा अगले वर्ष के आरम्भ में 'राष्ट्रीय फि़ल्म पुरस्कार' के लिए आयोजित समारोह में प्रदान किया जाता है। वर्तमान में इस पुरस्कार में 10 लाख रुपये और स्वर्ण कमल दिये जाते हैं।
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