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चीनी भरतनाट्यम नृत्यांगना ने रचा इतिहास; चीन में अरंगेत्रम प्रस्तुति दी

बीजिंग. स्कूली छात्रा लेई मुजी ने चीन में भरतनाट्यम “अरंगेत्रम” की प्रस्तुति दे कर इतिहास रच दिया। इसे पड़ोसी देश में लोकप्रियता हासिल कर रही प्राचीन भारतीय नृत्य शैली की यात्रा में एक मील के पत्थर के तौर पर देखा जा रहा है। लेई (13) ने रविवार को यहां प्रसिद्ध भरतनाट्यम नृत्यांगना लीला सैमसन, भारतीय राजनयिकों और बड़ी संख्या में चीनी प्रशंसकों के समक्ष अपनी नृत्य प्रस्तुति दी। भारतीय शास्त्रीय कला और नृत्य शैलियों को सीखने और उनके प्रदर्शन के लिये दशकों तक अपना जीवन समर्पित करने वाले उत्साही चीनी प्रशंसकों के लिए मंच पर उनका पदार्पण एक ऐतिहासिक क्षण और मील का पत्थर था, क्योंकि यह चीन में पहली बार “अरंगेत्रम” - भरतनाट्यम का दीक्षांत समारोह - था। दक्षिण भारत के प्राचीन नृत्य, अरंगेत्रम (जैसा कि इसे तमिल में कहा जाता है) के कलाकार, दर्शकों के अलावा शिक्षकों और विशेषज्ञों के सामने मंच पर अपनी पहली प्रस्तुति देते हैं। केवल ‘अरंगेत्रम' के बाद ही छात्रों को स्वयं प्रदर्शन करने या महत्वाकांक्षी नर्तकों को प्रशिक्षित करने की अनुमति दी जाती है। कार्यक्रम में शामिल भारतीय दूतावास के संस्कृति मामलों के प्रभारी प्रथम सचिव टी.एस. विवेकानंद ने कहा, “यह चीन में पूर्ण रूप से प्रशिक्षित और चीन में प्रस्तुत किया गया पहला अरंगेत्रम है।” उन्होंने  बताया कि यह बहुत ही पारंपरिक तरीके से किया गया ‘अरंगेत्रम' था।
लेई को प्रशिक्षित करने वाली प्रसिद्ध चीनी भरतनाट्यम नृत्यांगना जिन शान शान ने कहा, “लेई का अरंगेत्रम ऐसा प्रशिक्षण है जिसे एक चीनी शिक्षक द्वारा प्रशिक्षित चीनी छात्रों ने चीन में पूरा किया है, जो भरतनाट्यम विरासत के इतिहास में एक मील का पत्थर है।” भारतीय राजदूत प्रदीप रावत की पत्नी श्रुति रावत लेई के अरंगेत्रम में मुख्य अतिथि थीं।
लीला सैमसन के अलावा चेन्नई से आए संगीतकारों की एक टीम ने लेई के लिए शास्त्रीय गीत गाए।
लेई इस महीने के अंत में चेन्नई में प्रस्तुति देने वाली हैं। लेई को डुडू के नाम से भी जाना जाता है। उन्होंने कहा कि 2014 में जिन के स्कूल में शामिल होने के बाद से ही उन्हें भरतनाट्यम से प्यार हो गया था। उन्होंने कहा, “मुझे इससे पूरी तरह से प्यार हो गया। मैं अब तक नृत्य करती रही हूं। मेरे लिए भरतनाट्यम न केवल एक सुंदर कला और नृत्य रूप है, बल्कि भारतीय संस्कृति का प्रतीक भी है।

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