प्रधानमंत्री मोदी ने संवेदनशील देशों के लिए बुनियादी ढांचा पहल आईआरआईएस की शुरुआत की
ग्लासगो । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मंगलवार को छोटे द्वीपीय देशों में बुनियादी ढांचे के विकास की खातिर, ‘‘छोटे द्वीपीय देशों के लिए लचीली आधारभूत संरचना'' (आईआरआईएस) पहल की शुरुआत की और कहा कि यह सबसे संवेदनशील देशों के लिए कुछ करने की नयी उम्मीद, नया आत्मविश्वास और संतोष प्रदान करती है। जलवायु शिखर सम्मेलन के दूसरे दिन यहां इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी के साथ उनके ब्रिटिश समकक्ष बोरिस जॉनसन भी मौजूद थे। इस कार्यक्रम में ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन और संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुतारेस भी शामिल हुए। मोदी ने इस पहल की खातिर ‘‘आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन'' (सीडीआरआई) को बधाई दी और कहा कि उनके लिए सीडीआरआई या आईआरआईएस केवल बुनियादी ढांचे नहीं हैं बल्कि यह मानव कल्याण की बहुत संवेदनशील जिम्मेदारी का हिस्सा हैं। प्रधानमंत्री ने कहा, "यह मानव जाति के प्रति हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी है। एक प्रकार से यह हमारे पापों का साझा प्रायश्चित है। पिछले कुछ दशकों ने साबित कर दिया है कि जलवायु परिवर्तन के प्रकोप से कोई भी देश नहीं बच पाया है। चाहे वे विकसित देश हों या प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश, यह सभी के लिए एक बड़ा खतरा है।" उन्होंने कहा कि छोटे द्वीपीय विकासशील देशों या एसआईडीएस को जलवायु परिवर्तन से, सबसे बड़े खतरे का सामना करना पड़ता है और भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो उनके लिए एक विशेष ‘डेटा विंडो' बनाएगी ताकि उन्हें उपग्रह के जरिए चक्रवात, ‘कोरल-रीफ' निगरानी, तट-रेखा निगरानी आदि के बारे में समय पर जानकारी प्रदान की जा सके। इस मौके पर ब्रिटिश प्रधानमंत्री जॉनसन ने कहा कि यह कटु सत्य है कि कमजोर व छोटे द्वीपीय देश ‘ग्लोबल वार्मिंग' के कारण होने वाला नुकसान झेलने में सबसे आगे हैं। उन्होंने कहा कि समस्या पैदा करने में उन देशों की कोई भूमिका नहीं है और उन्होंने वातावरण में कार्बन डाइआक्साइड की भारी मात्रा का उत्सर्जन भी नहीं किया है। जॉनसन ने कहा कि ब्रिटेन आईआरआईएस पहल में आर्थिक रूप से योगदान दे रहा है। वहीं ऑस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री ने सीडीआरआई नेतृत्व के लिए भारत और ब्रिटेन को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा, "मैं भारत के सीडीआरआई के लिए अमेरिका और जापान के समर्थन सहित क्वाड समर्थन को स्वीकार करता हूं।" आईआरआईएस पहल ‘‘आपदा रोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन'' का हिस्सा है जिसके तहत विशेष रूप से छोटे द्वीपीय विकासशील देशों में प्रायोगिक परियोजनाओं के साथ क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया जाना है।
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