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चिकित्सकों ने सर्दियों के मौसम में लोगों को दी चलते फिरते रहने, कई परतों में कपड़े पहनने की सलाह
नयी दिल्ली। सर्दियों की शुरूआत होते ही लोगों के घुटनों, कूल्हों और कमर के दर्द में इजाफा होने की संभावना काफी बढ़ जाती हैं । ऐसे में चिकित्सकों ने लोगों को चलते फिरते रहने और घर से बाहर निकलते वक्त कई कपड़े पहनने की सलाह दी है। सर्दियों में 50 प्रतिशत से अधिक लोग बाहर निकलने में दिलचस्पी नहीं लेते और घरों के भीतर रहना ही पंसद करते हैं क्योंकि बाहर के मुकाबले घर गर्म और आरामदेह होते है। चिकित्सकों का कहना है कि सर्दियों में बाहर निकलते वक्त इस बात का ध्यान रखें कि आपने कई परत में कपड़ें पहने हों। जालंधर के एनएचएस अस्पताल के निदेशक एवं ऑर्थोपेडिक एंड रोबोटिक ज्वाइंट रिप्लेसमेंट सर्जन शुभांग अग्रवाल का कहना है कि ठंड के मौसम में आमतौर पर मांसपेशियां सख्त हो जाती हैं, कार्टिलेज का पोषण कम हो जाता है और सामान्य तौर पर मेटाबॉलिज्म धीमा हो जाता है। इसलिए लचीलेपन को बनाए रखने और उन कैलोरी को जलाने के लिए, जो हम लेते हैं, सर्दी के मौसम में भी हमें अपने शरीर को सक्रिय रखना आवश्यक है। उन्होंने कहा,‘‘ किसी खास तरह के जोडों के दर्द में आपको चिकित्सा पेशेवर की सलाह के बिना कोई कसरत नहीं करनी चाहिए । लेकिन जोड़ों में दर्द और अकड़न का यह मतलब कतई नहीं है कि आप जिम जाना बंद कर दें।'' उजाला सिग्नस ग्रुप ऑफ हॉस्पिटल्स के संस्थापक निदेशक शुचिन बजाज का कहना है कि सर्दियों के मौसम में जोड़ों का दर्द, पीठ दर्द और मांसपेशियों में अकड़न सबसे आम स्वास्थ्य समस्याएं हैं जो वृद्ध लोगों के जीवन को प्रभावित करती हैं। "हमने सर्दियों के दौरान हड्डी और जोड़ों की समस्याओं के इलाज के लिए आने वाले वरिष्ठ नागरिकों की संख्या में वृद्धि देखी है। लेकिन आजकल, हम देख सकते हैं कि घर से काम करने और उच्च ट्रांस वसा एवं चीनी युक्त आहार लेने के कारण युवा लोगों को भी इसी समस्या का सामना करना पड़ रहा है। चीनी उन्हें कम उम्र में मोटापे का शिकार बना रही है ।'' पारस अस्पताल, गुड़गांव में संयुक्त प्रतिस्थापन और खेल चोट केंद्र के प्रमुख विवेक लोगानी कहते हैं कि लंबी बीमारी और खराब रक्त शर्करा नियंत्रण वाले लोगों में फ्रैक्चर का जोखिम सबसे अधिक होता है। वह साथ ही कहते हैं, यह भी संभव है कि टाइप 1 मधुमेह वाले लोग लोअर पीक बोन मास (हड्डियों तक पहुँचने वाली अधिकतम शक्ति और घनत्व) प्राप्त करें। लोग आमतौर पर 20 के दशक में अपने पीक बोन मास तक पहुंच जाते हैं। उन्होंने आगे कहा कि लो पीक बोन मास जीवन में बाद में ऑस्टियोपोरोसिस के विकास के जोखिम को बढ़ा सकता है। 

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