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फ्रेंडशिप डे स्पेशल... उन दोस्तों की कहानी, जिन्होंने खड़ा कर दिया कारोबार


फ्रेंडशिप डे पर उन दोस्तों की कहानियां... जिन्होंने दोस्त बनाने के साथ ही कारोबार भी खड़ा कर दिया। जिन्हें यार मिलने से नया मुकाम मिल गया। इसमें जिले के उन लोगों की कहानी है जिन्हें दोस्त मिलने के साथ ही उनका जीवन भी बदल गया।
दोस्ती जैसा कोई रिश्ता नहीं
ओल्ड फरीदाबाद की बसेलवा कॉलोनी में रहने वाले योगेंद्र अत्री कभी किसी कंपनी में एचआर हेड हुआ करते थे। यूं तो उनका बहुत मन था अपना बिजनेस शुरू करने का, लेकिन बिना किसी सहारे के इसे शुरू करने में हिचकिचा रहे थे। उन्हीं दिनों पलवल निवासी देवेंद्र सिंह से उनकी दोस्ती गाढ़ी हो गई थी, जिसमें उन्हें न केवल सच्चा मित्र मिला, बल्कि एक बेहतर बिजनेस पार्टनर भी मिल गया। उनकी दोस्ती की मिसाल यह है कि 2012 में दोनों में दोस्ती हुई थी। 2013 में देवेंद्र के पास नौकरी नहीं थी। योगेंद्र ने उनकी नौकरी लगवाई। 2019 में योगेंद्र और देवेंद्र ने मिलकर हथीन में एक कंपनी शुरू की। आज दोनों इस बिजनेस से काफी खुश हैं। वे कहते हैं कि सच्चा दोस्त मिल जाए तो दुनिया में कुछ भी किया जा सकता है। दुनिया में दोस्ती सरीखे कोई रिश्ता नहीं है।
फ्रेंड मिला तो शुरू किया बिजनेस
ओल्ड फरीदाबाद निवासी विनोद कुमार कंप्यूटर इंजीनियर हैं। घर की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के कंधे पर है। ऐसे में नौकरी से गुजारा मुश्किल पड़ रहा था तो कोई काम शुरू करने के लिए बजट कहां से ला पाते। उन्होंने दिल्ली के लक्ष्मी नगर निवासी अपने दोस्त अशोक कुमार शर्मा के साथ मिलकर नेहरू पैलेस में आईटी का बिजनेस शुरू किया, जो आज खूब फल-फूल रहा है। इनमें 1999 में नौकरी के दिनों में दोस्ती हुई थी। 2013 में दोनों ने बिजनेस शुरू किया था, लेकिन उसमें घाटा लग गया। इस मुसीबत का सामना दोनों ने साथ मिलकर किया। इससे उनकी दोस्ती और गहरी हो गई। आज स्थिति यह है कि वह अपने घर के साथ-साथ अन्य कार्यों में भी बढ़चढ़कर भाग लेते हुए मदद करते हैं। दोनों की सोच है कि इंसान को जॉब के दौरान अपने बिजनेस के बारे में सोचना चाहिए। वे यह भी कहते हैं कि दोस्ती से बढ़कर कोई नहीं है।
दिल मिले तो मिला कारोबार
ग्रेटर फरीदाबाद के प्रिंसेस पार्क निवासी सौरभ गुप्ता इम्पीरियर का काम करते हैं। उनके पास कारोबार के लिए पूरा इंतजाम नहीं था, लेकिन उनका साथ उनके दोस्त फ्रूड गार्डन निवासी राहुल सूरी ने दिया। राहुल सूरी ने इस काम के लिए मशीनों पर खर्च किया और फिर इस कारोबार में साझेदार हो गए। आज दोनों की इस कारोबार में अलग पहचान है। हालांकि दोनों का मानना है कि साझेदारी में कोई भी काम करना बेहद मुश्किल होता है। कुछ दिनों बाद ही विवाद हो जाता है, पर हम दोनों का कारोबार ऊंचाइयां छू रहा है। हमारी अच्छी सोच के साथ-साथ मित्रता है।

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