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 कफ सीरप को लेकर डब्ल्यूएचओ की हालिया चेतावनी ‘चिंताजनक', पूरी जांच की जरूरत: विशेषज्ञ

 नयी दिल्ली। पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में हुई बच्चों की मौत को एक भारतीय दवा कंपनी द्वारा निर्मित कफ सीरप से जोड़ने संबंधी विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की हालिया चेतावनी ‘‘चिंताजनक'' है और कुछ ऐसी कड़ियां हैं जिनकी ‘‘जांच'' करने की जरूरत है। यह बात एक विशेषज्ञ ने शनिवार को कही। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने बुधवार को चेतावनी दी कि हरियाणा के सोनीपत स्थित ‘मेडेन फार्मास्युटिकल्स लिमिटेड' द्वारा कथित तौर पर उत्पादित ‘दूषित' और ‘कम गुणवत्ता' वाले चार कफ सीरप पश्चिमी अफ्रीकी देश गांबिया में हुई बच्चों की मौत का कारण हो सकते हैं। चार उत्पाद प्रोमेथाज़िन ओरल सॉल्यूशन, कोफेक्समालिन बेबी कफ सीरप, मकॉफ़ बेबी कफ सीरप और मैग्रीप एन कोल्ड सीरप हैं। सीनियर फार्माकोलॉजिस्ट और स्टैंडिंग नेशनल कमेटी ऑन मेडिसिन्स (एसएनसीएम) के उपाध्यक्ष प्रोफेसर वाई के गुप्ता ने कहा, ‘‘डब्ल्यूएचओ से यह सूचना चिंताजनक है कि एक भारतीय फार्मा कंपनी द्वारा निर्मित कफ सीरप में एथिलीन ग्लाइकॉल की मौजूदगी के कारण 66 बच्चों की मौत हो गई।'' उन्होंने कहा, ‘‘हालांकि, इसमें कुछ ऐसी कड़ियां हैं जिनका सावधानीपूर्वक पता लगाने और जांच करने की आवश्यकता है।'' डॉ. गुप्ता ने कहा कि पहली मौत जुलाई में सामने आयी थी जिसके इसी कारण से होने का संदेह है।
 भारत के औषधि महानियंत्रक डीसीजीआई को 29 सितंबर को डब्ल्यूएचओ से एक पत्र मिला था और भारत सरकार और औषधि महानियंत्रक ने फौरन कदम उठाये थे। डॉ गुप्ता ने कहा कि पत्र मिलने के तुरंत बाद पूरा विवरण मांगते हुए एक जवाबी पत्र लिखा गया था। एक अक्टूबर को रविवार और दो अक्टूबर को राष्ट्रीय अवकाश होने के बावजूद, जांच शुरू की गई। उन्होंने  कहा, ‘‘यहां यह समझना महत्वपूर्ण है कि डीसीजीआई द्वारा केवल नयी दवा की मंजूरी दी जाती है जबकि निर्माण और बिक्री का लाइसेंस राज्य औषधि नियंत्रक द्वारा दिया जाता है। उन्होंने कहा, ‘‘इस मामले में, राज्य औषधि नियंत्रक द्वारा निर्माण और बिक्री का लाइसेंस दिया गया था। कंपनी को केवल एक देश में निर्यात करने के लिए लाइसेंस दिया गया था, न कि किसी अन्य देश में या भारतीय घरेलू बाजार में।'' डा. गुप्ता ने कहा कि मामले में से संबंधित एक कड़ी यह है कि डब्ल्यूएचओ द्वारा परीक्षण किए गए 23 नमूनों में से, एथिलीन ग्लाइकॉल केवल चार नमूनों में पाया गया। डॉ गुप्ता ने कहा, ‘‘यह हैरान करने वाला है और इसके स्पष्टीकरण की आवश्यकता है।'' उन्होंने कहा, ‘‘इसके अलावा, आयात करने वाला देश परिभाषित मानकों के अनुसार इसका परीक्षण करवाता है। ऐसा लगता है कि यह किसी तरह से चूक गया।'' उन्होंने कहा कि भारतीय नियामक बहुत कड़े हैं और ऐसे मामलों में बिल्कुल भी बर्दाश्त नहीं करने की नीति है, इसलिए किसी को नियामकों की सतर्कता पर सवाल नहीं उठाना चाहिए। उन्होंने कहा कि भारतीय फार्मा क्षेत्र ऐसी दवाओं और टीकों का उत्पादन कर रहा है जिनका उपयोग दुनिया भर में किया जाता है और वे गुणवत्ता के लिए जाने जाते हैं और लोग उन पर भरोसा करते हैं। डॉ गुप्ता ने कहा कि इस तरह की कुछ घटनाओं की पूरी तरह से जांच की जानी चाहिए और कार्रवाई की जानी चाहिए।

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