अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में हमारे सामने कुछ सीमाएं हैं : विदेश मंत्री जयशंकर
नयी दिल्ली. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने शनिवार को कहा कि अमेरिका के साथ व्यापार समझौते में भारत की कुछ सीमाएं हैं और वह किसानों तथा छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए दृढ़ रहेगा। जयशंकर का यह बयान ऐसे समय में आया है जब कुछ ही दिन पहले भारतीय वस्तुओं पर अतिरिक्त अमेरिकी शुल्क लागू होने वाले हैं। विदेश मंत्री ने रूस के साथ भारत के ऊर्जा संबंधों को निशाना बनाने के लिए अमेरिका की आलोचना की और आश्चर्य जताया कि यही मानदंड चीन और यूरोपीय संघ पर क्यों नहीं लागू किया गया, जो क्रमशः रूसी कच्चे तेल और रूसी एलएनजी के सबसे बड़े आयातक हैं। ‘इकोनॉमिक टाइम्स वर्ल्ड लीडर्स फोरम' में विदेश मंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि भारत पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों में मध्यस्थता स्वीकार नहीं करता है और इस पर 50 वर्षों से अधिक समय से राष्ट्रीय सहमति बनी हुई है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कई बार दावा कर चुके हैं कि उन्होंने मई में भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष को रोकने में भूमिका निभाई। जयशंकर ने व्यापार और शुल्क, रूसी कच्चे तेल की खरीद और संघर्ष पर वाशिंगटन के दावे को भारत और अमेरिका के बीच वर्तमान में तीन मुख्य मुद्दों के रूप में चिह्नित किया। ट्रंप के भारतीय वस्तुओं पर शुल्क को दोगुना कर 50 प्रतिशत कर दिए जाने के आदेश के बाद भारत और अमेरिका के बीच संबंधों में तनाव पैदा हो गया है। इस आदेश के तहत 25 प्रतिशत शुल्क पहले ही लागू हो चुका है तथा अतिरिक्त शुल्क 27 अगस्त से लागू होने वाले हैं। जयशंकर ने कहा कि अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप का दुनिया के साथ व्यवहार करने का तरीका पारंपरिक तरीके से बहुत अलग है और पूरी दुनिया इसका सामना कर रही है। उन्होंने कहा, “अब तक ऐसा कोई अमेरिकी राष्ट्रपति नहीं रहा, जिसने विदेश नीति को मौजूदा राष्ट्रपति की तरह सार्वजनिक रूप से संचालित किया हो। यह अपने आप में ऐसा बदलाव है, जो केवल भारत तक सीमित नहीं है।” विदेश मंत्री ने कहा कि व्यापार दोनों देशों के बीच “वास्तव में सबसे बड़ा मुद्दा” है। उन्होंने कहा, “बातचीत अभी भी जारी है और मुख्य बात यह है कि हमारे बीच कुछ सीमाएं हैं।” उन्होंने कहा, "हम सरकार के रूप में अपने किसानों और छोटे उत्पादकों के हितों की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं। हम इस पर दृढ़ हैं।" भारत द्वारा अपने कृषि और डेयरी क्षेत्रों को खोलने से इनकार करने के बाद दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार समझौते के लिए बातचीत में बाधा उत्पन्न हो गई। विदेश मंत्री ने ट्रंप प्रशासन के अधिकारियों द्वारा लगाए गए आरोपों का भी जवाब दिया कि भारत रूस से रियायती मूल्य पर कच्चा तेल खरीदकर तथा फिर परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पादों को यूरोप और अन्य स्थानों पर ऊंची कीमतों पर बेचकर “मुनाफाखोरी” कर रहा है। उन्होंने कहा, “यह हास्यास्पद है कि व्यापार-समर्थक अमेरिकी प्रशासन के लोग दूसरों पर व्यापार करने का आरोप लगा रहे हैं।” जयशंकर ने कहा, “यह वाकई अजीब है। अगर आपको भारत से तेल या परिष्कृत पेट्रोलियम उत्पाद खरीदने में कोई समस्या है, तो उसे न खरीदें। कोई आपको खरीदने के लिए मजबूर नहीं करता। लेकिन यूरोप खरीदता है, अमेरिका खरीदता है, इसलिए अगर आपको वह पसंद नहीं है, तो उसे न खरीदें।” जयशंकर ने अमेरिका के साथ संबंधों में भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल की खरीद को दूसरा प्रमुख मुद्दा बताया। उन्होंने कहा, "दूसरे मुद्दे को एक तरह से तेल के मुद्दे के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। लेकिन...भारत को निशाना बनाने के लिए जिन तर्कों का इस्तेमाल किया गया है, वे सबसे बड़े तेल आयातक, चीन, सबसे बड़े एलएनजी आयातक, यूरोपीय संघ पर लागू नहीं किए गए हैं।" उन्होंने पूछा, "जब लोग कहते हैं कि हम युद्ध के लिए धन मुहैया करा रहे हैं या (राष्ट्रपति व्लादिमीर) पुतिन के खजाने में पैसा डाल रहे हैं...तो रूस-यूरोपीय संघ का व्यापार भारत-रूस व्यापार से बड़ा है। तो क्या यूरोप पुतिन के खजाने में पैसा नहीं डाल रहा है?" विदेश मंत्री ने संकेत दिया कि भारत-पाकिस्तान संघर्ष पर वाशिंगटन का दावा, अमेरिका के साथ भारत का तीसरा मुद्दा है। उन्होंने कहा, "तीसरा मुद्दा हमारे अपने क्षेत्र से संबंधित है, जो मध्यस्थता का मुद्दा है। 1970 के दशक से, यानी 50 वर्षों से भी अधिक समय से, इस देश में राष्ट्रीय सहमति है कि हम पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों में मध्यस्थता स्वीकार नहीं करते हैं।" विदेश मंत्री ने इस बात को भी खारिज कर दिया कि भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव के मद्देनजर चीन के साथ भारत के रिश्ते बेहतर हो रहे हैं। उन्होंने कहा, “मुझे लगता है कि एक बहुत ही अलग स्थिति के लिए हर चीज को एक साथ जोड़कर इस तरह की राय बनाने की कोशिश करना गलत विश्लेषण होगा।
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