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 मनुष्य जब अपने शरीर और बुद्धि का अहंकार पालता है, तब माया उसे दण्ड देकर भगवान की ओर ले चलती है!!

जगदगुरु कृपालु भक्तियोग तत्वदर्शन - भाग 296

(भूमिका - जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज द्वारा निम्न उद्धरण में 'अहंकार' के विषय में प्रकाश डाला गया है कि जैसे जीव यानी कि हम मायाधीन मनुष्य छोटी सी बुद्धि और थोड़ा सा संसार पाकर ही अहंकार के वश में हो जाते हैं और फिर कैसे भगवान की शक्ति माया हमें अनेक प्रकार से दण्ड देकर याद दिलाती है कि हमें भगवान की ओर ही चलना है, उन्मुख होना है......)

..मनुष्य गुरु की नहीं सुनता, सुनकर अनसुनी कर देता है, उधार कर देता है। वो प्यार से समझाता है, अपनेपन से ज्ञान देता है; लेकिन जीव अहंकार के कारण नहीं समझता। बहुत से अहंकार होते हैं - ज्ञान का अहंकार कि हम बहुत समझते हैं। लोग ऐसी ऐसी बातें करते हैं गीता की पुस्तक नहीं देखा कभी और हमसे ये जानते हुए कि इनको जगद्गुरु की उपाधि मिली है ज्ञान के बल पर। फिर भी महाराज जी! गीता में तो कर्म लिखा है, हम तो कर्म करते हैं गृहस्थ का। लो हम ही को उपदेश दे रहे हैं कि गीता में कर्म लिखा है इतना अहंकार है ज्ञान का! अरे! अगर गीता पढ़ा होता तो भी चलो मान लेते। तुमने गीता पढ़ा है? नहीं। पुस्तक देखी है? नहीं। तो गीता में क्या लिखा है तुम्हें कैसे मालूम?

लोग कहते हैं कि गीता में तो कर्म लिखा है, अर्जुन से कहा है कर्म करो। तो हम कर्म करते हैं, आप कहते हैं माँ, बाप, बेटा, स्त्री, पति से प्यार न करो और गीता तो कहती है कि कर्म करो। लो, हम ही को उपदेश देने लगे। ये बुद्धि का अहंकार है। देखो! हमारे देश में अनपढ़ गँवार करोड़ों है। गाँवों में तो चार-छः गाँव के गँवार बैठते हैं जब, तो आपस में बात करते हैं, ये सरकार को अकल नहीं है, इतनी गरीबी है, एक-एक करोड़ के नोट छाप दे खूब। अरे, जरा-सा कागज दो पैसे का उसमें लिख दे एक करोड़ और पैसा ही पैसा हो जाय हमारे देश में। सोचो! इतने मूर्ख होने पर भी इतना अहंकार है। वो पूरी सरकार को बेवकूफ बता रहे हैं कि नोट छापने से देश धनी हो जायगा। सबको अहंकार है। जब लेक्चर सुनते हैं लोग वो चाहे पढ़ा लिखा हो, चाहे घोर मूर्ख हो, रास्ते में कमेंट्री करते हुए जाते हैं, उन्होंने ऐसा कहा । लेकिन ऐसा है कि......

हमने एक बार सुना है अपने कान से। जबलपुर में हमारी स्पीच हो रही थी, पच्चीस हजार आदमी थे। तो लेक्चर देने के बाद मैं कार से चला और एक किलोमीटर के बाद ही मैंने कार छोड़ दी और एक काला कम्बल ओढ़ लिया और रोड पर खड़ा हो गया। अब पब्लिक आई, कार वाले से मैंने कहा कि तुम चले जाओ आगे और पब्लिक के साथ हम चले कम्बल ओढ़े हुए सिर से ऐसे। अब कौन क्या कहता है, दोनों तरफ सुनते जा रहे हैं। बड़ी बड़ी तारीफ भी करते थे और कुछ कमेंट्री हमारे खिलाफ भी करते थे। तो वो इतना बुद्धि का अहंकार है मनुष्य को, भगवान् ने ऐसा क्यों किया? भगवान् ने दुनिया बनाया क्यों? भगवान् ने माया लगाया क्यों? लो भगवान् पर भी अटैक हो रहा है। भगवान् गलती तो नहीं करता, फिर क्यों गलती किया? तो ये अहंकार। कभी और कुछ नहीं, शरीर का ही अहंकार!!

सोलह, अठारह साल की उमर में लड़के लड़की अपने शरीर को ही भगवान् मानने लगते हैं। चाहे कितना ही कोई मूर्ख हो, शरीर का अहंकार सबको होता है, सबको। इसी प्रकार धन हो किसी के पास तो फिर क्या बात है। यानी, संसार का कोई भी सामान हो तो उसका अहंकार होता है। बड़ा सामान नहीं, छोटे सामान में भी अहंकार। कैसे? आप क्या पढ़े-लिखे हैं? हाईस्कूल। अच्छा, आपके बगल में एक बैठा है तुमने कितना पढ़ा है? दर्जा चार। हम हाईस्कूल हैं, हो गया अहंकार और अब उसके बगल में आप कहाँ तक पढ़े हैं? डी.लिट. हैं । हाँ हाँ , डी. लिट. हैं!! पिचक गया। अब किसी न किसी के तो आगे होने की बात भी है और कोई न कोई हमसे पीछे भी है ज्ञान में, बल में, धन में, बुद्धि में सबमें। हमसे नीचे भी लोग हैं, हमसे आगे भी लोग हैं। तो नीचे वालों को देखकर अहंकार।

तो ये अहंकार जो है देहाभिमान कहते हैं इसको। देह का, देह सम्बन्धी विषय का अहंकार होना। इस अहंकार के कारण हम वेदशास्त्र की बात, सन्त की बात, भगवान् की बात नहीं मानते। अपनी बुद्धि के अनुसार काम करते हैं। तो ऐसे लोगों को जैसे संसार में कोई बेटा छोटा-सा माँ की बात नहीं मानता समझाने पर, प्यार से समझाती है बेटा! ऐसा नहीं बोलते, ऐसा नहीं करते और फिर भी करता है, तो दण्ड देती है माँ, सगी माँ। कहीं खाना बन्द कर देगी, कहीं हाथ पैर बाँध देगी, कहीं झापड़ लगा देगी। ये दण्ड क्यों देती है अपनी माँ? तो बेटा गुस्सा करता है, कैसी माँ है, हमको मार दिया। हमारा हाथ-पैर बाँध दिया, हमको खाना नहीं दे रही है। ये दुश्मन है हमारी। लेकिन ऐसा है नहीं। माँ तो उसके कल्याण के लिये ये सब कर रही है। ये हमारा बेटा अच्छा बेटा बने। अच्छे कैरक्टर का बने। डरा रही है।

तो ऐसे ही जब (भगवान् की, संत/गुरु की) नहीं सुनता मनुष्य तो दूसरी दासी वो भी दासी है भगवान् की, माया भी, वो कहती है बेटा ! तुमको हमारे भाई साहब ने समझाया था, गुरु ने? हाँ। नहीं माना? हाँ। अच्छा आओ हमारे पास, हम तुम्हारी पिटाई करते हैं। तो पिटाई करने पर जब वो धन गया, ये पिटाई हो गई। धन गया तो;

असतः श्री मदान्धस्य दारिद्र्यं परमञ्जनम्।
(भागवत 10.10.13)

जब धनी का धन नष्ट होता है तो अहंकार गया।

त्वमेव सर्वं मम देव देव।

अब भगवान् की ओर देखने लगा। ऐसे ही बीमार हो गया, कैन्सर हो गया, शरीर का अहंकार करने वाला, मैं मर जाऊँगा, कैंसर हो गया, हे भगवान्......!! ये अहंकार शरीर का गया। जो भी चीज हमारे पास है वो गड़बड़ हुई कि हम भगवान् की ओर देखते हैं - भगवान् की शरण में जाते हैं। तो ये क्या मतलब है इसका? माया ने दण्ड दिया, तुलसीदास की बीबी ने डाँट लगाई, होश आ गया, सूरदास को होश आ गया। बड़े-बड़े सन्त हमारे यहाँ हुए हैं जो चपत खाने से सन्त हुए। माया ने मार लगाई, उसने कहा - हाँ ठीक है, अब मैं उधर जाऊँगा। इधर (माया) की मार खाने पर उधर (भगवान) गया है। हमारे संसार में बहुत से बच्चों को गाँव में झापड़ लगा देता है बाप अपराध पर तो वो तुनुक करके चल देता है परदेश। घर से निकल जाता है और बाईचांस बाहर जा करके कहीं नौकरी लग गई, मुनीम हो गया और फिर मुनीम होकर के चार सौ बीस सीखा और सेठ जी को कब्जे में लिया। अरे! करोड़ीमल सेठ बन गया, करोड़ों का। हमारे यहाँ बड़े-बड़े प्राइम मिनिस्टर तमाम देशों के ऐसे हुए हैं जो गाँव के गरीब घर के, बाप की पिटाई से भाग कर शहर में गये और वहाँ किसी पॉलीटिशियन के यहाँ नौकरी मिली फिर पॉलिटिक्स में आगे बढ़े और फिर प्राइम मिनिस्टर हो गये। तो देखो मार खाने का कितना बढ़िया परिणाम मिला उनको। तो माया नौकरानी है भगवान् की, वो दण्ड देकर के हमारा कल्याण करती है, इसकी बुराई नहीं करना है।

०० प्रवचनकर्ता ::: जगदगुरुत्तम श्री कृपालु जी महाराज
०० सन्दर्भ ::: 'साधन साध्य' पत्रिका, अंक 2019
०० सर्वाधिकार सुरक्षित ::: राधा गोविन्द समिति, नई दिल्ली के आधीन।

+++ ध्यानाकर्षण/नोट ::: जगदगुरु श्री कृपालु जी महाराज द्वारा प्रगटित सम्पूर्ण साहित्यों की जानकारी/अध्ययन करने, साहित्य PDF में प्राप्त करने अथवा उनके श्रीमुखारविन्द से निःसृत सनातन वैदिक सिद्धान्त का श्रवण करने के लिये निम्न स्त्रोत पर जायें -
(1) www.jkpliterature.org.in (website)
(2) JKBT Application (App for 'E-Books')
(3) Sanatan Vedik Dharm - Jagadguru Kripalu Parishat (App)
(4) Kripalu Nidhi (App)
(उपरोक्त तीनों एप्लीकेशन गूगल प्ले स्टोर पर Android तथा iOS के लिये उपलब्ध हैं.)

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